आस्था भट्टाचार्य
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के बीच साझेदारी के तहत जीएसएलवी रॉकेट से निसार उपग्रह को कक्षा में स्थापित कर दिया गया। निसार उपग्रह को दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों, नासा और इसरो ने संयुक्त रूप से विकसित किया है।
इसरो के जीएसएलवी एफ-16 ने लगभग 19 मिनट की उड़ान के बाद और लगभग 745 किलोमीटर की दूरी पर निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार) उपग्रह को सूर्य तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) में स्थापित कर दिया। निसार उपग्रह दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच एक दशक से अधिक समय तक जारी रहे तकनीकी सहयोग के आदान-प्रदान का परिणाम है।
उचित कक्षा में स्थापित
इसरो और नासा के बीच उपग्रह के लिए यह अपनी तरह की पहली साझेदारी है। इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 102वें प्रक्षेपण के बारे में कहा, ‘मुझे यह घोषणा करते हुए अत्यंत खुशी हो रही है कि जीएसएलवी एफ-16 ने निसार उपग्रह को सफलतापूर्वक इच्छित कक्षा में स्थापित कर दिया है।’
यह दुनिया का सबसे महंगा मिशन है, जिसकी अनुमानित लागत 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 1.31 खरब रुपये) है। इसके अलावा, यह एसएसपीओ के लिए पहला जीएसएलवी मिशन है और अब तक सभी जीएसएलवी मिशन जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में ही गए हैं। नारायणन ने कहा, ‘एसएसपीओ मिशन होने के नाते, इस मिशन को पूरी तरह सफल बनाने के लिए कई विश्लेषण और अध्ययन किए गए।’
12 दिनों में पृथ्वी का चक्क र
अंतरिक्ष विभाग के सचिव नारायणन ने कहा, निसार सभी मौसम में दिन और रात काम करने वाला उपग्रह है, जो 12 दिनों के अंतराल में पूरी पृथ्वी को स्कैन करेगा। यह उपग्रह इसरो के एस-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार को नासा के एल-बैंडआर पेलोड और 12 मीटर के अनफर्लेबल एंटीना के साथ एकीकृत करता है, जो पहला दोहरी आवृत्ति वाला आर उपग्रह है।’
भारत-अमेरिका की मजबूत साझेदारी
नासा की उप-सह-प्रशासक केसी स्वेल्स ने कहा कि यह एक शानदार दशक रहा, जिसमें तकनीकी सहयोग, सांस्कृतिक समझ, एक-दूसरे को जानने और महाद्वीपों, अलग -अलग समय क्षेत्रों के पार टीम बनाने की इस उपलब्धि को हासिल किया गया।
उन्होंने कहा, ‘यह मिशन वास्तव में एक पथप्रदर्शक है, न केवल हमारे तकनीकी सहयोग के संदर्भ में, बल्कि पृथ्वी विज्ञान के लिए भी। यह ऐसा मिशन है जो वास्तव में दुनिया को दिखाता है कि दोनों देश क्या कर सकते हैं। लेकिन, इससे भी अधिक यह वास्तव में हमारे दोनों देशों, भारत और अमेरिका के बीच संबंधों के निर्माण के लिए एक पथप्रदर्शक है, जो दशकों से चले आ रहे सहयोग को और आगे बढ़ाएगा।’
जीएसएलवी-एस16 रॉकेट की लंबाई 51.7 मीटर है। जीएसएलवी एफ-16 रॉकेट ने 27.30 घंटे की उलटी गिनती के बाद 2,393 किलोग्राम वजनी उपग्रह को लेकर उड़ान भरी। चेन्नई से लगभग 135 किलोमीटर पूर्व में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे प्रक्षेपण स्थल से प्रक्षेपण यान ने उड़ान भरी। रॉकेट से अलग होने के बाद वैज्ञानिक अब उपग्रह को संचालित कर रहे हैं जिसमें उसे स्थापित करने और मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने में कई दिन लगेंगे।
एस-बैंड रडार प्रणाली डेटा हैंडलिंग और हाई-स्पीड डाउनलिंक प्रणाली, अंतरिक्ष यान और प्रक्षेपण प्रणाली भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा विकसित की गई हैं। एल-बैंड रडार प्रणाली, हाई-स्पीड डाउनलिंक प्रणाली, सॉलिड स्टेट रिकॉर्डर, जीपीएस रिसीवर, 9 मीटर बूम होइस्टिंग और 12 मीटर रिफ्लेक्टर, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा से मिले हैं।































