ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। साल 2025 भारत के लिए जलवायु संकट से भरा रहा। पूरे साल लोग चरम मौसमी घटनाओं से जूझते रहे। जनवरी से नवंबर के बीच 334 में से 331 दिन देश के किसी न किसी हिस्से में लू, शीत लहर, आकाशीय बिजली, भीषण बारिश, बाढ़, भूस्खलन, तूफान या मेघ फटने जैसी घटनाओं के नाम रहे।
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ के विश्लेषण के मुताबिक इन 11 महीनों में चरम मौसम ने 4,419 लोगों की जान ली, करीब 1.74 करोड़ हेक्टेयर फसल क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया, 1,81,459 से अधिक घर तबाह हुए और लगभग 77,189 पशुओं की मौत दर्ज की गई। यह केवल आंकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि उस बदलते भारत की तस्वीर है, जहां जलवायु परिवर्तन अब भविष्य का खतरा नहीं, बल्कि वर्तमान का सबसे बड़ा संकट बन चुका है।
99 फीसदी दिनों में चरम मौसमी घटनाएं
जनवरी से नवंबर 2025 के बीच 99 प्रतिशत से अधिक दिनों में देश में चरम मौसमीय घटनाएं दर्ज की गई। 334 दिनों की इस अवधि में केवल तीन दिन ऐसे रहे, जब किसी भी हिस्से से किसी बड़ी चरम घटना की रिपोर्ट नहीं आई। लू और शीत लहर से लेकर आकाशीय बिजली, तूफान, चक्रवात, अत्यधिक वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन तक लगभग हर किस्म की जलवायु आपदा ने साल भर देश को घेरे रखा। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह निरंतरता अपने आप में चेतावनी है। अब चरम मौसम किसी एक मौसम या क्षेत्र तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि पूरे साल और पूरे देश में फैल चुका है।
कृषि क्षेत्र में नुकसान और भी तेजी से बढ़ा
2022 में जहां करीब 19.6 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित हुआ था, वहीं 2025 में यह आंकड़ा लगभग नौ गुना बढ़कर 1.74 करोड़ हेक्टेयर तक पहुंच गया। यह रुझान साफ बताता है कि जलवायु संकट भारत को खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका के लिए सीधा खतरा बन चुका है।
तापमान और वर्षा के टूटते रिकॉर्ड
साल 2025 में जलवायु से जुड़े कई पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए। जनवरी 1901 के बाद से यह भारत की पांचवीं सबसे शुष्क जनवरी रही। फरवरी पिछले 124 वर्षों में सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया। मार्च में देश का औसत अधिकतम तापमान सामान्य से 1.02 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। यह सब तब दर्ज किया गया, जब भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) पहले ही तापमान विचलन को आधार अवधि को 1981-2010 से बदलकर अपेक्षाकृत गर्म 1991-2020 कर चुका है।
बिजली, तूफान, बाढ़ सबसे घातक
साल के दौरान आकाशीय बिजली और आंधी-तूफान सबसे घातक साबित हुए जिनसे 1,538 मौतें हुई। लगातार मानसूनी बारिश, मेघ फटने, बाढ़ और भूस्खलन से 2,707 लोगों की जान गई।
साल भर फैला संकट: अब कोई सामान्य मौसम नहीं पिछले चार वर्षों का रुझान साफ दिखाता है कि भारत में अत्यधिक मौसम अब केवल मानसून या गर्मियों तक सीमित नहीं रहा। सर्दी, प्री-मानसून, मानसून और पोस्ट-मानसून, हर मौसम में लगातार आपदाएं दर्ज हो रही हैं।































