ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र की आश्रम शालाओं या स्कूलों में बच्चों की अप्राकृतिक मौतों पर निराशा व्यक्त करते हुए गहरी चिंता जताई है और पूछा कि एक साल में 80 अप्राकृतिक मौतों का कौन जिम्मेदार है। आदिवासी परिवारों के बच्चों की शिक्षा के लिए राज्य द्वारा दूरदराज इलाकों में आश्रम शालाएं चलायी जाती हैं।
वर्तमान में महाराष्ट्र के आदिवासी विकास विभाग के तहत राज्य द्वारा 497 सरकारी और 544 निजी संस्थानों द्वारा आश्रम शाला या स्कूल चलाए जाते हैं।
कोर्ट को सौंपे गए चार्ट के मुताबिक, 2023-24 के बीच सरकारी स्कूलों में 78 बच्चों की मौत हुई, जबकि सहायता प्राप्त स्कूलों में 60 बच्चों की मौत हुईं हैं. साल 2019 और 2024 के बीच सरकारी स्कूलों में 493 बच्चों की मौत हुई, जबकि सहायता प्राप्त स्कूलों में 318 बच्चों की मौत हुईं हैं।
पीठ का आदेश
मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने अतिरिक्त लोक अभियोजक प्राजक्ता शिंदे को कई आश्रम शालाओं में से एक का दौरा करने और उसकी स्थिति देखने को कहा। उन्होंने कहा, क्या आपने कभी ऐसे संस्थानों का दौरा किया है? कृपया ऐसे किसी संस्थान में जाएं और वहां रहने वाले लोगों की दुर्दशा देखें। आपने उन्हें आश्रम स्कूल का नाम दिया है और उनकी दुर्दशा देखें। आश्रम शालाओं में चल रही योजनाएं सिर्फ कागजी कार्रवाई हैं, ये योजनाएं कभी भी बच्चों तक नहीं पहुंचीं।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, समाज में उनके समावेशन की समस्या है, उनकी शिक्षा, पहनावे की समस्या है. इनमें से किसी एक स्कूल में जाएं और फिर आप विभाग के सचिव पर प्रभाव डालने की बेहतर स्थिति में होंगे।
पीठ 2013 में एक रवींद्र तल्पे द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बुनियादी सार्वजनिक उपयोगिताओं को सुनिश्चित करने के लिए सही व्यवस्था नहीं की गई है जो आम तौर पर राज्य भर में ऐसे आश्रम शालाओं में दी जाती हैं। और इसके कारण राज्य भर में कई मौतें हुईं हैं।
जनहित याचिका में कहा गया है कि कई आश्रम स्कूलों में शौचालय की उचित सुविधा नहीं है। ऐसे में बच्चे खुले में शौच करने आते हैं तो सांप के काटने से उनकी मौत के मामले सामने आते हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील उदय वारुंजीकर ने बताया कि कुछ साल पहले भी यह आंकड़ा लगभग 80 मौतों का था और अब भी यह उतना ही है।
वारुंजीकर ने कहा, यह वस्तुतः वैसा ही है. कम से कम पहले उन्होंने कहा था कि सांप के काटने, अनुचित चिकित्सा व्यवस्था, डूबने से 80 बच्चों की मौत हो गई, लेकिन अब वे सिर्फ यह कह रहे हैं कि 80 बच्चों की मौत हो गई. बिना कोई कारण बताए यह अब भी वैसा ही है।
14 नवंबर को होगी अगली सुनवाई
उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) ने एक अध्ययन किया था और इन स्कूलों में सुरक्षा में सुधार के लिए सिफारिशें दी थीं, लेकिन उन सिफारिशों पर सरकार द्वारा कोई अनुपालन नहीं किया गया है।
पीठ ने राज्य के साथ-साथ याचिकाकर्ता को टीआईएसएस द्वारा की गई सिफारिशों और इसे लागू करने के लिए राज्य अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदमों के बीच अंतर को देखते हुए दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। अब इस मामले की सुनवाई 14 नवंबर को सुनवाई होगी।