ब्लिट्ज ब्यूरो
नागपुर। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक पोस्टर गर्ल को लेकर चर्चा हो रही है। चुनाव आयोग की यह पोस्टर गर्ल कोई और नहीं बल्कि 111 साल की एक बुजुर्ग हैं। आधार कार्ड के अनुसार 111 वर्षीय फूलमती सरकार उम्र के चलते कमजोर हो चुकी हैं, उनकी कमर झुक गई है लेकिन वह इतनी सजग हैं कि बूथ तक चलकर खुद वोट डालने जाती हैं। इतना ही नहीं, इससे भी बड़ी बात है कि इस साल लोकसभा चुनावों के दौरान माओवादियों के बहिष्कार के एलान को दरकिनार करते हुए वह वोट डालने पहुंची थीं।
गढ़चिरौली में अप्रैल की तपती गर्मी थी। इतनी उम्र के बाद भी वह मतदान करने के लिए बूथ तक चलकर गईं थीं और वोट डाला था। फूलमति की खूब तारीफ हुई थी।
एक बार फिर वह 20 नवंबर को गुरिल्ला प्रभावित गढ़चिरौली के मुलचेरा तालुका में अपना चुनावी कर्तव्य निभाने के लिए सुर्खियों में हैं।
1913 में हुआ था फूलमति का जन्म
फूलमति सरकार इस साल राज्य की दो सबसे वरिष्ठ मतदाताओं में से एक हैं। फूलमति का जन्म 1913 में हुआ था। चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार, घर से मतदान करने की सुविधा से इनकार करने के फूलमती के फैसले ने जिला प्रशासन को उन्हें विधानसभा क्षेत्र के लिए स्वीप (व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और चुनावी भागीदारी) आइकन बनाने के लिए प्रेरित किया है।
बूथ पर जाकर करेंगी मतदान
85 वर्ष से अधिक आयु के 277 मतदाताओं ने चुनाव आयोग का 12डी फॉर्म भरकर घर से ही मतदान करने की सुविधा का विकल्प चुना। वहीं फूलमती ने इसके बजाय बूथ पर जाने की उत्सुकता दिखाई। फूलमति के इस फैसले की चर्चा होने लगी और वह चुनाव नायक बन गईं।
क्या बोले अफसर
2022 बैच के आईएएस अधिकारी और अहेरी विधानसभा क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफिसर कुशल जैन ने कहा कि उन्हें लगता है कि उनके अधिकार क्षेत्र में फूलमती जैसी मतदाता का होना उनके लिए गर्व की बात है। दक्षिण गढ़चिरौली के माओवादी-संवेदनशील अहेरी तालुका में उप-विभागीय अधिकारी (एसडीओ) के रूप में तैनात जैन ने कहा, ‘मैं उनके जैसे मतदाताओं की सेवा करने का अवसर पाकर प्रेरित और उत्साहित महसूस करता हूं। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें उनके स्थान से उनके मतदान केंद्र तक लाने और ले जाने सहित सर्वोत्तम सुविधा मिले।’
पूर्वी पाकिस्तान से आया था परिवार
पूर्वी पाकिस्तान से आई शरणार्थी फुलमती अब वर्तमान पीढ़ी के लिए एक मिसाल कायम कर रही हैं, जो अपने मताधिकार का प्रयोग करने में अनिच्छुक हैं। मतदान के दिन फूलमती को अपने घर से 300 मीटर दूर गोविंदपुर के जिला परिषद स्कूल में जाकर अपना वोट डालना होता है।
आज तक कभी भी मिस नहीं किया वोट
वह अपने परिवार के साथ साठ के दशक में पूर्वी पाकिस्तान के खुलना में अपने पैतृक गांव में धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए गढ़चिरौली चली गई थी। छह दशक पहले अपने पति को खोने के बाद फूलमती ने अपनी दो बेटियों के पालन-पोषण के लिए कड़ी मेहनत की। वह अब अपने पोते हरिदास सरकार और उसके परिवार के साथ रहती है। हरिदास ने कहा, ‘वह अभी भी स्वस्थ है, बस बढ़ती उम्र की कुछ जटिलताएं हैं। उन्होंने कहा कि भारत आने के बाद से वह कभी भी अपना वोट देने से नहीं चूकीं।