डा. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। अंतरिक्ष की अंतहीन दुनिया और ब्रह्मांड के अज्ञात रहस्यों की पड़ताल करने की दिशा में भारत ने एक ऐतिहासिक मील का पत्थर पार कर लिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने धरती से 475 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की कक्षा में वो काम कर दिखाया है जो अब तक दुनिया के सिर्फ तीन देश ही कर पाए थे। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा देश बन गया है जो अंतरिक्ष में बेहद तेज रफ्तार से चक्क र लगा रहे दो उपग्रहों को आपस में जोड़ने में कामयाब हुआ है। इसे डॉकिंग कहते हैं। इसरो का स्पैडेक्स डॉकिंग मिशन कामयाब हो गया है।
इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर देश को इसके साथ ही एक शानदार गुड मॉर्निंग मैसेज दिया। इसरो ने लिखा भारत ने अंतरिक्ष के इतिहास में अपना नाम जोड़ लिया है। गुड मॉर्निंग इंडिया। इसरो के स्पैडेक्स ने डॉकिंग की ऐतिहासिक कामयाबी को हासिल कर लिया है। इस पल का गवाह बनने पर हमें नाज है।
कई सफलताएं दर्ज, लेकिन यह खास
अंतरिक्ष में भारत पहले ही कई कामयाबियां हासिल कर चुका है। भारत एक साथ सौ उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में उतार चुका है। दूसरे देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेज चुका है। चांद पर उसका लैंडर उतर चुका है, उसका रोवर चांद की सतह को नाप चुका है। चांद पर पानी है- भारत ये भी दुनिया को बता चुका है। मंगल ग्रह पर अपना यान तक भेज चुका है, वहां से लगातार आठ साल तक वैज्ञानिक जानकारियां हासिल कर चुका है। ऐसे में ये जानने की इच्छा सबकी होगी कि इस डॉकिंग मिशन में ऐसा क्या है जो इसकी कहानी अंतरिक्ष में भारत की ताजा कामयाबी को इतना गाढ़ा कर रही है।
दरअसल भारत ब्रह्मांड की कई गुत्थियों को सुलझाने की दिशा में तभी तेजी से आगे बढ़ सकता है, जब अंतरिक्ष में कुछ समय बिताया जा सके। अपना मानव मिशन अंतरिक्ष और चांद तक भेजा जा सके। अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन बनाया जा सके। इसके लिए इसरो के स्पैडेक्स यानी यानी स्पेस डाकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन का कामयाब होना ज़रूरी था।
भारत ने कैसे हासिल की कामयाबी
इसके लिए भारत ने 30 दिसंबर को अपने सबसे भरोसेमंद रॉकेट पीएसएलवी सी60 के जरिए 24 पेलोड्स के साथ-साथ दो छोटे यानों को अंतरिक्ष में भेजा। ये थे एसडीएक्स01 जो चेजर था और एसडीएक्स02 जो टारगेट था। इन्हें स्पैडेक्स मिशन के तहत भेजा गया। चेजर यानी वो यान जिसे आगे उड़ रहे टारगेट यान का पीछा कर उसे अपनी जकड़ में लेना था। अंतरिक्ष में 220 किलोग्राम वजनी इन दोनों उपग्रहों के आलिंगन पर पूरी दुनिया की निगाहें थीं, लेकिन ये इतना आसान नहीं था। दोनों उपग्रह धरती से 475 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की कक्षा में छोड़े गए जहां उन्होंने एक दूसरे से सुरक्षित दूरी पर पृथ्वी का चक्क र लगाना शुरू कर दिया।
