मनोज जैन
नई दिल्ली। आयकर विभाग ने कहा है कि सेबी अधिनियम और प्रतिस्पर्धा अधिनियम सहित चार कानूनों के तहत शुरू कार्यवाही के निपटान पर हुए खर्च की कटौती का दावा करने की करदाताओं को अनुमति नहीं होगी। इन निर्दिष्ट कानूनों में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992; प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956; डिपोजिटरी अधिनियम, 1996; और प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 शामिल हैं। आयकर विभाग के नियंत्रक निकाय केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने जारी नवीनतम अधिसूचना में कहा है कि चार निर्दिष्ट कानूनों के तहत उल्लंघन या चूक के संबंध में शुरू की गई कार्यवाही को निपटाने पर किए गए किसी भी व्यय को व्यवसाय या पेशे के उद्देश्य से किया गया खर्च नहीं माना जाएगा।
सीबीडीटी ने कहा कि ऐसा होने के कारण इस तरह के व्यय पर किसी भी कटौती या भत्ते की मंजूरी नहीं दी जाएगी। एकेएम ग्लोबल के कर साझेदार अमित माहेश्वरी ने कहा कि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 37(1) के तहत निपटान भुगतान की कटौती लंबे समय से न्यायिक बहस का विषय रही है। इसमें सेबी को भुगतान किए गए सहमति शुल्क को वाणिज्यिक सुविधा के आधार पर व्यावसायिक व्यय के रूप में अनुमति दी गई थी।
ग्रे एरिया
हालांकि उन्होंने कहा कि सीबीडीटी ने वित्त अधिनियम, 2024 के जरिये कानून में बदलाव किए और अब इसे अधिसूचित कर दिया है। अब भारत में या बाहर सेबी अधिनियम, प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, डिपॉजिटरी अधिनियम और प्रतिस्पर्धा अधिनियम सहित विशिष्ट कानूनों के तहत कार्यवाही के निपटान या समझौते के लिए किया गया कोई भी व्यय कटौती के लिए पात्र नहीं होगा। माहेश्वरी ने कहा कि यह प्रभावी रूप से न्यायाधिकरण के पुराने फैसलों को निरस्त कर देता है और कर परिदृश्य में बहुत जरूरी स्पष्टता लाता है। हालांकि, फेमा जैसे अन्य नियामकीय कानूनों एवं आरबीआई के निर्देशों के तहत ‘ग्रे एरिया’ अब भी बरकरार है।