ब्लिट्ज ब्यूरो
सारण। ताईबा सारण बिहार के एक छोटे-से गांव जलालपुर के निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हैं। पिता एक छोटी-सी राशन की दुकान चलाते हैं और मां समसुन निशा एक गृहिणी हैं। दुकान से पूरे परिवार का खर्च चलाना मुश्किल था। चुनौतियां तब और बढ़ गई ं, जब महामारी ने उनकी दुकान बंद करवा दी और उन्हें कोविड-19 से जूझना पड़ा।
हालांकि, पिता ने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए हर जतन किए। ताईबा जब थोड़ी बड़ी हुई, तो पिता ने गांव के ही एक स्कूल में दाखिला करा दिया। बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता से पायलट बनने की इच्छा जाहिर की। वह पढ़ाई में हमेशा से ही अव्वल रही हैं, इसलिए पिता ने भी रजामंदी दे दी, लेकिन असली समस्या फीस के लिए पैसों की थी। अपनी बेटी के सपनों को पंख देने के लिए मां ने खेती की जमीन बेच दी।
कामयाबी का दूसरा प्रयास
मढ़ौरा बैंक ऑफ इंडिया से लोन लेकर एक रिटायर डीजीपी की मदद से एक बार फिर उन्होंने शुरुआत की। इस बार ताईबा ने इंदौर फ्लाइंग क्लब में दाखिला लेकर प्रशिक्षण शुरू किया। चूंकि वह अस्सी घंटे की ट्रेनिंग ले चुकी थीं, ऐसे में बचे हुए 120 घंटे का प्रशिक्षण पूरा कर पायलट का लाइसेंस हासिल किया। लाइसेंस को प्राप्त करने के साथ ही उन्होंने सारण जिले की दूसरी और जलालपुर की पहली महिला पायलट बनने का खिताब अपने नाम किया।
संघर्ष खत्म नहीं हुआ
पायलट बनने के बाद भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ। जहां एक ओर लोग उनकी सफलता का जश्न मना रहे थे, वहीं दूसरी ओर इलाके के कुछ कट्टरपंथियों का कहना था कि मुस्लिम धर्म में महिलाओं को ऐसे कपड़ा पहनना हराम है। इसलिए ताईबा को पायलट की ड्रेस नहीं पहननी चाहिए। ताईबा ने बड़ी ही सहजता के साथ कट्टरपंथियों को जवाब देते हुए कहा कि कपड़े से पहचान बनाने के बजाय लड़कियों को अपनी मेधा से पहचान बनानी चाहिए।
युवाओं को सीख
परिवार का साथ व सही दिशा में प्रयास किया जाएं तो जीवन में किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। सफलता किसी स्थान व परिस्थिति की मोहताज नहीं होती।
मेडिकल में हुईं थीं अनफिट
बिका हुआ खेत ताईबा के लिए भुवनेश्वर में सरकारी विमानन प्रशिक्षण संस्थान में जाने का टिकट बन गया। उन्होंने पहला पड़ाव तो पार कर लिया, लेकिन मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं।
उन्होंने पायलट की ट्रेनिंग लेनी शुरू ही की थी कि गॉलब्लैडर में पथरी होने के कारण उन्हें मेडिकल में अनफिट घोषित कर दिया गया। वह पथरी का ऑपरेशन कराकर फिर से ट्रेनिंग लेने भुवनेश्वर पहुंची, लेकिन यहां भी उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। जब वह करीब 80 घंटे का फ्लाइंग अनुभव प्राप्त कर चुकी थी, तभी एक प्रशिक्षण पायलट की मौत हो गई। वह इस घटना से बहुत ज्यादा सहम गई थी, जिस वजह से ताईबा को अपना प्रशिक्षण बीच में ही छोड़ना पड़ा। परिवार वालों के सहयोग से वह इससे उबर पाईं ं।