दीपक द्विवेदी
अब बड़ा सवाल यह है कि यह विरोध क्या वाकई मुसलमानों के हित में है अथवा यह सिर्फ कुछ रसूखदारों के निहित स्वार्थ मात्र से जुड़ा है? इसका फैसला तो इस वर्ग के लोगों को स्वयं ही करना होगा जिसकी जिम्मेदारी इस समाज के समझदार वर्ग के कंधों पर सबसे ज्यादा है।
वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 कानून बन गया है। गरमागरम बहस के बाद संसद के दोनों सदनों से पारित हो कर तथा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से गत शनिवार देर रात मंजूरी मिलने के बाद वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 अब कानून बन चुका है। इसके साथ ही राष्ट्रपति मुर्मू ने मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2025 को भी अपनी स्वीकृति दे दी। उल्लेखनीय है कि विधेयक को राज्यसभा ने गुरुवार 3 अप्रैल को 13 घंटे से अधिक चली मैराथन बहस के बाद पारित कर दिया था जबकि इससे एक दिन पहले लोकसभा ने इसे मंजूरी दे दी थी। विधेयक को पारित करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में आधी रात के बाद तक कार्यवाही चली थी जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। नए कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग और वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण को रोकना है। केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने कहा है कि यह कानून मुस्लिम विरोधी नहीं है। सरकार ने मुस्लिमों को आश्वस्त किया कि यह बिल उनकी मस्जिद एवं दरगाह छीनने और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के लिए नहीं है बल्कि संपत्तियों के नियमन और प्रबंधन के लिए लाया गया है।
यहां यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि संयुक्त संसदीय समिति के गठन सहित छह महीने की चर्चा के बाद वक्फ संशोधन विधेयक को संसद में पेश किया गया। राज्यसभा में 128 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में और 95 सदस्यों ने विरोध में मत दिया जबकि लोकसभा में इसे पारित होने के लिए 288 सदस्यों का समर्थन मिला और 232 ने इसका विरोध किया। एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस कानून को मुसलमानों पर हमला बताते हुए लोकसभा में विधेयक की प्रति फाड़ दी थी जिसे किसी भी दृष्टि से लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। ज्ञात हो कि सदन में सभी को नियमों और मान्य परंपराओं के अनुसार अपनी बात संवैधानिक तरीके से रखने का अधिकार प्राप्त है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि सदन के वरिष्ठ सदस्य अपने आचरण से ऐसा उदाहरण पेश करें जो भविष्य के लिए एक आदर्श की स्थापना करे। शायद इसीलिए वक्फ संशोधन विधेयक को असंवैधानिक कहने के लिए विपक्षी दलों की आलोचना करते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कहा कि वक्फ संपत्ति से संबंधित कानून दशकों से अस्तित्व में है और विरोध का ऐसा तौर-तरीका औचित्यपूर्ण नहीं माना जा सकता।
अब बात करते हैं कानून बन चुके वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 की। दरअसल वक्फ संशोधन विधेयक के रूप में यह स्वतंत्र भारत में एक बड़े सुधार की दिशा में सार्थक कदम के रूप में आगे बढ़ चुका है। सारगर्भित और व्यापक विचार-विमर्श के बाद इस विधेयक का पारित होना इसके समग्र महत्व को ही प्रतिष्ठापित करता है। देश के धार्मिक और सामाजिक सुधारों की दिशा में यह एक मील का पत्थर साबित होगा; इसमें कोई दोराय नहीं। सरकार जो बदलाव ला रही है, निश्चित रूप से वह मुसलमानों के लिए एक सुनहरा अवसर है जिससे वे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में तेजी से कदम आगे बढ़ सकते हैं। वक्फ संपत्तियों पर सदैव से ही एक रहस्यमय चुप्पी सी बनी रही है। यह कहना सही ही है कि आम मुसलमानों की जिंदगी में इसका सीधा कोई प्रभाव नजर नहीं आता पर जब कभी भी इस पर नरेन्द्र मोदी की सरकार कोई परिवर्तन करने का प्रयास करती है तो एक विशेष वर्ग इसके विरोध में आ कर खड़ा होने लगता है।
यह बात किसी भी तरह समझ नहीं आती कि जिस वक्फ संपत्ति का लाभ 99 प्रतिशत से भी अधिक मुसलमानों को अब तक नहीं मिल सका है, उसकी वर्तमान व्यवस्था को बचाने के लिए इतना बखेड़ा और हंगामा क्यों किया जाता है? यही नहीं, एक सही कदम के विरोध में ऐसे लोग शीर्ष आदलत के दरवाजे तक भी पहुंचन में कोई हिचक महसूस नहीं करते जबकि तमाम मुस्लिम स्कॉलर भी इस संशोधित कानून के पक्षधर हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि यह विरोध क्या वाकई मुसलमानों के हित में है अथवा यह सिर्फ कुछ रसूखदारों के निहित स्वार्थ मात्र से जुड़ा है? इसका फैसला तो इस वर्ग के लोगों को स्वयं ही करना होगा जिसकी जिम्मेदारी इस समाज के समझदार वर्ग के कंधों पर सबसे ज्यादा है।