ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। हृदय रोगों, डायबिटीज और कैंसर के बाद अब भारत में न्यूरोलॉजिकल बीमारियां एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी हैं। डब्ल्यूएचओ की हालिया ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन न्यूरोलॉजी 2025 के अनुसार पिछले तीन दशकों में देश में मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का बोझ लगभग दोगुना हो चुका है।
हर साल करीब 25 लाख भारतीय स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं, जबकि डिमेंशिया, माइग्रेन और मिर्गी जैसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत में हर तीसरा परिवार किसी न किसी मस्तिष्क रोग का शिकार है। विशेषज्ञों ने चेताया, यदि नीति स्तर पर तत्काल कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले दशक में यह समस्या मृत्यु और विकलांगता का सबसे बड़ा कारण बन सकती है।
भारत में प्रति एक लाख आबादी पर केवल 0.3 न्यूरोलॉजिस्ट उपलब्ध हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और गंभीर है। जहां 70% आबादी रहती है, वहां बड़ी संख्या में ऐसे जिले हैं जहां एक भी न्यूरोलॉजिस्ट मौजूद नहीं है। नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया के मुताबिक देश में न्यूरोलॉजिस्टों की कुल संख्या लगभग 35,00 है, जबकि न्यूनतम आवश्यकता 50,000 विशेषज्ञों की है। लाखों मरीज शुरुआती लक्षणों को डायबिटीज, तनाव या सामान्य सिरदर्द समझकर इलाज में देरी कर देते हैं और स्थायी विकलांगता या मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है। देश के केवल 20% बड़े अस्पतालों में स्ट्रोक यूनिट मौजूद हैं। रीहेबिलिटेशन सेंटर, चिल्ड्रन न्यूरोलॉजी सेवाएं और पैलिएटिव केयर ज्यादातर महानगरों तक सीमित हैं।































