विनोद शील
नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए ‘टैरिफ वार’ से जहां भारत समेत दुनिया भर के शेयर बाजारों में हाहाकार मच गया वहीं उन्होंने टैरिफ को ‘दवा’ बताया। ट्रंप ने 2 अप्रैल को जवाबी टैरिफ का एलान किया था। उन्होंने घोषणा की थी कि अमेरिका अब अपने लगभग सभी व्यापारिक साझेदारों पर न्यूनतम 10 फीसदी टैरिफ लगाएगा। वह उन देशों पर अधिक शुल्क लगाएगा, जो उससे बहुत ज्यादा टैरिफ वसूलते हैं। 10 फीसदी बेसलाइन गत शनिवार को पहले ही लागू हो गई थी। इसके बाद दर्जनों देशों पर ट्रंप की उच्च आयात कर दरें लागू हो गईं ं।
विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा ‘टैरिफ वार’ में भारत की स्थिति फिर भी अन्य देशों से बहुत बेहतर है। भारत पर 26 फीसदी टैरिफ लगा है, जो कई दूसरे देशों की तुलना में कम है। मसलन, वियतनाम पर 46 फीसदी और चीन पर 34 फीसदी शुल्क है। ये देश अमेरिका को भारत से निर्यात किए जाने वाले कई सामानों में टक्कर देते हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दुनियाभर के देशों पर नए टैरिफ यानी आयात शुल्क की घोषणा की थी। इसे ‘रेसिप्रोकल टैरिफ कहा जा रहा है, जिसका मतलब है कि अमेरिका अब दूसरे देशों से वही शुल्क वसूलेगा जो वे अमेरिकी सामानों पर लगाते हैं। कई देशों की अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा असर पड़ सकता है लेकिन भारत के लिए ये खबर कुछ राहत भरी भी हो सकती है।
दरअसल, अमेरिका ने सभी देशों पर 10 फीसदी का बेस टैरिफ लगाया है। बांग्लादेश पर 37 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगेगा। इसके अलावा इंडोनेशिया पर 32 फीसदी, यूरोपीय संघ पर 20 फीसदी और जापान पर 25 फीसदी टैरिफ लगेगा। इस टैरिफ के बावजूद भारत का निर्यात ज्यादातर देशों के मुकाबले अमेरिका में सस्ता रहेगा, क्योंकि एक तो मुकाबले वाले देशों से भारत के सामानों पर कम टैक्स लगेगा और दूसरा जिन देशों के सामानों पर भारत से कम टैरिफ लिया जा रहा है उनकी तुलना में भारत के सामान सस्ते होते हैं। ऐसे में भारत इस स्थिति में थोड़ा मजबूत दिखाई दे रहा है। इस भरोसे की एक बड़ी वजह ये भी है कि भारत और अमेरिका एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बाइलैटरल ट्रेड एग्रीमेंट) पर बात कर रहे हैं। अगर ये समझौता हो गया तो भारत को इन टैरिफ से राहत मिल सकती है।
साथ ही, भारत के एक्सपोर्टर्स को अपने प्रतिद्वंद्वियों जैसे चीन और वियतनाम की तुलना में फायदा हो सकता है क्योंकि उन पर ज्यादा टैरिफ है।
इन सेक्टर्स पर हो सकता है असर?
भारत ने अप्रैल-फरवरी 2025 के दौरान अमेरिका को 395.63 अरब डॉलर कीमत का सामान निर्यात किया था यानी भारत के लिए अमेरिका सबसे बड़ा एक्सपोर्ट डेस्टिनेशन है। टैरिफ बढ़ने से भारत का टेक्सटाइल, आईटी-इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि उत्पाद जैसे मछली और चावल जैसे सेक्टर प्रभावित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारत हर साल अमेरिका को 8 अरब डॉलर के कपड़े और 5 अरब डॉलर के कृषि उत्पाद भेजता है। 26 फीसदी टैरिफ से इनकी कीमतें बढ़ेंगी जिससे थोड़ा नुकसान हो सकता है लेकिन अच्छी बात ये है कि बांग्लादेश पर 37 फीसदी और वियतनाम पर 47 फीसदी टैरिफ है। ऐसे में भारत के कपड़े अमेरिका में सस्ते मिल सकते हैं।
हर साल 2396 रुपये घटेगी कमाई!
अर्थव्यवस्था पर इन टैरिफ का असर ज्यादा गहरा नहीं होगा और इस कदम से भारत की जीडीपी में 0.19 फीसदी की कमी का ही अनुमान है क्योंकि फिलहाल वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी महज 2.4 फीसदी है। इस प्रभाव को अगर प्रति परिवार पर डालकर देखा जाए तो सालाना 2396 रुपये का नुकसान हो सकता है। वस्तुत: भारत की घरेलू मांग बहुत मजबूत है, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था 6.5-7.5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ती रहेगी। एचडीएफसी बैंक और डेलॉयट जैसी संस्थाओं का मानना है कि भारत को ‘टैरिफ आर्बिट्रेज’ का फायदा मिलेगा, यानी हमारे सामान दूसरों की तुलना में सस्ते रहेंगे।
अमेरिका में ‘स्टैगफ्लेशन’ का खतरा !
