ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत की अर्थव्यवस्था ने जुलाई-सितंबर तिमाही में 8.2% की शानदार ग्रोथ दर्ज की है। यह पिछली छह तिमाहियों में सबसे तेज है। यह ग्रोथ मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में आई तेजी और मजबूत घरेलू मांग के कारण हुई है। हालांकि, नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ 8.73% रही, जो उम्मीद से कम है। कैपिटलमाइंड एएमसी के सीईओ दीपक शेनॉय के विश्लेषण के अनुसार, यह दर्शाता है कि कीमतों में बढ़ोतरी धीमी है या कुछ क्षेत्रों में मांग कमजोर है। भारत अभी भी 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य से थोड़ा पीछे है। वर्तमान में यह लगभग 3.84 ट्रिलियन डॉलर पर है।
आर्थिक विकास के आंकड़ों से पता चलता है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र ने 9.1% की ग्रोथ के साथ हाल के चक्रों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। वित्तीय सेवाओं ने भी 10.2% की प्रभावशाली ग्रोथ दर्ज की है। ये भारत की आर्थिक संरचना में प्रमुख कॉन्ट्रिब्यूटर बनी हुई हैं। व्यापार और परिवहन जैसे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों ने भी अच्छी ग्रोथ दिखाई है।
हालांकि, व्यक्तिगत सेवाओं की ग्रोथ स्पीड में थोड़ी नरमी देखी गई है। दीपक शेनॉय ने इस बात पर जोर दिया कि अर्थव्यवस्था में वित्तीय सेवाएं, व्यापार और विनिर्माण सबसे बड़े क्षेत्र हैं, जबकि अन्य अपेक्षाकृत छोटे हैं। पिछले पांच वर्षों के आंकड़ों से भी पता चलता है कि वित्तीय सेवाओं और व्यापार-परिवहन का जीडीपी में हिस्सा लगातार बढ़ रहा है।
घरेलू मांग की मजबूती अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण सकारात्मक संकेत है। निजी उपभोग, जो भारत की जीडीपी का 55% हिस्सा है, लगभग 8% की दर से बढ़ा है। इसे एक ‘ठीक’ दर माना जा रहा है। निवेश ने भी साल-दर-साल 7% से अधिक की स्वस्थ वृद्धि दर्ज की है। यह जीडीपी का 34% योगदान देता है।
हालांकि, निर्यात की रफ्तार आयात की तुलना में कमजोर रही। इन्वेंट्री में 11.5% की तेज गिरावट देखी गई, जो यह संकेत देती है कि मांग स्टॉक जमाव से आगे निकल रही है या व्यवसाय अधिक स्टॉक रखने को लेकर सतर्क हैं। सरकारी खर्च इस तिमाही में कम रहा और यहां तक कि इसमें गिरावट भी आई।
टारगेट से थोड़ा पीछे हम
भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बाजार मूल्य पर 345 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। वर्तमान विनिमय दर के अनुसार, यह लगभग 3.84 ट्रिलियन डॉलर है, जो 4 ट्रिलियन डॉलर के टारगेट से थोड़ा कम है। यह लक्ष्य राजनीतिक और मीडिया में अक्सर चर्चा का विषय रहा है और यह अभी भी पहुंच के भीतर है।
कहां पर है टेंशन?
रियल जीडीपी ग्रोथ (8.2%) और नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ (8.73%) के बीच का अंतर चिंता का विषय है। ऐतिहासिक रूप से महंगाई और मूल्य निर्धारण के कारण नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ वास्तविक जीडीपी ग्रोथ से कई प्रतिशत अंक अधिक रही है लेकिन, ताजा आंकड़ों में नॉमिनल ग्रोथ रियल ग्रोथ से केवल थोड़ी ही अधिक है। दीपक शेनॉय ने इस अंतर को ‘थोड़ा बहुत कम’ बताया है, जो धीमी मूल्य बढ़ोतरी या कुछ क्षेत्रों में सख्त परिस्थितियों का संकेत हो सकता है। व्यापक आर्थिक परिदृश्य को देखें तो भारत की जीडीपी मुख्य रूप से सर्विस ड्रिवन बनी हुई है। वित्तीय सेवाएं, व्यापार और परिवहन और विनिर्माण मिलकर आर्थिक गतिविधियों की रीढ़ बनाते हैं। कृषि और खनन अपेक्षाकृत छोटे योगदानकर्ता बने हुए हैं। हालांकि, कृषि में स्थिर मध्यम वृद्धि देखी जा रही है, जबकि खनन में उतार-चढ़ाव रहा है। शेनॉय के विश्लेषण से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था वास्तविक रूप से तेजी से बढ़ रही है।
जीडीपी, रियल जीडीपी और नॉमिनल जीडीपी में फर्क?
यह समझना महत्वपूर्ण है कि जीडीपी क्या है। जीडीपी का मतलब सकल घरेलू उत्पाद है। यह एक निश्चित अवधि में किसी देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य है। यह किसी देश की आर्थिक सेहत का एक प्रमुख पैमाना है। रियल जीडीपी महंगाई के लिए समायोजित होती है, जबकि नॉमिनल जीडीपी वर्तमान कीमतों पर मापी जाती है। जब नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर के करीब होती है तो इसका मतलब है कि वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है।































