ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। विदेश में बिजनेस करके देश का नाम रोशन करने वाले सोहन गोयनका की पर्सनल लाइफ बहुत सिंपल है। वो हांगकांग में रहते हुए भी बिना पूजा किए घर से नहीं निकलते। समाज सेवा को अपना धर्म समझते हैं। जानिए एनआरआई बिजनेसमैन सोहन गोयनका की कहानी।
उन्होंने बताया कि हमारा परिवार शुरू से बिजनेस करता रहा है इसलिए मैंने भी वही राह चुनी लेकिन मैंने भारत के बजाय विदेश में बिजनेस शुरू किया। राजस्थान यूनिवर्सिटी से 1983 में बीकॉम की पढ़ाई करने के बाद अपने भाइयों की तरह मैंने भी बिजनेस की शुरुआत की। डायमंड ज्वेलरी की डिमांड दुनियाभर में है। हमने हांगकांग में अपना डायमंड ज्वेलरी बिजनेस शुरू किया। धीरे धीरे बिजनेस आगे बढ़ने लगा और हमें सफलता मिलने लगी। इस समय हमारा बिजनेस 30 से ज्यादा देशों में फैला हुआ है।
अपने देश लौटना चाहता हूं
किसी भी भारतीय के लिए पूरी तरह विदेश में बस जाना आसान नहीं है। हम चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहें अपना देश हर समय याद आता है। मुझे विदेश में व्यापार करते हुए 40 साल से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन मैं हर साल 5-6 बार अपने देश भारत जरूर आ जाता हूं। भारत में राजनीति और सिनेमा से जुड़े दिग्गजों भी मिलना-जुलना होता है। मैं देश के हित में हर तरह से अपना योगदान देने की पूरी कोशिश करता हूं। फिर चाहे राजनीति हो या मंदिर निर्माण, मैं अपने देश के काम आना चाहता हूं। अपने देश में अपने काम की सराहना मिलती है तो इस बात की संतुष्टि होती है कि विदेश में रहकर भी हमने अपने देश का नाम रोशन किया है।
मेरी दोनों बेटियों की शादी मुंबई में हुई है। बेटा हांगकांग में हमारे साथ रहता है। जब बेटा पूरी तरह बिजनेस संभाल लेगा तो मैं और वाइफ अपने देश लौट जाना चाहते हैं। काम के लिए भले ही हमें अपने देश से दूर रहना पड़ा, लेकिन आगे की जिंदगी हम अपने देश में बिताना चाहते हैं।
हर महिला की पसंद अलग है
अपने डायमंड ज्वेलरी बिजनेस के जरिए हमें ये पता चला कि हर देश की महिलाओं की पसंद अलग है। विदेशों में महिलाएं बड़े डायमंड वाली सिग्नेचर ज्वेलरी पहनना पसंद करती हैं लेकिन भारतीय महिलाओं को सुंदर कारीगरी वाली डायमंड ज्वेलरी पसंद आती है। भारत में महिलाओं को गोल्ड ज्वेलरी ज्यादा पसंद आती है। हम रॉ मैटेरियल इंडिया से लाते हैं, एमराल्ड, रूबी जैसे जेम स्टोन थाईलैंड से और फिनिशिंग का काम हांगकांग में करते हैं। इस तरह हम यूनीक डायमंड ज्वेलरी तैयार करते हैं और उन्हें विदेशों में एक्सपोर्ट करते हैं।
मां ने नमक-चीनी छोड़ दिया
हम 9 भाई बहन (3 भाई और 6 बहनें) राजस्थान में पले बढ़े। हमारी मां शांति देवी सादगीपसंद महिला थीं। मां ने हमें मेहनत करना, ईश्वर में आस्था रखना और समाज सेवा करना सिखाया। जब हम छोटे थे तो मां सुबह नहा-धोकर हमें पहले मंदिर भेजती थीं। उसके बाद ही हम मुंह में अन्न रखते थे।
मां का त्याग में बड़ा विश्वास था। उन्होंने 40 वर्ष की उम्र से नमक और चीनी खाना छोड़ दिया था। उसके बाद 96 वर्ष यानी जब तक वो जीवित रहीं, उन्होंने कभी नमक और चीनी को छुआ तक नहीं। मां का लक्ष्य होता था कि वो हर साल 50 से 100 गरीब लड़कियों की शादी करवाएं। हम आज भी मां के इस संकल्प को पूरा करते हैं। पिता स्वर्गीय शुभकरण गोयनका हमारी प्रेरणा हैं। उन्होंने हमें सिखाया कि ठान लो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता। अगर आपकी मेहनत और लगन सच्ची है तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। हम तीनों भाइयों ने पिताजी के बताए रास्ते को चुना और अपना हर काम मेहनत और लगन से किया।































