ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि अनजाने में न्यायालय के निर्देश का पालन करने में देरी न्यायालय की अवमानना नहीं मानी जाती। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने एक पूर्व बैंक प्रबंधक द्वारा न्यायालय के आदेश का पालन न करने के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई की, जिसमें बैंक को तीन महीने की अवधि के भीतर बैंक प्रबंधक को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। बैंक यह तर्क देते हुए तीन महीने की समय-सीमा के भीतर भुगतान करने में विफल रहा कि अनुपालन में देरी अनजाने में हुई थी और पंजाब नेशनल बैंक के साथ बैंक के विलय के बाद प्रशासनिक बाधाओं का हवाला दिया।
यह देखते हुए कि उल्लंघन जानबूझकर नहीं किया गया, जस्टिस मसीह द्वारा लिखित निर्णय ने वर्तमान मामले में अवमानना क्षेत्राधिकार के आह्वान के विरुद्ध निर्णय दिया। अदालत ने टिप्पणी की, उपरोक्त सिद्धांतों के आधार पर परीक्षण करने पर हम पाते हैं कि यद्यपि बैंक ने इस अदालत द्वारा अनुमत समय सीमा के भीतर भुगतान नहीं किया। फिर भी अभिलेख में प्रस्तुत सामग्री यह प्रदर्शित नहीं करती कि अनुपालन में देरी किसी जानबूझकर या अवज्ञाकारी इरादे से हुई।
हालांकि, ऐसी परिस्थितियां इस अदालत के आदेशों के अनुपालन में ढिलाई को उचित नहीं ठहरा सकतीं, लेकिन सिविल अवमानना का आरोप कायम रखने के लिए आवश्यक ‘मेन्स रीआ’ (मनःस्थिति) के तत्व का अनुमान केवल विलंब के तथ्य से नहीं लगाया जा सकता।