ब्लिट्ज ब्यूरो
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को रूस से तेल खरीदने की सजा देना चाहते हैं लेकिन उनका ये वार जरा उल्टा पड़ता दिख रहा है। हालात ये हैं कि अमेरिकन व्यापारियों और उपभोक्ताओं को नुकसान होने लगा है जब कुछ ही हफ्ते पहले ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर 25 फीसदी का बेसलाइन टैरिफ लगाया था।
अब यह शुल्क दोगुना कर दिया गया है, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का नाम अमेरिका के हाई टैरिफ वाली लिस्ट में दर्ज हो गया है। डोनाल्ड ट्रंप ने साफ तौर पर कहा है कि यह टैरिफ भारत को रूसी तेल का आयात करने और रूस को यूक्रेन युद्ध में आर्थिक रूप से समर्थन देने की सजा देने के लिए लगाया गया है।
अमेरिका को खुद हो रहा नुकसान
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कंपनियां और उपभोक्ता पहले से ही ट्रंप के टैरिफ वॉर का बोझ महसूस कर रहे हैं। अब भारतीय उत्पादों पर 50 फीसदी टैरिफ लगने से कीमतें और बढ़ सकती हैं। ऐसे में रोजगार के हालात और बिगड़ सकते हैं। भारत से अमेरिका निर्यात होने वाले मुख्य उत्पादों में दवाइयां, स्मार्टफोन जैसी डिवाइस और कपड़े शामिल हैं। हालांकि स्मार्टफोन पर यह नया टैरिफ लागू नहीं होगा क्योंकि ये रेसिप्रोकल टैरिफ से छूट में आते हैं। पिछले एक दशक में अमेरिका और भारत के बीच व्यापार दोगुना हुआ है। साल 2023 में अमेरिका ने भारत से करीब 87 अरब डॉलर का सामान आयात किया जबकि 42 अरब डॉलर का निर्यात किया। ऐसे में ट्रंप के लगाए गए भारी टैरिफ के बाद अमेरिकी कंपनियों की उस स्ट्रैटजी पर भी असर पड़ेगा जिसमें उन्होंने चीन को छोड़कर भारत में मैन्युफैक्चरिंग करनी शुरू की थी।
भारत को अमेरिका से जो चीजें सबसे ज्यादा निर्यात होती हैं, उनमें तेल और गैस, केमिकल्स और एयरोस्पेस उपकरण शामिल हैं। अगर भारत बदले में जवाबी टैरिफ लगाता है तो ये अमेरिकी उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। भारत ने पहले ही संकेत दे दिया था कि वह अमेरिका के इस फैसले का जवाबी कार्रवाई से उत्तर देगा, खासकर जब ट्रंप ने सेकेंडरी सैंक्शंस की बात की थी।
चीन-रूस और भारत की दोस्ती
इसके अलावा अमेरिका के राजनीतिक विश्लेषक जिस बात को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित हैं, वो है- चीन, रूस और भारत की दोस्ती।
इसमें भी रूस और चीन तो पहले से ही एक साथ हैं लेकिन एशिया के दो सबसे बड़े प्लेयर चीन और भारत के रिश्तों में बर्फ जमी थी। ट्रंप के टैरिफ वॉर से इनके रिश्तों की बर्फ पिघलती नजर आ रही है, जो अमेरिका के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की कोशिश और हाल ही में एससीओ समिट को लेकर भारत और चीन के बीच लगातार हो रही वार्ता बता रही है कि अमेरिका के टैरिफ वॉर के आगे झुकने का मूड इनमें से किसी का नहीं है।
चीन को बैलेंस करने के लिए पहले अमेरिका की पॉलिसी भारत की तरफ झुकी नजर आती थी लेकिन अब अमेरिका की दादागिरी का जवाब दोनों देश मिलकर देने की बात कर रहे हैं।