ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। तीस साल पहले मुंबई के एक शख्स को अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी मानकर सजा सुनाई गई थी। उस पर आरोप था कि उसने अपनी पत्नी के रंगरूप को लेकर ताने मारे और उसे परेशान किया था। अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस शख्स को बरी कर दिया है। सजा के समय वह 23 साल का था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि पत्नी के रंग-रूप और खाना बनाने को लेकर ताना मारना क्रूरता नहीं है। ऐसी बातों को केवल वैवाहिक जीवन के उत्पन्न झगड़े के रूप में देखा जा सकता है।
जस्टिस एसएम मोदक ने इस मामले में फैसला सुनाया। जज ने कहा कि पति-पत्नी के झगड़े, रंगरूप पर कुछ कहना और दूसरी शादी की धमकी देना वैवाहिक जीवन का हिस्सा है। कानून के तहत इसे आपराधिक उत्पीड़न नहीं माना जाएगा।
इन धाराओं में दोषी मानकर दी गई थी सजा
बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस व्यक्ति की दी गई सजा को रद कर दिया। उसे धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी माना गया था और पांच साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसके अलावा धारा 498ए के तहत पत्नी को क्रूरता से प्रताड़ित करने का दोषी मानते हुए एक साल की कठोर कारावास हुई थी।
जस्टिस ने क्या कहा
जस्टिस मोदक ने कहा कि वैवाहिक जीवन से उत्पन्न होने वाला हर विवाद, झगड़ा या कहासुनी को अपराध नहीं माना जा सकता। यह आपराधिक कानून तब माना जाएगा, जब पत्नी के पास उत्पीड़न के कारण अपनी जान देने के अलावा कोई दूसरा विकल्प न बचे।
हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की आलोचन की
1998 में शख्स को निचली अदालत ने दोषी ठहराया था। उसने इस जजमेंट को बॉम्बे हाई कोर्ट में चैलेंज किया था। उस समय वह सतारा जेल में बंद था। हालांकि हाई कोर्ट ने बाद में उसे जमानत दे दी थी। हाई कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि सबूत के आधार पर नहीं थी। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की आलोचना की।































