विनोद शील
नई दिल्ली। लगभग सात साल के लंबे अंतराल के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन और जापान की यात्रा पर गए। चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने खूब सुर्खियां बटोरीं और संपूर्ण विश्व की निगाहें इसके परिणामों पर टिकी रहीं। यही नहीं, भारत-रूस-चीन के साथ दुनिया को एक नई विश्व व्यवस्था (न्यू वर्ल्ड ऑर्डर) भी उभरती नजर आई।
अमेरिका के टैरिफ दबाव के बीच भारत, चीन और रूस शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) सम्मेलन में आर्थिक और रणनीतिक मोर्चे पर एकजुट होते दिखे। 25.497 ट्रिलियन डॉलर की संयुक्त जीडीपी और 3.1 अरब की आबादी के साथ यह तिकड़ी वैश्विक व्यवस्था में बहुध्रुवीय संतुलन की दिशा में अहम भूमिका निभा सकती है। भारत के लिए भी यह साझेदारी लाभकारी भी हो सकती है। चीन के तियानजिन में हुआ दो दिन का एससीओ शिखर सम्मेलन इस बार खासा अहम माना जा रहा है। इसमें भारत, चीन, रूस समेत 20 देशों के नेताओं ने हिस्सा लिया। इसी बीच पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात भी हुई।
शी ने साफ कहा कि भारत-चीन के लिए दोस्ती और साझेदारी ही सही राह है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी इस बैठक में मौजूद रहे। यह शिखर सम्मेलन इसलिए भी खास रहा क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत समेत कई देशों के सामान पर भारी टैक्स लगा रखा है। ऐसे में भारत, चीन और रूस जैसे तीनों बड़े देश एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं ताकि अमेरिका को मिलकर जवाब दे सकें।
अमेरिका के टैक्स से लड़ने का नया तरीका
दरअसल, ट्रंप के टैरिफ वॉर ने दुनिया के व्यापार में हड़कंप मचा दिया है। खासकर भारत को 50 फीसदी तक भारी टैक्स झेलना पड़ रहा है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस एससीओ सम्मेलन से निवेशकों और कारोबारियों को अच्छा संदेश मिला है। फिनोक्रेट टेक्नोलॉजिज के प्रमुख गौरव गोयल कहते हैं कि भारत अब अमेरिका पर निर्भर होकर छूट का इंतजार नहीं करेगा बल्कि अपने आस-पास के देशों के साथ मिलकर नए बिजनेस और निवेश के मौके खोज रहा है। चीन और रूस भी अपनी अर्थव्यवस्था को भारत के लिए ज्यादा खोल रहे हैं जिससे व्यापार बढ़ेगा। इस बैठक में ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर और पेमेंट जैसे कामों में साथ मिलकर काम करने के मौके भी तलाशे गए जो भारत के लिए फायदे की बात हो सकती है।
तीनों के आगे ट्रंप हो जाएंगे फेल
एक रिपोर्ट के मुताबिक खबर लिखे जाने तक भारत, चीन और रूस की मिलकर जीडीपी करीब 25.497 ट्रिलियन डॉलर हैै। इनके पास करीब 4.3 ट्रिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार भी है। इन तीनों की आबादी लगभग 3.1 अरब है, यानी दुनिया की कुल आबादी का 38 प्रतिशत के लगभग है। सैन्य खर्च की बात करें तो ये तीनों देश मिलकर दुनिया के कुल रक्षा बजट का लगभग पांचवां हिस्सा खर्च करते हैं जो करीब 549 अरब डॉलर है। इसके अलावा, ये विश्व की ऊर्जा खपत का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा लेते हैं।
तीनों की ताकत भी अलग-अलग हैं। चीन मैन्युफैक्चरिंग में आगे है, रूस ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत है और भारत की सेवा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। अगर ये तीनों देश साथ आ गए तो दुनिया की एकध्रुवीय ताकत यानी अमेरिकी दबदबे का मॉडल बदलकर बहुध्रुवीय व्यवस्था बन सकती है जिससे अमेरिकी डॉलर की भी चुनौती बढ़ेगी। हालांकि, अमेरिका भारत के लिए आर्थिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण है। 2024 में भारत का अमेरिका को निर्यात 77.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। अमेरिकी उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे गए भारतीय सामानों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में अमेरिका-भारत के बीच कुल व्यापार लगभग 212.3 अरब डॉलर रहा जो पिछले साल से 8.3 प्रतिशत अधिक है।
एक अन्य पहलू यह भी है कि भारत के लिए चीन और रूस के साथ गठजोड़ एक दोधारी तलवार है। यह अमेरिका के दबाव से बचाव का मंच तो देता है लेकिन चीन के साथ सीमा विवाद और पाकिस्तान के कारण सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी व्याप्त हैं। इसके अलावा भारत की अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर निर्भरता अभी भी काफी है। फिलहाल यह तिकड़ी एक नए वैश्विक आर्थिक समीकरण की तरफ इशारा करती है जहां अमेरिका के टैरिफ के खिलाफ मजबूती से खड़े होने की संभावना नजर आ रही है।