ब्लिट्ज ब्यूरो
भारत के लोकतंत्र में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी ने अब उन्हें चुनाव में डिसाइडिंग फैक्टर बना दिया है। पिछले कुछ चुनावों में महिलाओं ने जिस भी पार्टी को वोट किया, वहां उसी दल की सरकार बनी।
भारत के लोकतंत्र को मजबूत करने में अब देश की महिलाएं आधार साबित हो रही हैं। पिछले कई चुनावों में उनकी भूमिका निर्णायक रही है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड से लेकर बिहार तक के विधानसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी ने नया इतिहास रच दिया है। इन चुनावों में यह साबित हो गया कि महिलाएं जिस भी राजनीतिक पार्टी की ओर मुड़ीं, वहां उसी दल की सरकार बनी। इसका उदाहरण मध्यप्रदेश में 2023 में, महाराष्ट्र, हरियाणा और छत्तीसगढ़ में 2024 में हुए विधानसभा चुनावों में साफ देखा गया और अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी महिला मतदाताओं की रिकॉर्ड भागीदारी ने न केवल वोटिंग प्रतिशत को ऊंचा उठाया बल्कि चुनावी समीकरणों को भी पलट कर रख दिया।
हालांकि महिला वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक दल भी कई तरह की योजनाएं लाते हैं और अभियान चलाते हैं। मतदान एक ऐसी प्रक्रिया है जिस पर सभी भारतीयों का हक है। इसलिए जरूरी है मतदान दिवस का उत्सव मनाते हुए हर महिला को घर से बाहर आकर समाज, परिवार और खुद के लिए वोटिंग के अधिकार का उपयोग करना चाहिए। अब यह देखा जा रहा है कि पुरुषों से अधिक महिलाएं मतदान में भाग ले रही हैं। इसलिए आवश्यक है कि भारतीय निर्वाचन आयोग से जुड़ी अनेक अहम जानकारियां महिलाओं को भी अवगत होना जरूरी है। इसके लिए मतदान से इतर भी ऐसे कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए ताकि महिलाएं उनसे भलीभांति परिचित हों।
महिलाओं ने पिछले कुछ चुनावों में जिस भी पार्टी को वोट दिया, वही पार्टी सत्ता में आई। इससे महिलाओं की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। चुनाव आयोग के आंकड़ों से साफ है कि महिलाओं ने कल्याणकारी योजनाओं के लालच में नहीं बल्कि सशक्तिकरण की चाह में वोट डाले जिससे सत्ताधारी गठबंधनों को लाभ हुआ। मध्य प्रदेश के 2023 के चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 76 प्रतिशत रहा जो राज्य की 2.72 करोड़ महिला मतदाताओं में से अधिकांश को मतदान केंद्रों पर आने को दर्शाता है। यहां भाजपा की ‘लाडली बहना’ योजना ने महिलाओं को प्रति माह 1,250 रुपये की सहायता दी। इससे न केवल वोटर टर्नआउट बढ़ा बल्कि भाजपा को 163 सीटों पर विजय भी दिलाई। विश्लेषकों का मानना है कि यह ‘महिला वेव’ भाजपा की राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा बन गई है। महाराष्ट्र 2024 के चुनाव में भी यही ट्रेंड देखने को मिला। यहां महिला मतदाताओं का टर्नआउट 65.22 प्रतिशत पहुंचा, जो 2019 के 59.26 प्रतिशत से 5.95 प्रतिशत ज्यादा था। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सरकार की ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिन’ योजना ने 2.3 करोड़ महिलाओं को 1,500 रुपये मासिक दिए जिससे 15 विधानसभाओं में महिलाओं ने पुरुषों को पछाड़ दिया। लिहाजा महायुति (भाजपा-शिवसेना-एनसीपी) ने 230 सीटें जीतीं, जबकि महा विकास अघाड़ी को 46 ही मिलीं। महिलाओं ने जाति-धर्म की दीवारें तोड़कर वेलफेयर पर वोट दिए। इसके बाद महिलाओं ने हरियाणा में तीसरी बार भाजपा सरकार की वापसी कराई। उसके बाद झारखंड में ‘मैया योजना’ ने हेमंत सोरेन को फिर से मुख्यमंत्री बनवा दिया। वैसे भारत में आजादी के साथ महिलाओं को मतदान देने का अधिकार 1947 में मिला। इसके लिए सरोजिनी नायडू, हीराबाई दादा, राजकुमारी अमृत कौर के साथ कई अन्य महिलाओं ने लगातार मतदान पर महिलाओं का भी हक जैसे कई अभियान चलाए और याचिका भी दायर की। अब वर्तमान में महिलाओं ने चुनावी नतीजों को इस तरह का रूप दिया है कि राजनीतिक दल अब इसे नज़रअंदाज नहीं कर सकते हैं। बिहार में महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी कोई अचानक बदलाव नहीं है बल्कि ये पिछले 10 साल से जारी स्थिर रुझान का हिस्सा है। साल 2010 में महिलाओं और पुरुषों के मतदान में सिर्फ़ तीन प्रतिशत का अंतर था, जो 2015 में बढ़कर सात प्रतिशत हो गया। वहीं 2020 में ये अंतर पांच प्रतिशत था तो 2025 में ये लगभग नौ प्रतिशत हो गया।
हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार एनडीए के समर्थन में 48 प्रतिशत महिलाओं ने वोट किया वहीं 46 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महिलाओं ने वोटरों और उम्मीदवारों, दोनों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि उम्मीदवार के रूप में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत सीमित रहा। इस चुनाव में 2,357 पुरुषों ने चुनाव लड़ा वहीं सिर्फ 258 महिलाओं ने ही चुनाव लड़ा। कुल मिला कर भारत के लोकतंत्र में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी ने अब उन्हें चुनाव में डिसाइडिंग फैक्टर बना दिया है। पिछले कुछ चुनावों में महिलाओं ने जिस भी पार्टी को वोट किया, वहां उसी दल की सरकार बनी।




