ट्रंप के ‘टैरिफ वार’ से बाकी दुनिया के लिए हालात मुश्किल हो सकते हैं। अमेरिका में ये टैरिफ महंगाई बढ़ा सकते हैं। अगर डॉलर की कीमत नहीं बढ़ी तो वहां के लोग 26 फीसदी महंगे सामान खरीदेंगे।
इ ससे अमेरिका में ‘स्टैगफ्लेशन’ का खतरा है, यानी महंगाई बढ़ेगी और विकास रुकेगा। जवाबी टैरिफ लगाने पर यूरोप और एशिया जैसे इलाकों को भी नुकसान होगा। भारत के लिए ये मौका भी है कि वो नए बाजार तलाशे और यूरोपीय यूनियन या खाड़ी देशों के साथ व्यापार बढ़ाए। इसके अलावा भारत की रणनीति में घरेलू उत्पादन बढ़ाना भी शामिल है। अगर अमेरिका, यूके, बहरीन, कतर के साथ भारत ट्रेड डील करने में कामयाबी हासिल कर लेता है तो टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर सेक्टर को फायदा मिल सकता है।
ऐसे कम होगी टैरिफ की टेंशन?
भारत सरकार भी मौजूदा हालातों से निपटने के लिए तैयार है। घरेलू उद्योगों को बचाने और डंपिंग रोकने के कदम भी उठाए जा रहे हैं। इसके अलावा अमेरिका के साथ ट्रेड डील को जल्द पूरा करने की कोशिश हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये टैरिफ भारत के लिए एक मौका भी है। मसलन, टेक्सटाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन का अनुमान है कि अगले 2-3 साल में भारत को 50 बिलियन डॉलर का बाजार मिल सकता है। तो कुल मिलाकर, ट्रंप के टैरिफ से जहां दुनिया चिंतित है, वहीं भारत के लिए ये चुनौती के साथ एक अवसर भी है। सरकार और निर्यातकों को मिलकर नई रणनीति बनानी होगी, ताकि हम इस बदलते व्यापारिक माहौल में आगे बढ़ सकें।
व्यापार युद्ध की आशंका
निवेशकों को डर है कि नए टैरिफ के कारण कीमतें बढ़ने, मांग टूटने से वैश्विक मंदी आ सकती है लेकिन ट्रंप ने कहा, वह टैरिफ पर पीछे नहीं हटेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति के अड़ियल रुख के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टैरिफ के लिए जवाबी तरीकों पर विचार किया जा रहा है। चीन व हांगकांग के शेयरों में गिरावट के बाद, चीनी संप्रभु कोष बाजार को स्थिर करने का प्रयास करते देखा गया। इस बीच, ताइवान के शेयरों में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट आई जो रिकॉर्ड स्तर पर सबसे बड़ी एक दिनी गिरावट थी। स्टॉक वायदा ने यूरोप और अमेरिका के बाजारों को भी तोड़कर रख दिया।
इससे ठीक पहले ट्रंप ने एयर फोर्स वन में पत्रकारों को संकेत दिया कि वह घाटे पर चिंतित नहीं हैं जिसने विश्व शेयर बाजारों से अरबों डॉलर मिटा दिए। फ्लोरिडा में गोल्फ खेलने के बाद वापस लौटते हुए उन्होंने कहा, मैं नहीं चाहता कि कुछ भी घटे, लेकिन कभी-कभी आपको कुछ ठीक करने के लिए दवा लेनी पड़ती है। व्यापार युद्ध की आशंका से दुनियाभर के बाजारों में भारी गिरावट का सिलसिला जारी था। हांगकांग, जापान, चीन और दक्षिण कोरिया के बाजारों में गिरावट जारी है। यूरोप के प्रमुख बाजारों में भी भारी बिकवाली का दबाव रहा। जर्मनी के डीएएस, पेरिस के सीएसी, और ब्रिटेन के एफटीएसई में भी गिरावट रही।
अमेरिकी टैरिफ की जहां दुनियाभर में कड़ी निंदा हो रही है वहीं, चुनाव पूर्व डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन करने वाले अरबपति फंड मैनेजर बिल एकमैन ने आर्थिक एटमी सर्दी से बचने के लिए टैरिफ को रोकने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा, ट्रंप दुनियाभर के व्यापारिक नेताओं का भरोसा खो रहे हैं।
निवेशकों और राजनीतिक नेताओं को यह निर्धारित करने में संघर्ष करना पड़ा है कि क्या ट्रंप का टैरिफ स्थायी नई व्यवस्था का हिस्सा है या कुछ और। चीन ने टैरिफ के साथ अमेरिका पर एकतरफावाद, संरक्षणवाद और आर्थिक दादागीरी का आरोप लगाया है। विदेश मामलों के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा, अंतरराष्ट्रीय नियमों पर ‘अमेरिका फर्स्ट’ को रखना वैश्विक उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला की स्थिरता को नुकसान पहुंचाता है और दुनिया की आर्थिक सुधार को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। उन्होंने कहा, अमेरिकी करों के अंधाधुंध प्रहारों का सामना करते हुए, हम जानते हैं कि हम क्या कर रहे हैं और हमें इसे निपटाना आता है।