दीपक द्विवेदी
देश की राजधानी दिल्ली में लाल किले के पास लगभग 14 साल बाद हुआ धमाका जहां सभी का दिल दहलाने वाला और हृदय विदारक है; वहीं यह इस आवश्यकता की ओर भी आगाह करता है कि हमें यह मान कर कभी निश्चिंत नहीं बैठना चाहिए कि किसी भी बड़ी कार्रवाई के बाद आतंकवादी और आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाले चुपचाप बैठ जाएंगे। यह वो जमात है जो आस्तीन के सांप की तरह कभी भी जरा सा मौका पाते ही डसने को तैयार रहती है। इसलिए भारत को ही नहीं; बल्कि दुनिया के हर देश को सदैव सतर्क और तत्पर रहना चाहिए। दिल्ली धमाके की वारदात देश को अस्थिर करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। सारी कड़ियां जुड़ने के बाद पूरी कहानी सामने आ रही है। लाल किले के पास हुए ब्लास्ट में मौत का आंकड़ा 12 पर पहुंच गया है। दो दर्जन मरीज इलाज के लिए भर्ती हैं जिसमें से दो मरीजों की हालत गंभीर बनी हुई है। पीएम नरेंद्र मोदी एलएनजेपी अस्पताल में धमाके में घायल लोगों से मुलाकात कर चुके हैं। उन्होंने भूटान में ऑपरेशन सिंदूर की भांति एक बार फिर यह एलान कर दिया है कि दिल्ली विस्फोट के साजिशकर्ता बख्शे नहीं जाएंगे। आज जरूरत है संयम और सुरक्षा एजेंसियों पर भरोसा बनाए रखने की; जिन्होंने विस्फोट वाले दिन की सुबह ही भारी मात्रा में विस्फोटक बनाने की सामग्री जब्त कर ली और गिरफ्तारियां भी करने में सफल रही। गिरफ्तारी के दौरान वह आतंकी भागने में सफल हो गया जिसने कार में विस्फोटक रख कर आत्मघाती हमले को अंजाम दिया। यदि यह विस्फोटक पकड़ा नहीं जाता तो देश में अनेक जगह बड़े-बड़े विस्फोट भी हो सकते थे।
वैसे इस बार की वारदात में जो सबसे चिंता वाली बात सामने आई है वह यह है कि इसमें ज्यादातर आतंकवादी व्हाइट कॉलर्ड यानी पढ़े-लिखे लोग और डाक्टर शामिल हैं। अभी तक दिल्ली लाल किला ब्लास्ट केस में 20 किरदार सामने आए हैं। इसमें जैश ए मोहम्मद के आतंकी डॉक्टरों की फौज और उनके मददगार स्लीपर सेल मॉड्यूल के संदिग्ध शामिल हैं। डॉक्टरों का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंक की राह में लाने वाले दो मौलवी भी जम्मू-कश्मीर और फरीदाबाद पुलिस के शिकंजे में हैं। इंडिया गेट, लाल किला, 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह जैसे बड़े टारगेट इन आतंकियों ने चुने थे। दावा है कि वो 26/11 से भी बड़ा हमला करने की फिराक में थे लेकिन जैश ए मोहम्मद की साजिश बेनकाब हो गई। जैश ए मोहम्मद के इस नए मॉड्यूल में अब तक करीब 20 लोग गिरफ्तार या हिरासत में हैं। फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े डॉ आदिल अहमद, डॉ मुजम्मिल और डॉ शाहीन की गिरफ्तारी हो चुकी है जबकि उनका चौथा साथी डॉक्टर उमर मोहम्मद, जिसे लाल किला बम ब्लास्ट का संदिग्ध हमलावर बताया जा रहा है, कार में विस्फोट के साथ उसके मारे जाने की खबर है।
यह भी खुलासा हुआ है कि इस आतंकी मॉड्यूल की साजिश 6 दिसंबर को 6 स्थानों पर बड़े धमाके करने की थी। दिल्ली के साथ अयोध्या, प्रयागराज समेत कई बड़े टारगेट भी थे। 2-2 के ग्रुप में 8 आतंकियों के ग्रुप तैयार हुए थे। हर जगह ब्लास्ट के लिए सेकेंड हैंड कार अरेंज की गई थी। उमर की दो कारों के अलावा कुछ और विस्फोटकों से लदी कारें तैयार की जानी थीं। अब सवाल यह है कि अगर आतंकी इस स्तर पर अपनी तैयारियां करते हैं तो भारत की सुरक्षा एजेंसियों को भी अब और मुस्तैदी के साथ आगे की सोच रखते हुए अपनी तैयारियां करनी होंगी। सुरक्षा एजेंसियों को ऐसे उपकरण विकसित करने चाहिए जो वाहनों में रखी ऐसी किसी भी संदिग्ध सामग्री का पता लगा सकें जो विस्फोटक के रूप में इस्तेमाल हो सकती हो। ऐसे उपकरणों को सभी शहरों के महत्वपूर्ण स्थानों पर स्थापित भी किया जाना चाहिए। अगर ऐसी कोई डिवाइस विभिन्न चौराहों पर लगी होती तो निश्चित रूप से लाल किला विस्फोट जैसी वारदात भी नहीं हो पाती। आज जरूरत इस बात की है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां नई-नई डिवाइस विकसित करें ताकि किसी भी वारदात से पूर्व ही आतंकियों को दबोचा जा सके क्योंकि आतंकवादी भी हर बार अपने तरीके बदल रहे हैं। अतः आतंकवाद के शैतान को सदैव काबू में रखने के लिए हमेशा नकेल कस के रखनी ही होगी क्योंकि आतंकवाद आज वैश्विक स्तर पर शांति और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। आतंकी अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए साजिशों के नए-नए जाल बुन रहे हैं जिन्हें भेद पाने में सुरक्षा एजेंसियों को भी कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।































