ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत की एयर डिफेंस कैपेबिलिटी को नई ऊंचाई देने वाले अवाक्स इंडिया प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार ने हरी झंडी दे दी है। यह महत्वाकांक्षी योजना भारतीय वायुसेना के लिए गेम-चेंजर साबित होगी, क्योंकि इसके तहत छह अत्याधुनिक हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणालियां विकसित की जाएंगी। करीब ₹20,000 करोड़ की लागत से पूरा होने वाला यह डिफेंस प्रोजेक्ट भारत को उन गिने-चुने देशों की कतार में खड़ा करेगा, जिनके पास इस तरह की स्वदेशी क्षमताएं मौजूद हैं।
इस प्रोजेक्ट के तहत भारतीय वायुसेना को छह बड़े आकार के अवाक्स प्लेटफॉर्म मिलेंगे, जो दुश्मन के लड़ाकू विमानों, ग्राउंड सेंसरों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गतिविधियों को काफी दूर से ट्रैक करने में सक्षम होंगे। इतना ही नहीं, ये विमान एक उड़ते हुए ऑपरेशन कमांड सेंटर की भूमिका भी निभाएंगे। इन विमानों का विकास डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) के नेतृत्व में किया जाएगा. इसके लिए एयरबस ए321 विमान का उपयोग किया जाएगा, जिनमें जटिल स्ट्रक्चरल बदलाव और सिस्टम इंटीग्रेशन होंगे। डीआरडीओ इस प्रोजेक्ट में कई भारतीय निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ काम करेगा, जिससे स्वदेशी रक्षा उद्योग को भी काफी बढ़ावा मिलेगा।
एयर इंडिया के विमान होंगे री-कनफिगर
वायुसेना के पास पहले से मौजूद छह ए321 एयरक्राफ्ट (जो पूर्व में एयर इंडिया से लिए गए थे) अब इस प्रोजेक्ट के तहत दुबारा डिज़ाइन किए जाएंगे। इन विमानों में ऊपर की ओर एक बड़ा डॉर्सल फिन लगाया जाएगा, जो 360-डिग्री रडार कवरेज सुनिश्चित करेगा। इसमें पूरी तरह स्वदेशी मिशन कंट्रोल सिस्टम और एईएसएए रडार लगे होंगे। बता दें कि यह रडार सिस्टम अल्ट्रा मॉडर्न हैं।
अवाक्स इंडिया को डीआरडीओ द्वारा चलाए जा रहे नेत्र एमके-2 प्रोग्राम के तहत विकसित किया जा रहा है। इससे पहले डीआरडीओ को सरकार ने फिफ्थ जनरेशन एडवांस्ड मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) के प्रोटोटाइप प्रोडक्शन के लिए भी हरी झंडी दी थी। यह दिखाता है कि भारत अब रक्षा क्षेत्र में केवल आयातक देश नहीं, बल्कि एक विश्वसनीय निर्माता बनने की दिशा में अग्रसर है। अब तक इस तरह के सिस्टम पर बोइंग का वर्चस्व रहा है, लेकिन यह पहली बार होगा जब इस क्षेत्र में एयरबस के विमान का उपयोग किया जाएगा। यह भारत के लिए तकनीकी दृष्टि से भी बड़ी उपलब्धि है और भविष्य में एक्सपोर्ट की संभावनाएं भी खुलेंगी।
वायुसेना की मौजूदा क्षमताएं और चुनौतियां
फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास तीन इजरायल और रूस के साथ मिलकर विकसित किए गए आईएल 76 आधारित ‘फाल्कन’ सिस्टम हैं, जो काफी बड़े लेकिन तकनीकी समस्याओं और मेंटेनेंस संबंधी सीमाओं से जूझ रहे हैं। इसके अलावा डीआरडीओ द्वारा विकसित छोटे आकार के दो ‘नेत्रा’ विमान हैं, जिन्हें भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया था।
तीन साल में प्रोजेक्ट होगा पूरा
सरकारी अनुमोदन के बाद अब तीन साल के भीतर इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके पूरा होने पर भारत के पास ऐसी क्षमता होगी, जो न केवल सीमाओं पर सतर्कता को नई मजबूती देगी, बल्कि भारतीय कंपनियों को जटिल रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता की दिशा में भी आगे बढ़ाएगी। अवाक्स इंडिया प्रोजेक्ट न सिर्फ भारतीय वायुसेना की नजर और मारक क्षमता को कई गुना बढ़ाएगा, बल्कि यह भारत के स्वदेशी रक्षा उत्पादन और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर साबित होगा।













 
			
















