ब्लिट्ज ब्यूरो
ओटावा। कुछ साल पहले तक कनाडा के किसी कॉलेज में दाखिला लेने का मतलब था- वर्क परमिट और फिर स्थायी निवास का रास्ता आसान होना। हजारों भारतीय छात्र ऐसे कॉलेजों में दाखिला लेते थे, जिन्हें ‘डिग्री मिल’ कहा जाता था। इनमें प्रवेश लेने वाले ज्यादातर छात्र पंजाब के होते थे, जिन्हें समय के साथ स्थायी निवास और फिर नागरिकता मिल जाती थी। कनाडा में जाकर बसने के सपने का वह आसान रास्ता अब बाधित हो गया है, क्योंकि कनाडा बेरोजगारी और सुस्त अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है। इस बीच आप्रवासन को लेकर लोगों के विरोध का सामना कर रही प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व वाली सरकार ने अस्थायी विदेशी कामगारों की संख्या सीमित करने का फैसला लिया है। इसका मतलब होगा- बड़ी संख्या में निर्वासन।
सड़कों पर उतरे विदेशी छात्र और कर्मचारी
कनाडा सरकार के इस फैसले के बाद बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय छात्रों और विदेशी छात्रों के भविष्य के सामने संकट खड़ा हो गया है। भले ही वर्क परमिट और निवास विशेषाधिकार का मामला है, लेकिन हजारों छात्र और अस्थायी विदेशी कर्मचारी कनाडा सरकार पर दबाव बनाने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। उन्हें उम्मीद है कि उन्हें भारतीय मूल के कनाडाई लोगों से समर्थन मिलेगा, जो एक बड़ा मतदाता समूह बनाते हैं। कनाडा के प्रिंस एडवर्ड आइलैंड (पीईआई) प्रांत में कई महीनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है। यहां अस्थायी विदेशी कर्मचारी और छात्र राज्य विधानमंडल के बाहर डेरा डाले हुए हैं।
राज्यों में भी बदली नीतियां
संघीय सरकार के साथ ही कनाडा के राज्यों में भी विदेशी कामगारों के खिलाफ अव्यावहारिक नीतियां लागू की जा रही हैं। फरवरी में पीईआई सरकार ने घोषणा की कि वह प्रांतीय नामांकन कार्यक्रम के माध्यम से कनाडा में स्थायी निवास के लिए अन्य देशों के लोगों की संख्या में कटौती करेगी। यह गिरावट 25 प्रतिशत होनी है।
नए कार्यक्रम में कहा गया है कि अब विशिष्ट व्यवसायों में काम करने वाले लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी। वहीं, खुदरा और सर्विस सेक्टर के उद्योगों में स्थानीय लोगों को काम दिया जाएगा। इसका मतलब है कि हजारों विदेशी कामगारों का वर्क परमिट पूरा होने पर इसमें विस्तार नहीं किया जा सकेगा और उन्हें वापस लौटना होगा।
अंतरराष्ट्रीय छात्रों से भेदभाव
अंतरराष्ट्रीय छात्रों और अस्थायी विदेशी कामगारों का विरोध प्रदर्शन कई राज्यों में फैल गया है। कनाडा के अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया है कि स्टडी परमिट को स्थायी निवास की गारंटी नहीं समझा जाना चाहिए लेकिन इस बीच कनाडा में विदेशी छात्रों के खिलाफ एक नई प्रवृत्ति सामने आई है। कई कॉलेजों में फेल होने वाले छात्रों ने दावा करते हुए विरोध किया है कि ग्रेडिंग प्रणाली निष्पक्ष नहीं थी। इनमें कई भारतीय भी हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कॉलेज अतिरिक्त फीस पाने के लिए उन्हें फेल कर देते हैं।
ट्रूडो के तुगलकी फरमान से गुस्सा
इस बीच जस्टिन ट्रूडो के एक तुगलकी फरमान ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों को गुस्से में भर दिया है। ट्रूडो ने कहा कि देश कम वेतन वाले विदेशी कर्मचारियों की संख्या कम करेगा और इनकी जगह स्थानीय लोगों की भर्ती की जाएगी। इसके बाद से विरोध प्रदर्शन भड़क उठे हैं। वर्क परमिट, निवास और नागरिकता के आसान रास्ते ने भारत समेत ग्लोबल साउथ से विदेशी युवाओं को कनाडा की ओर आकर्षित किया है, लेकिन इनकी बढ़ती संख्या से केवल स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि अस्थायी विदेशी कामगारों के लिए भी नौकरियों का संकट पैदा हो रहा है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट बताती है कि अस्थायी निवासी और हाल ही में आए अप्रवासी कनाडा की बेरोजगारी दर को बढ़ा रहे हैं। देश में आए रिकॉर्ड संख्या में नए लोगों को अब काम पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। ब्लूमबर्ग की गणना के अनुसार, जून में अस्थायी निवासियों की बेरोजगारी दर 11 प्रतिशत थी। इसमें विदेशी कर्मचारी, अंतर्राष्ट्रीय छात्र और शरण चाहने वाले शामिल हैं। उसी महीने सभी श्रमिकों की बेरोजगारी दर सिर्फ 6.2 प्रतिशत थी। पिछले पांच वर्षों में आए अप्रवासियों को भी नौकरी पाने में मुश्किल हो रही है, जून में उनकी बेरोजगारी दर 12.6 प्रतिशत तक पहुंच गई।