दोनों की रफ़्तार कितनी थी ये सुनकर आप हैरान होंगे। ये रफ्तार थी 28,800 किलोमीटर प्रति घंटा जो एके 47 राइफल की गोली की रफ्तार से दस गुना से भी ज़्यादा है। अब आपको अंदाजा आएगा कि इस रफ्तार से उड़ रहे सवा दो क्विंटल के दो अलग अलग उपग्रहों को अंतरिक्ष में जोड़ना यानी डॉकिंग कितनी बारीकी का काम होगा। वैज्ञानिक गणना में जरा सी भी चूक की गुंजाइश नहीं थी। यही वजह रही कि इसरो ने डॉकिंग से पहले कई बार परीक्षण किये। 7 जनवरी और 9 जनवरी को डॉकिंग की दो शुरूआती कोशिशों को अधूरा छोड़ दिया गया क्योंकि यान ड्रिफ्ट कर रहे थे यानी अपने रास्ते से थोड़ा हट रहे थे, इस वजह से काफी करीब आने के बावजूद डॉकिंग को टाला गया। इस दौरान दोनों यानों ने एक दूसरे की तस्वीरें भी खींची। 12 जनवरी को इसरो दोनों यानों को तीन मीटर तक करीब ले आया और फिर उन्हें सुरक्षित दूरी पर वापस पहुंचा दिया।
इन कोशिशों से मिले डेटा का विश्लेषण कर फाइनल डॉकिंग की तैयारी की गई जो कामयाब हो गई। चेजर यान एसडीएक्स01 ने टारगेट यान एसडीएक्स02 को कामयाबी के साथ पकड़ लिया। इसके बाद इसरो के वैज्ञानिक एके 47 राइफल की गोली से दस गुना तेजी से अंतरिक्ष में उड़ रहे दो यानों की रिलेटिव वेलोसिटी यानी सापेक्ष वेग को शून्य तक लाए और इस तरह दोनों एक दूसरे से जुड़ पाए और एक अंतरिक्ष यान बन गए। अब दोनों एक ही सिग्नल पर एक अंतरिक्ष यान की तरह बर्ताव कर रहे हैं।
अभी कई अलग-अलग परीक्षण बाकी
लेकिन अभी ये प्रयोग पूरा होना बाकी है। इसरो के मुताबिक इसके बाद दोनों यानों या कहें उपग्रहों के बीच बिजली ट्रांसफर की जाएगी। ऐसा करने के बाद भविष्य में एक यान अंतरिक्ष में दूसरे यान को ऊर्जा दे सकेगा या बिजली सप्लाई कर सकेगा।
इसके बाद दोनों को एक दूसरे से अलग किया जाएगा यानी अनडाकिंग और वो भी कामयाब होनी उतनी ही ज़रूरी है जितनी डाकिंग। तकनीक में ये महारथ भविष्य के कई महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए काफी जरूरी है।
दोनों उपग्रह अलग होने के बाद अगले दो साल तक कई अलग अलग परीक्षण और प्रयोग करेंगे। स्पैडेक्स मिशन का कामयाब होना भविष्य के कई मिशनों की बुनियाद बन जाएगा।
सालों से देख रहे थे यह सपना: नंबी नारायण
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भारत की इस कामयाबी पर कहा कि अब हम दुनिया के उन 3-4 देशों में से हैं जो इस विशिष्ट लीग में शामिल हैं। वहीं इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण ने कहा कि यह कुछ ऐसा है, जिसका सालों में से हम सपना देख रहे थे। यह कुछ ऐसा है जिसे सिर्फ तीन देशों अमेरिका, रूस और चीन ने हासिल किया है और अब हम ऐसा करने वाले चौथे देश हैं। यह इसरो के भविष्य के मिशनों खासकर चंद्रयान 4 और गगनयान मिशनों से पहले एक आवश्यकता थी। भविष्य के महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए इसरो को ऐसी कई नई टेक्नोलॉजी पर महारथ हासिल करनी है।
इसी दिशा में 2023 में चंद्रयान 3 मिशन के तहत भारत चांद पर अपना विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर पहले ही उतार चुका है। इसी मिशन के तहत एक हॉप एक्सपेरिमेंट किया गया था, जिसमें विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर एक जगह से उड़ाकर कुछ दूरी पर दूसरी जगह उतारा गया था।
