ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। अब अगर पीएम मोदी की चीन यात्रा के प्रभाव की बात करें तो भारत और चीन से आगे बढ़कर इसका असर पूरे क्षेत्र और व्यापक विश्व पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ वॉर के बीच प्रधानमंत्री मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक को सांकेतिक और रणनीतिक; दोनों ही रूप में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
हालांकि काफी हद तक मोदी की इस यात्रा की सराहना कूटनीतिक सफलता और यहां तक कि ट्रंप के लिए एक बड़े झटके के रूप में परिभाषित की जा रही है पर विश्व के अनेक विशेषज्ञ इसमें सतर्कता बरतने की भी सलाह दे रहे हैं। अभी तक चीन का इतिहास भारत के प्रति विरोधाभासों से ही भरा रहा है। दरअसल चीन ने कभी भी भारत का साथ नहीं दिया है और उसने संयुक्त राष्ट्र से लेकर पाकिस्तान को मदद देने तक; हर जगह भारत विरोधी रुख ही अपनाया है लेकिन इस बार जब अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत के खिलाफ टैरिफ वॉर छेड़ा तो चीन ने खुल कर भारत का साथ दिया और अमेरिका की इस मुद्दे पर कड़ी निंदा भी की। सूत्रों के मुताबिक खबर तो यह भी है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को एक पत्र तब भेजा था जब अमेरिका ने टैरिफ वॉर की शुरुआत की थी। इस पत्र में चीन ने भारत के साथ सहयोग को आगे बढ़ाने की इच्छा जाहिर की थी। इसी के बाद भारत के एनएसए अजित डोभाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी की परस्पर यात्राएं हुईं। इन यात्राओं में ही प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा का खाका खींचा गया जिसने आज पूरे वैश्विक मंच पर तहलका मचा रखा है और भारत की कूटनीति का डंका भी बजाया है। कुल मिला कर मौजूदा हालात तो यही कह रहे हैं कि भले ही चीन पर आंख बंद कर के विश्वास नहीं किया जा सकता पर वर्तमान परिदृश्य में एससीओ शिखर बैठक के दौरान भारत, चीन तथा रूस का साथ आना ‘एक नए बन रहे वर्ल्ड ऑर्डर’ का आधार जरूर बन सकता है। यदि ऐसा हो गया तो यह अमेरिका की साख पर बहुत बड़ा बट्टा होगा।
भारत-चीन इसलिए आए करीब
फुडान विश्वविद्यालय के दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र के सहयोगी शोधकर्ता जी चाओ ने एक विरोधाभास के प्रति भारत की बढ़ती जागरूकता की ओर इशारा किया। उन्होंने भारत के बदलते रवैये के पीछे चार कारणों की पहचान की। उन्होंने कहा-आर्थिक जरूरतें, अमेरिकी टैरिफ नीतियों से असंतोष, भारत और पाकिस्तान को एक साथ जोड़ने की वाशिंगटन की प्रवृत्ति और अमेरिका की दीर्घकालिक विश्वसनीयता पर नई दिल्ली का संदेह, ये चार बातें ही भारत को चीन के करीब लाईं। दरअसल, अमेरिका अक्सर हर मामले में पाकिस्तान को अपना दोस्त बताता है और खुलकर भारत के समर्थन में नहीं आता है।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी यही बात देखने को मिली। भारत को तभी से ये बात खटक गई। चीन के रेनमिन विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध स्कूल के उप-डीन जिन कैनरोंग ने वीबो पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में तर्क दिया कि ट्रंप द्वारा भारत के अपमान ने विडंबनापूर्ण रूप से चीन-भारत संबंधों के घनिष्ठ होने का मार्ग प्रशस्त किया है। बीजिंग स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर चाइना एंड ग्लोबलाइजेशन के उपाध्यक्ष विक्टर गाओ ने वीबो पर कहा-चीन-भारत संबंधों में सुधार दोनों देशों के मूलभूत हित में है लेकिन यह कहना होगा कि इस बार ट्रंप ने सराहनीय योगदान दिया है।
फुडान विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के प्रोफेसर और वाइस डीन लिन मिनवांग ने कहा कि मोदी की तियानजिन की विशेष यात्रा चीन-भारत संबंधों में सकारात्मक गति को दर्शाती है। वहीं चाइना एकेडमी ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस के दक्षिण एशियाई अध्ययन संस्थान के एसोसिएट शोधकर्ता झांग शुजियान ने कहा कि इस वर्ष एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी की व्यक्तिगत भागीदारी बीजिंग के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की नई दिल्ली की मंशा का एक स्पष्ट संकेत देती है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के टिप्पणीकार झोउ रोंग ने सुझाव दिया कि मोदी की यात्रा एससीओ की भूमिका को संस्थागत और विस्तारित करने में मदद कर सकती है, जिससे चीन-रूस-भारत त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
चाइना एकेडमी ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस के एसोसिएट रिसर्चर वांग ने मोदी की यात्रा को दोहरा उद्देश्य बताया। उन्होंने कहा, एक तो मोदी की यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल गई और दूसरा इससे रूस-चीन और भारत के बीच यह नई राह दिखाने वाली बनी। इसने रूस को ड्रैगन और हाथी के साथ मिलकर व्यापक मार्ग पर फिर से जुड़ने के लिए प्रेरित किया है।