ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वकीलों को वरिष्ठ पदनाम दिए जाने की प्रक्रिया पर गंभीर चिंतन की जरूरत है। इस टिप्पणी के साथ पीठ ने मामले को सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना के पास भेज दिया, ताकि वह तय कर सकें कि क्या इस मुद्दे पर बड़ी पीठ को सुनवाई करनी चाहिए।
एओआर के लिए आचार संहिता और वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम की प्रक्रिया से संबंधित मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस अभय एस ओका व जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कहा, यदि कोई वकील बार में अपनी स्थिति, मामला 1 योग्यता या विशेष ज्ञान के आधार पर वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में पद पर नियुक्त होने का हकदार है, तो सवाल यह उठता है कि ऐसे वकील को साक्षात्कार के लिए बुलाकर क्या हम अधिवक्ता की गरिमा से समझौता नहीं कर रहे हैं? क्या हम पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया को चयन प्रक्रिया में नहीं बदल रहे हैं?
पीठ ने आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि यह संदेहास्पद है कि कुछ मिनटों के लिए किसी उम्मीदवार का साक्षात्कार लेने से वास्तव में उसके व्यक्तित्व या उपयुक्तता की जांच की जा सकती है। इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि क्या अदालत को पदनाम प्रदान करने के लिए आवेदन करने की अनुमति देनी चाहिए, हालांकि कानून में ऐसा नहीं है। यदि विधानमंडल अधिवक्ताओं को पदनाम के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का इरादा रखता है, तो धारा 16 की उपधारा (2) में इस न्यायालय या उच्च न्यायालयों को पदनाम से पहले अधिवक्ताओं की सहमति लेने का प्रावधान नहीं होता।