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मोदी-पुतिन के रिश्तों का नया दौर

Historic depth, strategic future
ब्लिट्ज ब्यूरो

कुल मिलाकर राष्ट्रपति पुतिन का दौरा हर दृष्टि से भारत के लिए लाभदायक ही रहेगा। एकतरफ जहां यूक्रेन युद्ध के नाम पर अमेरिका भारत पर दबाव की राजनीति कर रहा है; ऐसे में रूस के साथ उसकी घनिष्ठता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को मजबूती ही प्रदान करेगी।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के न्योते पर 4 साल बाद 4 दिसंबर को दो दिन की ऐतिहासिक यात्रा पर भारत पहुंचे। राष्ट्रपति पुतिन की इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के संभावित परिणामों का आकलन फिलहाल करना भले ही कठिन हो पर इसमें कोई दोराय नहीं कि उनकी इस यात्रा पर सारी दुनिया की निगाहें टिकी थीं जिनमें सबसे अधिक निगाह अमेरिका और यूरोपीय देशों की रही। निःसंदेह रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा पर चीन की भी नजर रही क्योंकि यूक्रेन युद्ध के चलते रूस की उस पर निर्भरता बढ़ी है। पुतिन ऐसे समय भारत आए हैं जब यूक्रेन युद्ध खत्म कराने के लिए अमेरिका हाथ-पैर मार रहा है रूस के साथ-साथ भारत व चीन पर भी दबाव बना रहा है।
संबंधों की बात करें तो भारत और रूस की दोस्ती बहुत पुरानी है और दोनों देश एक-दूसरे के लिए कई मायनों में जरूरी हैं। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और लगभग डेढ़ अरब की आबादी वाला मार्केट है। रूस भारत को अपने लिए महत्वपूर्ण साझेदार मानता है। खासकर तेल के कारोबार में रूस को भारत से बड़ी उम्मीदें हैं। ऑयल के अलावा डिफेंस सेक्टर में भी भारत-रूस साझेदारी काफी मजबूत है। इस यात्रा से पहले ऐसी खबरें आई थीं कि भारत रूस से नए लड़ाकू विमान और एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने पर विचार कर रहा है। इसके अलावा रूस में स्किल वर्कर्स की कमी है और वह भारत को इस कमी को पूरा करने वाले एक बड़े सोर्स के तौर पर भी देखता है और इस संबंध में एक समझौता भी राष्ट्रपति पुतिन की इस यात्रा के दौरान संपन्न हुआ है। इस यात्रा का एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी है। रूस दुनिया को यह दिखाना चाहता है कि पश्चिमी देशों के विरोध और यूक्रेन युद्ध के बावजूद वह अकेला नहीं है। रूस जोर देकर कहता है कि उसकी चीन के साथ ‘नो-लिमिट पार्टनरशिप’ है और भारत के साथ उसका रिश्ता भी ‘स्पेशल और स्ट्रैटेजिक’ है।
यही नहीं, अब भारत-रूस एक-दूसरे का मिलिट्री बेस भी इस्तेमाल कर सकेंगे। इससे संबंधित एक बड़े रक्षा समझौते को रूसी संसद की मंजूरी मिल चुकी है। रूस की संसद के निचले सदन स्टेट ड्यूमा ने भारत और रूस के बीच हुए एक सैन्य समझौते ‘रेलोस’ (रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक सपोर्ट) को मंजूरी दे दी है। इसके तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के मिलिट्री बेस, फैसिलिटीज और संसाधनों का इस्तेमाल और एक्सचेंज कर सकेंगी। इस पर आने वाला खर्च बराबर-बराबर उठाया जाएगा। यह मंजूरी राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे से पहले ही दी गई। यह समझौता इस साल 18 फरवरी को भारत और रूस के बीच किया गया था। रूसी संसद के स्पीकर ने भी कहा कि भारत और रूस के रिश्ते बहुत मजबूत हैं और यह समझौता उन रिश्तों को और बेहतर बनाएगा। इस समझौते के बाद भारत ऐसा पहला देश बन जाएगा जिसका अमेरिका और रूस के साथ सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर साझा करने का समझौता होगा। इस समझौते के तहत जंग या किसी सैन्य संघर्ष के दौरान मिलिट्री बेस इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होगी। यह सिर्फ लॉजिस्टिक सपोर्ट और पीस-टाइम मिलिट्री कोऑपरेशन के लिए है। भारत ने ऐसे ही समझौते अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और कई अन्य देशों के साथ किए हैं। अब रूस भी इसमें शामिल हो रहा है। इसके अतिरिक्त रूसी राष्ट्रपति के कथनानुसार आर्थिक सहयोग को लेकर भी भारत के साथ सहमति बनी है जो दोनों देशों के बीच इस संबंध में बाधाएं हटाने में मददगार साबित होगी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी यात्रा के दौरान भारत में रूस के सरकारी टीवी चैनल की भारतीय शाखा आरटी इंडिया को भी लॉन्च किया। इसके लॉन्च से भारत के लोगों को रूस के बारे में ज्यादा जानकारी मिलेगी। गैस और ऊर्जा के संबंध में भी भारत का विश्वसनीय सप्लायर रहा है रूस। स्वयं राष्ट्रपति पुतिन ने आश्वस्त किया है कि रूस बिना किसी बाधा के आपूर्ति जारी रखने के लिए तैयार है। कुल मिलाकर राष्ट्रपति पुतिन का दौरा हर दृष्टि से भारत के लिए लाभदायक ही रहेगा। एकतरफ जहां यूक्रेन युद्ध के नाम पर अमेरिका भारत पर दबाव की राजनीति कर रहा है; ऐसे में रूस के साथ उसकी घनिष्ठता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को मजबूती ही प्रदान करेगी।

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