ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। क्या आप जानते हैं कि विशेष गहन पुनरीक्षण यानि कि (एसआईआर) की प्रक्रिया में करोड़ों लोगों के बीच डुप्लीकेट या फर्जी मतदाताओं की सफाई में आर्टिफिशियल इंटेलीजेस (एआई) का प्रयोग किया जा रहा है। यह फेस रिकॉग्निशन फीचर और खास पैटर्न्स की पहचान करके संदिग्ध वोटर्स को फ्लैग करने का काम कर रहा है।
जिन लोगों ने एसआईआर का फॉर्म भर दिया है या जिन्होंने नहीं भी भरा है; उनके दिमाग में यह प्रश्न अवश्य आया होगा कि आखिर चुनाव आयोग इतने लोगों के बीच डुप्लीकेट या फर्जी वोटर्स का कैसे पता लगाएगा। चुनाव आयोग ने देश के 9 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर कराने की घोषणा की है और वोटर लिस्ट को साफ-सुथरा बनाने की प्रक्रिया में एआई अहम भूमिका निभा रहा है। एआई आधारित सॉफ्टवेयर वोटर्स का डेटा मिलाकर डुप्लीकेट, फर्जी और दोहराए गए वोट पकड़ रहा है। इसकी मदद से चुनाव प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और भरोसेमंद बन पा रही है।
एसआईआर प्रक्रिया में एआई ऐसे काम कर रहा
एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव आयोग एसआईआर की प्रक्रिया को और ज्यादा कारगर बनाने के लिए एआई आधारित एक ऐसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहा है जो चेहरा पहचान कर (फेस रिकॉग्निशन फीचर) के जरिए उन वोटर्स की पहचान कर रहा है जो कि डुप्लीकेट हैं। बता दें कि इसके लिए एआई आधारित सिस्टम पूरे वोटर डेटाबेस में चेहरों की तुलना करता है और यह पता लगाता है कि कहीं एक ही व्यक्ति की फोटो अलग-अलग जगहों पर तो नहीं है।
यह टेक्नोलॉजी चेहरे की बनावट जैसे कि आंखें, नाक, होंठ का बारीकी से विश्लेषण करती है। इससे चुनाव आयोग सुनिश्चित कर पा रहा है कि कोई भी एक से ज्यादा जगह पर वोट न डाल सके। एआई इस काम को करते हुए हजारों फोटो मिनटों में स्कैन कर पाता है।
फर्जी और मृत वोटर्स
को पहचानना
एसआईआर की प्रक्रिया में एआई सिस्टम संदिग्ध एंट्रीज को फ्लैग करके मृत लोगों के नाम या फर्जी रजिस्ट्रेशन को लिस्ट से हटा रहा है। चुनाव आयोग द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा एआई सिस्टम असामान्य पैटर्न पकड़ता है। जैसे एक ही फोटो का बार-बार इस्तेमाल या बहुत पुरानी फोटो का इस्तेमाल। एआई की मदद से चुनाव आयोग यह सुनिश्चित कर पा रहा है कि सिर्फ जीवित और असली वोटर्स ही मतदान कर सकें।
वर्तमान में जारी एसआईआर की प्रक्रिया में एआई एक सहायक टूल की तरह काम कर रहा है। यह किसी भी तरह की गड़बड़ी के लिए अलर्ट जनरेट करता है।
इसके अलावा एआई सिस्टम के इस्तेमाल से शुरुआती डेटा प्रोसेसिंग को तेज और आसान बनाना भी संभव हो पाया है। अगर इस सिस्टम को कुछ भी संदिग्ध मिलता है, तो यह उस मामले को फ्लैग करता है। इसके बाद फील्ड अधिकारी उस विशेष मामले की जांच कर सकते हैं। ध्यान देने वाली बात है कि पहले मैनुअल वेरिफिकेशन में बहुत समय लगता था और गलतियां भी हो सकती थीं। एआई के इस्तेमाल की वजह से एसआईआर की पूरी प्रक्रिया कुशल और ज्यादा सटीक हो पाई है।



























