ब्लिट्ज ब्यूरो
नागपुर। अलग हुए दो शिया दाऊदी जमातों के बीच एक ऐतिहासिक सुलह हुई है। यह काम कराया है महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने। 125 साल पुराने चिमथानावाला बनाम महदी बाग सांप्रदायिक विवाद का शांतिपूर्ण समाधान सफलतापूर्वक निकाला गया। यह भारत के सबसे लंबे समय से चले आ रहे धार्मिक और संपत्ति विवादों में से एक है। राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने बताया कि अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख प्यारे खान की अध्यक्षता में दो सुनवाइयों के बाद दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति के बाद यह सफलता मिली।
आयोग के इस आदेश ने महदी बाग संस्था में नेतृत्व और संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध चले आ रहे तीखे संघर्ष का अंत कर दिया। इस साल 21 जनवरी को, दोनों समूहों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। अंतिम आदेश 11 नवंबर को जारी किया गया।
क्या बोले प्यारे खान
प्यारे खान ने इस समझौते को बातचीत और आपसी समझ की जीत बताया। उन्होंने कहा कि यह केवल एक कानूनी लड़ाई का अंत नहीं है, बल्कि सामाजिक सद्भाव की शुरुआत है। 125 वर्षों के बाद, कड़वाहट आखिरकार खत्म हो गई है।
यह विवाद 1840 में शुरू हुआ, जब दाऊदी बोहरा समुदाय के 46वें दाई सैयदना बदरुद्दीन साहब का बॉम्बे में निधन हो गया। उनके बाद उत्तराधिकार का संघर्ष शुरू हो गया। कुछ लोगों ने नजमुद्दीन को 47वें दाई के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया। 1891 तक, मौलाना मलक साहब और उनके अनुयायियों ने नागपुर में अत्बा-ए-मलक जमात और महदी बाग संस्था की स्थापना की। 1899 में मलक साहब के निधन के बाद, नेतृत्व के दावों को लेकर संप्रदाय दो गुटों – महदी बाग और चिमथानावाला – में विभाजित हो गया।
महदी बाग समुदाय ने मौलाना बदरुद्दीन गुलाम हुसैन मलक साहब को अपना धार्मिक प्रमुख माना, जबकि चिमथानावाला समूह ने मौलाना अब्दुल कादिर चिमथानावाला साहब का अनुसरण किया। अब्दुल कादिर साहब और उनके 13 अनुयायी महदी बाग छोड़कर नागपुर के इतवारी रेलवे स्टेशन के पास बस गए। इस विभाजन के कारण 4,000 करोड़ से ज़्यादा की संपत्ति, धार्मिक कदाचार के आरोप और धन के दुरुपयोग से जुड़े कई दशकों तक कटुता बनी रही।
– बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं हुआ था फैसला
कोर्ट भी फेल
बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वर्षों तक चली कानूनी कार्यवाही के बावजूद, कोई समाधान नहीं निकल पाया। भारत के कुछ प्रमुख कानूनी हस्तियों ने दोनों पक्षों का प्रतिनिधित्व किया। दशकों के गतिरोध के बाद, इस साल की शुरुआत में आयोग ने हस्तक्षेप किया जब महदी बाग संस्था के 73 सदस्यों ने चिमथनावाला समूह पर धार्मिक और संपत्ति अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई।
पहली सुनवाई 7 जनवरी, 2025 को मुंबई में हुई, जिसमें दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों और वकील आरएस सिंह और अब्दुल्ला खान ने भाग लिया। प्यारे खान की मध्यस्थता के बाद, दोनों पक्ष 21 जनवरी को एक सौहार्दपूर्ण समझौते पर सहमत हुए।
क्या हुआ समझौता
समझौते के तहत, विशेष सिविल सूट संख्या 143/1967 के तहत सूचीबद्ध संपत्तियों को महदी बाग वक्फ की संपत्ति के रूप में मान्यता दी गई, जिसका प्रबंधन मौलाना अमीरुद्दीन मलक साहब द्वारा किया जाएगा। मौलाना अब्दे अली चिमथनावाला तीन ट्रस्टों – दाऊदी अत्बा-ए-मलक वकील, अत्बा-ए-हुमायूं और बैतुल अमन – का प्रबंधन करेंगे। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की धार्मिक गतिविधियों में हस्तक्षेप न करने और देश भर में सभी लंबित मामलों को वापस लेने का संकल्प लिया।
मौलाना अब्दे अली साहब चिमथानावाला के बेटे सादिक रज्जाक चिमथानावाला ने कहा कि हम समझौते के दस्तावेज़ से संतुष्ट हैं। मेहदी बाग़ की कानूनी टीम के सदस्य अफ़ज़ल मेहदी ने कहा कि दोनों समुदाय इस बात से खुश और संतुष्ट हैं कि विवाद का सौहार्दपूर्ण ढंग से समाधान हो गया है।
उन्होंने कहा कि मैं अल्पसंख्यक पैनल के प्रमुख प्यारे खान का शुक्रिया अदा करता हूं। आज का दिन ऐतिहासिक है। चिमथानावाला समुदायों के साथ हमारे संबंध बेहतर हुए हैं। मुझे उम्मीद है कि भविष्य में ऐसा कोई विवाद नहीं होगा।































