ब्लिट्ज ब्यूरो
जनता का फर्ज है कि वह इस बात की निगरानी रखे कि कोई भी व्यक्ति उनके जायज हक का हनन नहीं कर पाए एवं व्यापारी वर्ग सच में जीएसटी दरों में कमी का लाभ जनता तक पहुंचाए। यही ईमानदारी भारत को विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दिशा में अहम भूमिका निभाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम दिए गए अपने लगभग 19 मिनट के संबोधन में जीएसटी या वस्तु और सेवा कर सुधार की बात रखी एवं इसकी नई दरों का एलान किया तथा इसे त्योहारी मौसम का ‘बचत उत्सव’ बताया। उन्होंने गरीब, मध्यवर्गीय, नियो मिडिल क्लास, युवा, किसानों, महिलाओं, दुकानदारों व उद्यमी; सबको इस बचत उत्सव से फायदा होने की भी बात भी कही। अपने इस संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि देश में एक नहीं; दर्जनों टैक्स हुआ करते थे जो किसी टैक्स जंजाल से कम नहीं थे। अब नई जीएसटी दरों से व्यापार आसान होगा, रोजमर्रा की चीजें सस्ती होंगी और आयकर में छूट मिलेगी जिससे ढाई लाख करोड़ रुपये की बचत के अवसर मिलेंगे। यही नहीं, विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए सूक्ष्म, लघु व मध्यम और देश में बनी चीजों को प्राथमिकता देने पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने बल दिया।
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार जीएसटी ढांचे में सरकार को बहुत पहले ही सुधार करना चाहिए था। बिहार चुनाव के मद्देनजर मोदी सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम को विरोधियों द्वारा हमेशा की तरह राजनीतिक दांव की भी संज्ञा दी जा रही है पर पीएम मोदी पर विश्वास जताने वाला एवं बढ़ती महंगाई से बुरी तरह त्रस्त बड़ा मध्य वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर तबका त्योहार में इन सुधारों को राहत भरी सौगात बता रहा है। ऐसे मौके पर स्वदेशी उत्पादों को महत्व देने की बात करके पीएम मोदी ने अपने उस संकल्प की जनता को पुनः याद दिलाई है जिसे उन्होंने 15 अगस्त को लालकिले से किए गए अपने संबोधन में भी दोहराया था और स्वदेशी को आत्मनिर्भर भारत की नींव करार दिया था। अमेरिकी सरकार द्वारा धमकी स्वरूप सर्वाधिक टैरिफ लादने के बाद से देश में निर्मित चीजों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की जरूरत स्वयं सरकार भी महसूस कर रही है। सरकार को 2024 तक राजस्व का 70 प्रतिशत हिस्सा जीएसटी के 18 प्रतिशत वाले स्लैब से प्राप्त हुआ था। उम्मीद से कहीं अधिक यानी बीते वित्त वर्ष में बीस लाख करोड़ रुपये की वसूली कर सरकार के वारे-न्यारे हो गए। मुफ्त की योजनाओं के बूते सीमित संख्या में जनता को प्रलोभन देने के बजाय हर नागरिक तक कटौती का लाभ देने की इस पहल के नतीजे बेहतर होने की उम्मीदों पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए। वैसे इस बार का प्रधानमंत्री मोदी का यह संबोधन अपेक्षाकृत बहुत छोटा रहा।
2017 में जब जीएसटी की शुरुआत हुई थी; उस समय भी प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन किया था और उसे आर्थिक आजादी की शुरुआत बताया था। अप्रत्यक्ष करों में इतनी बड़ी कटौती, यानी कि केवल दो दरों- 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत तक सीमित कर देने जैसे ऐतिहासिक कदम पर वे देश को संबोधित नहीं करें, ऐसा सोचना किसी भी दृष्टि से तार्किक नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही इस वर्ष के बजट में 12 लाख तक की आय को भी कर मुक्त कर दिया गया है। यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीते 15 अगस्त को लाल किले के संबोधन में भी उन्होंने सेकेंड जेनरेशन रिफॉर्म यानी दूसरी पीढ़ी के सुधार की बात कही थी और इसे सतत प्रक्रिया बताया था। इस नाते जीएसटी दरों में परिवर्तन का क्रांतिकारी महत्व समझा जा सकता है। इसके साथ ही शारदीय नवरात्र और ग्रेगोरियन कैलेंडर से 22 सितम्बर से इन सुधारों की शुरुआत करने का महत्व भी कम नहीं है। शुभ मुहूर्त में देवी-देवताओं की आराधना के साथ कार्य शुरू करने की हमारी परंपरा भी है।
आखिर नौ दिनों का यह त्योहार शरीर और चित्त की शुद्धि ही नहीं, अपनी साधना से बहुस्वरूपा मां दुर्गा को प्रसन्न कर सिद्धि प्राप्त करने का भी सर्वोत्तम साधन है। ऐसे में नवरात्र के आरंभ जैसे अवसरों से अपने व्यापक आर्थिक सुधार के इतने महत्वपूर्ण कदम की सरकार द्वारा शुरुआत किए जाने के अपने ही खास मायने हैं।
अगर देखा जाए तो सरकार ने तो अपना काम कर दिया है। अब सुधारों के लाभ की गेंद जनता और उन लोगों के पाले में है जिन्हें इसका लाभ जनता तक पहुंचाना है। जनता का फर्ज है कि वह इस बात की निगरानी रखे कि कोई भी व्यक्ति उनके जायज हक का हनन नहीं कर पाए एवं व्यापारी वर्ग सच में जीएसटी दरों में कमी का लाभ जनता तक पहुंचाए। यही ईमानदारी भारत को विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दिशा में अहम भूमिका निभाएगी।