ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और निचली अदालतों को जमानत देने को लेकर अहम निर्देश दिए हैं। शीर्ष अदालत की ओर से जारी निर्देश में कहा गया है कि वे किसी आरोपी या उसके परिवार के सदस्यों की ओर से निर्धारित रकम जमा करने के लिए दिए गए शपथपत्र के आधार पर जमानत आदेश पारित न करें। कोर्ट ने कहा कि इस प्रथा को रोकना होगा।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि वादी अदालतों को गुमराह कर रहे हैं और हाईकोर्ट तथा निचली अदालतें नियमित या अग्रिम जमानत के अनुरोध वाली याचिका पर मामले के गुण-दोष के आधार पर फैसला लेंगी।
पीठ ने कहा, इस आदेश के जरिये हम यह स्पष्ट करते हैं और वह भी निर्देशों के रूप में कि अब से कोई भी निचली अदालत या हाईकोर्ट किसी भी ऐसे शपथपत्र पर नियमित जमानत या अग्रिम जमानत देने का आदेश पारित नहीं करेगा, जिसे आरोपी उचित राहत पाने के मकसद से पेश करने के लिए तैयार हो।
शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया। हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी के एक मामले में जमानत पर रिहा आरोपी को चार हफ्ते के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।
आरोपी को जमानत तब दी गई थी, जब उसने हाईकोर्ट में एक शपथपत्र दायर कर कहा था कि वह 25 लाख रुपये जमा करने को तैयार है। शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी ने जमानत पर रिहाई तो हासिल कर ली, लेकिन वह हाईकोर्ट के समक्ष दायर शपथपत्र में दिए गए आश्वासन के अनुसार तय राशि जमा कराने में विफल रहा।
पीठ ने कहा, हाईकोर्ट और निचली अदालतें इस संबंध में अभियुक्त द्वारा दिए गए किसी भी शपथ पत्र या बयान पर अपने विवेक का प्रयोग नहीं करेंगी। इस प्रथा को रोकना होगा। वादी अदालतों को बेवकूफ बना रहे हैं और इस तरह अदालत की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंचा रहे हैं।
पीठ ने कहा कि इस मामले में अपीलकर्ता ने न्याय का मजाक उड़ाया है। पीठ ने कहा कि अगर हाईकोर्ट अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करना ही चाहता था, तो उसे पहले उसे एक निश्चित अवधि के भीतर राशि जमा करने के लिए कहना चाहिए था और ऐसा करने पर उसे रिहा किया जा सकता था। पीठ ने कहा, जो भी हो, अब हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी अभियुक्त या उसके परिवार के सदस्यों द्वारा किसी विशेष राशि जमा करने का वचन देने के आधार पर उच्च न्यायालय और निचली अदालतें नियमित जमानत या अग्रिम जमानत देने के लिए कोई भी आदेश पारित नहीं करेंगी।