ब्लिट्ज ब्यूरो
देहरादून। उत्तराखंड के 15 सरकारी स्कूलों में कक्षा 11 और 12 के 250 छात्रों को ‘नी हाओ’ बोलना उतना ही अच्छा लगता है जितना कि ‘नमस्ते’। दून विश्वविद्यालय की पहल की बदौलत उन्हें चीन की आधिकारिक भाषा मैंडरिन सीखने का मौका मिल रहा है। इसका उद्देश्य उन्हें भाषा स्किल से लैस करना है ताकि वे वैश्विक बाजारों में नौकरी पा सकें। साथ ही चीन के साथ चल रहे सीमा तनाव के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा हितों का भी समर्थन कर सकें।
इस परियोजना की शुरुआत 2023 में पौड़ी गढ़वाल के डीएम आशीष चौहान ने की थी। 2021 में पूर्व सीडीएस जनरल बिपिन रावत और दून विश्वविद्यालय की वीसी सुरेखा डांगवाल के बीच चर्चा के बाद इसे शुरू किया गया था। दून विश्वविद्यालय में एचओडी (चीनी अध्ययन) शैंकी चंद्रा ने बताया कि यह भारत में पहली बार है कि इस तरह की पहल के तहत सरकारी स्कूलों में मैंडरिन पढ़ाई जा रही है।
15 स्कूलों में चल रही परियोजना
चंद्रा ने बताया कि वर्तमान में यह कार्यक्रम 15 पीएमश्री (प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) स्कूलों में चलाया जाता है, जिनमें ऑनलाइन शिक्षण सुविधाएं हैं, क्योंकि अभी हमारे पास भौतिक कक्षाओं के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी है। मैंडरिन की जटिल लेखन प्रणाली इसे सीखने के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण भाषाओं में से एक बनाती है।
विभिन्न कंपनियों में मिलेगी दुभाषिये की नौकरी
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र चंद्रा ने रोजगार के अवसर पैदा करने की परियोजना की क्षमता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मैंडरिन सीखने से नौकरी की संभावनाओं में काफी सुधार होगा क्योंकि चीन भारत के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक है। पिछले साल, कक्षा 12 पास करने वाले हमारे तीन छात्रों ने केवल अपनी भाषा कौशल के कारण पड़ोसी देश में अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी हासिल की। विदेश मंत्रालय और निजी कंपनियों द्वारा दुभाषियों और अनुवादकों को काम पर रखने से कई अन्य अवसर खुलते हैं। छात्रों की दक्षता परीक्षा के आधार पर विदेशी छात्रवृत्ति प्रदान करने की भी योजना बनाई गई है।