ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट के पांच अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है। इन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति एल विक्टोरिया गौरी, न्यायमूर्ति पीबी बालाजी, न्यायमूर्ति केके रामकृष्णन, न्यायमूर्ति आर. कलैमाथी, और न्यायमूर्ति के गोविंदराजन तिलकवाडी के नाम शामिल हैं। इन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी का नाम पहले खूब चर्चा में रहा है।
न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति 2023 में विवादों में घिर गई थी, जब कुछ वीडियो में उनके कथित नफरती भाषण सामने आए थे। इसके आधार पर उनकी नियुक्ति को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका भी दायर की गई थी। याचिका की सुनवाई उसी दिन हुई, जिस दिन उनकी नियुक्ति निर्धारित थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कॉलेजियम द्वारा स्वीकृत उम्मीदवार की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती।
विरोध इसलिए भी हुआ था
पेशे से वकील रहीं लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी का विरोध इसलिए भी हुआ था क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर खुद को बीजेपी महिला मोर्चा का राष्ट्रीय महासचिव बताया था। आठ अक्टूबर, 2010 को उन्हें केरल बीजेपी महिला मोर्चा का इंचार्ज बनाया गया था।
उन्होंने साल 2014 के आम चुनाव में तमिलनाडु में बीजेपी के लिए प्रचार किया था। एक रिपोर्ट के अनुसार, चूंकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है, इसलिए यह आरोप लगा था कि मद्रास हाई कोर्ट में उनकी नियुक्ति का राजनीतिक झुकाव हो सकता है। वहीं, गौरी की अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ उनके कथित ‘हेट स्पीच’ के लिए व्यापक रूप से आलोचना की गई थी। हाईकोर्ट के कुछ बार वकीलों ने तो गौरी की सिफारिश का विरोध करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को संबोधित अलग-अलग लेटर्स भी लिखे थे।