ये प्रयोग 2027 तक भारत के अगले मिशन चंद्रयान 4 के लिए अहम साबित होगा। इस मिशन के तहत चांद पर लैंडर को उतारने, वहां से सैंपल जमा कर वापस धरती पर लाने की तैयारी है। इस मिशन के नतीजे चांद पर किसी भारतीय को उतारने में अहम साबित होंगे। इस मिशन के तहत दो अलग-अलग लॉन्च से पांच मॉड्यूल अंतरिक्ष में भेज जाएंगे। मॉड्यूल्स की डॉकिंग और अनडॉकिंग में महारथ इस मिशन को कामयाब बनाएगी। इसी की अगली कड़ी में भारत की योजना 2040 तक चांद पर किसी भारतीय को उतारने की है। चांद पर किसी अंतरिक्ष यात्री को उतारने और फिर पृथ्वी पर वापस लाने के लिए भी अलग अलग यानों को आपस में जोड़ने, अलग करने और वापस धरती पर लौटने से जुड़ी टेक्नोलॉजी पर महारथ हासिल करनी जरूरी है।
अंतरिक्ष स्टेशन बनाने में भी आएगा काम
भारत 2035 तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की तरह अपना भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की तैयारी कर रहा है। इसके तहत आठ लॉन्च किए जाएंगे जिनसे भेजे गए अलग अलग मॉड्यूल्स को अंतरिक्ष में जोड़कर अंतरिक्ष स्टेशन तैयार किया जाएगा। डॉकिंग- अनडॉकिंग का अनुभव उसमें भी काम आएगा। इन रोबोटिक मॉड्यूल्स का पहला हिस्सा 2028 तक लॉन्च करने की योजना है।
हालांकि इस सबसे पहले इसरो की निगाह अपने गगनयान मिशन को कामयाब बनाने की है। इसके तहत 2025 और 2026 में बिना अंतरिक्ष यात्री के मिशन भेजे जाएंगे जो अंतरिक्ष में किसी भारतीय को भेजने के पहले मिशन की बुनियाद रखेंगे। 2026 के अंत तक किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में पहुंचाने और सुरक्षित वापस लाने का लक्ष्य है। इसके लिए क्रू इस्केप सिस्टम से लेकर कई तरह की टेक्नोलॉजी को परखा जाएगा।
सबसे पहले अमेरिका रहा सफल
इनके अलावा भी इसरो के कई और मिशन कतार में हैं। भारत ने जिस डॉकिंग मिशन में कामयाबी हासिल की है, उस पर अभी तक दुनिया के तीन देश ही महारथ हासिल कर पाए थे। ये काम दरअसल है ही इतना जटिल। चांद पर इंसान को भेजने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले अमेरिका ने डॉकिंग का कामयाब प्रयोग किया। 16 मार्च 1966 को लॉन्च हुआ जेमिनी 8 अंतरिक्ष यान पहला यान बना जिसे एजेंडा टार्गेट यान के साथ जोड़ा गया। खास बात ये है कि यह क्रीव्ड मिशन था जो धरती का चक्क र लगा रहा था। इस मिशन में एक अंतरिक्ष यात्री थे नील आर्मस्ट्रांग। वही अंतरिक्ष यात्री जिन्होंने 1969 में चांद पर सबसे पहली बार कदम रखे। उनके साथ दूसरे अंतरिक्ष यात्री थे डेविड स्कॉट। डॉकिंग के इस पहले परीक्षण की कामयाबी ने इतिहास रच दिया। जुड़े हुए दोनों यानों ने इसके बाद पृथ्वी के दो चक्क र लगाए लेकिन इसके बाद अचानक कुछ पल ऐसे आए जब सबके होश उड़ गए। जेमिनी 8 के फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम के थ्रस्टर में कुछ गड़बड़ी आने से अंतरिक्ष यान काबू से बाहर होने लगा। कमांड पायलट नील आर्मस्ट्रांग ने धरती पर नासा के वैज्ञानिकों को इसकी जानकारी दी।