ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। शिवसेना (उद्धव) प्रमुख उद्धव ठाकरे लगातार कह रहे हैं कि उपमुख्यमंत्री (डिप्टी सीएम) का पद संवैधानिक नहीं है। उनका निशाना राज्य के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर है। उद्धव के बयानों से डिप्टी सीएम पद को लेकर एक बार फिर सियासी और संवैधानिक बहस तेज हो गई है। हालांकि राजनीतिक मजबूरियों और गठबंधन सरकारों में संतुलन के लिए महाराष्ट्र सहित देश के अन्य राज्यों में भी उपमुख्यमंत्री का पद बनाया जाता रहा है।
उद्धव ठाकरे ने कहा है कि उप मुख्यमंत्री का पद भारत के संविधान में कहीं भी वर्णित नहीं है। संविधान में केवल मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद का उल्लेख है। हालांकि उद्धव सरकार में भी अजित पवार उपमुख्यमंत्री के पद पर थे। संविधान विशेषज्ञों की मानें तो उद्धव ठाकरे का यह दावा तकनीकी रूप से सही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 163 और 164 में राज्य में मुख्यमंत्री और मंत्रियों की नियुक्ति का प्रावधान है, लेकिन उपमुख्यमंत्री पद का अलग से उल्लेख नहीं मिलता। इसके बावजूद व्यावहारिक राजनीति में यह पद दशकों से मौजूद है और सत्ता-संतुलन का एक अहम औजार बन चुका है।
1954 से हुई थी शुरुआत
देश में पहली बार किसी राज्य में वर्ष 1954 में उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। उस समय आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और स्वतंत्रता सेनानी नीलम संजीव रेड्डी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद धीरे-धीरे अन्य राज्यों में भी राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार यह पद अस्तित्व में आता गया। रेड्डी बाद में देश के राष्ट्रपति भी बने।
महाराष्ट्र के पहले डिप्टी सीएम थे तिरपुडे
महाराष्ट्र में पहली बार उपमुख्यमंत्री का पद 1978 में बना। उस समय राज्य में जनता पार्टी समर्थित सरकार बनी थी और वसंतदादा पाटील मुख्यमंत्री थे। राजनैतिक संतुलन साधने के लिए कांग्रेस (आई) के वरिष्ठ नेता नातिकराव तिरपुडे को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद यह परंपरा चल निकली और गठबंधन सरकारों के दौर में यह पद लगभग स्थायी बन गया। 1995 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान गोपीनाथ मुंडे को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। जिन्होंने इस पद को राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली बना दिया।
बाद के वर्षों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस सरकारों में छगन भुजबल, आरआर पाटील और अजित पवार जैसे नेताओं ने भी उपमुख्यमंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाल के वर्षों में महाराष्ट्र में एक से अधिक उपमुख्यमंत्री बनाए जाने का प्रयोग भी देख गया है।
मजबूरी या जरूरत?
राजनीति विश्लेषकों का कहना है कि उपमुख्यमंत्री का पद पूरी तरह राजनीतिक समझौते की उपज है। गठबंधन सरकारों में सहयोगी दलों को संतुष्ट रखने, जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने तथा सत्ता में साझेदारी निभाने के लिए इस पद का सहारा लिया जाता है। हालांकि इससे सरकार में कई पावर सेंटर बन जाते हैं।
अजित के नाम है रिकॉर्ड
महाराष्ट्र की राजनीति में अजित पवार के नाम एक रिकॉर्ड दर्ज है। उन्होंने अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों और गठबंधन सरकारों में कुल 6 बार उपमुख्यमंत्री पद की जिम्मेवारी संभाली। हालांकि उनके समर्थकों की यह इच्छा बार-बार सामने जाती रहती है कि अजित एक बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचें।
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री
1. बसिकराय तिरपुडे (1978-1979)
2. सुंदरवाल सोलंकी (1978-1980)
3. रामराव आदिक (1983-1985)
4. गोपीनाथ मुंडे (1995-1990)
5. छगन भुजबल (1999-2000)
6. विजय सिंह मोहिते पाटील (2003-2004)
7. आर. आर. पाटील (2004-2008)
8. छगन भुजबल (2009-2010)
9. अजित पवार (2010-2012)
10. अजित पवार (2012-2014)
11. अजित पवार
12. देवेंद्र फडणवीस (2022-2024)
13. अजित पवार (2023-2004)
14. अजित पवार (5 दिसंबर 2024 से अब तक)
15. एकनाथ शिंदे ( दिसंबर 2024 से अब तक)
13 राज्यों में हैं डिप्टी सीएम
अपने देश में उपमंत्री का पद संवैधानिक नहीं है फिर भी उत्तर से लेकर दक्षिण तक के राज्यों में उपमुख्यमंत्री नियुक्त किए गए हैं। फिलहाल देश के 13 राज्यों में उपमुख्यमंत्री कार्यरत हैं।
कुछ राज्यों में एक से ज्यादा डीसीएम भी हैं-
महाराष्ट्रः एकनाथ शिंदे, अजित पवार
बिहार: सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा
राजस्थानः विया कुमारी, प्रेमचंद बेल्वा
मध्य प्रदेशः राजेंद्र शुक्रन, जगदीश देवड़ा
छत्तीसगढ़ः अरुण साथ, विजय शर्मा
ओडिशाः कनक वर्धन सिंह देव, प्रवती परीड़ा
कर्नाटकः डी. के. शिवकुमार
तमिलनाडुः उदयनिधि स्टालिन
आंध्र प्रदेशः पवन कल्याण
अरुणाचल प्रदेशः चौना मिन
हिमाचल प्रदेशः सुकेत अग्निहोत्री
मेघालयः प्रेस्टन टाइनलोग, स्नियाचभलांग घर

