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आखिर भारत में कब बनेगा तेजस का इंजन

विकसित भारत मिशन को और मजबूत करे एचएएल

by Blitz India Media
April 4, 2025
in Hindi Edition
HAL should further strengthen the developed India mission
विनोद शील

नई दिल्ली। हम सभी यह जानते हैं कि इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) इस समय फाइटर जेट्स की गंभीर कमी से जूझ रही है। चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मन देशों से घिरे होने के कारण यह स्थिति किसी भी दशा में मंजूर नहीं हो सकती। स्वयं वायु सेना के चीफ एयर मार्शल एपी सिंह ने भी इस संबंध में गंभीर चिंता व्यक्त की है।
भारत के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने स्वदेशी तेजस विमान तो विकसित कर लिया किंतु उसको उड़ाने के लिए उसके पास उपयुक्त इंजन नहीं होने की वजह से इसके निर्माण में देरी हो रही है। यह इंजन अमेरिका की दिग्गज रक्षा कंपनी जीई एयरोस्पेस द्वारा एचएएल को सप्लाई करने थे पर वह समय से इनको उपलब्ध नहीं करा पाई। जीई ने अब पहला इंजन हाल ही में एचएएल को उपलब्ध कराया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के मिशन पर काम कर रही है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि एचएएल जैसा संस्थान भी इस मिशन को और मजबूती प्रदान करे ताकि वह अात्मनिर्भर भारत के लिए अपने अहम योगदान के लिए जाना जाए। इसलिए अब समय आ गया है कि एचएएल भी इसरो से सीख लेते हुए क्रायोजेनिक इंजन की तरह अपने विमानों के लिए स्वयं जेट इंजन विकसित करे ताकि उसे किसी बाहरी स्रोत पर निर्भर न रहना पड़े।
अब सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि ऐसी स्थिति कैसे बनी? यह स्वाभाविक ही है कि लड़ाकू विमानों की कमी कोई एक-दो सालों में नहीं आई होगी। बीते करीब दो दशक से रक्षा क्षेत्र में इस बात की चर्चा है। वर्ष 2004 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनी यूपीए की सरकार में एयरफोर्स के लिए लड़ाकू विमान खरीदने पर चर्चा शुरू हुई।
तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी और एयर फोर्स अधिकारियों ने इसको लेकर काफी माथा पच्ची की। कई देशों से टेंडर मंगाए गए लेकिन यूपीए सरकार में एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आने के बाद सरकार यह फैसला नहीं कर पाई। उसे डर था कि कहीं इस सौदे में भी भ्रष्टाचार न हो जाए। इस कारण खरीद को टाल दिया गया। इस बीच 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आ गई। उस समय तक इमरजेंसी जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। फिर सरकार ने फ्रांस से सीधे 36 रॉफेल लड़ाकू विमान खरीद लिए। इसके साथ ही सरकार देसी फाइटर जेट्स बनाने के विकल्प पर भी तेजी से आगे बढ़ने लगी।
इसी कड़ी में एचएएल द्वारा विकसित तेजस विमान को प्राथमिकता दी गई। तेजस चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है। फिर एचएएल ने 4.5+ पीढ़ी का तेजस एमके1ए फाइटर जेट बना लिया। एयरफोर्स ने एचएएल को 83 तेजस एमके1ए विमानों के ऑर्डर भी दे दिए पर एचएएल तेज गति से इन विमानों का प्रोडक्शन करने की स्थिति में नहीं है। इसमें एचएएल का इंफ्रास्ट्रक्चर तो एक बड़ी बाधा रहा ही है लेकिन सबसे बड़ी बाधा इन विमानों में लगने वाले अमेरिकी कंपनी जीई के इंजन हैं।
इंजन आपूर्ति में विलंब
एचएएल ने 2021 में अमेरिकी कंपनी से 99 इंजनों के लिए करार किया था लेकिन इन इंजनों की आपूर्ति में जीई ने बहुत देरी कर दी। 2023 से ये इंजन दिए जाने थे पर उसने अब जाकर इसकी डिलिवरी शुरू की है। चंद रोज पहले ही एचएएल को पहला इंजन मिला है। इस कारण इस पूरे प्रोजेक्ट में अच्छी खासी देरी हो चुकी है। अब असल मुद्दा यह है कि दुनिया के सभी बड़े देश किसी अन्य देश को टेक्नोलॉजी की दुनिया में तेजी से बढ़ते देखना स्वीकार नहीं कर सकते हैं। ऐसे देशों में अमेरिका का नाम सबसे आगे है। इन देशों को लगता है कि तीसरी दुनिया के देश; खासकर भारत अगर टेक्नोलॉजी की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ेगा तो उनके लिए एक बड़ा बाजार खत्म हो जाएगा। इसी कारण वे इसमें अड़ंगा डालते रहते हैं।
क्रायोजेनिक इंजन का मसला
कुछ ऐसा ही मसला क्रायोजेनिक इंजन के साथ हुआ था। यह कहानी 1990 के दशक से शुरू होती है जब भारत अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूत करने के लिए भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) विकसित कर रहा था। जीएसएलवी के लिए क्रायोजेनिक इंजन की जरूरत थी जो अत्यधिक ठंडे तरल ईंन्धन (हाइड्रोजन और ऑक्सीजन) का उपयोग करता है और भारी उपग्रहों को भूस्थैतिक कक्षा में पहुंचाने में सक्षम होता है। उस समय यह तकनीक केवल कुछ देशों- अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान के पास ही थी।
विवाद की शुरुआत 1991 में हुई जब भारत ने रूस के साथ एक समझौता किया। रूस ने भारत को सात क्रायोजेनिक इंजन आपूर्ति करने और इसकी तकनीक हस्तांतरित करने का वादा किया था। यह सौदा 23 करोड़ डॉलर का था लेकिन अमेरिका ने इसे मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का उल्लंघन बताते हुए विरोध किया। अमेरिका का दावा था कि यह तकनीक सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो सकती है, हालांकि भारत ने स्पष्ट किया कि इसका उपयोग केवल शांतिपूर्ण अंतरिक्ष मिशनों के लिए होगा। अमेरिकी दबाव में रूस ने 1993 में तकनीक हस्तांतरण से इनकार कर दिया और केवल चार तैयार इंजन देने की पेशकश की। इससे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को बड़ा झटका लगा क्योंकि तैयार इंजन खरीदने से दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता हासिल नहीं हो सकती थी।
इसरो ने किया कमाल
इस संकट ने भारत को स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने के लिए प्रेरित किया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 1990 के दशक के मध्य में इस चुनौती को स्वीकार किया। क्रायोजेनिक तकनीक बेहद जटिल होती है। इसमें -253 डिग्री सेल्सियस (हाइड्रोजन) और -183 डिग्री सेल्सियस (ऑक्सीजन) जैसे अत्यधिक ठंडे तापमान पर काम करना पड़ता है। इसके लिए विशेष मिश्र धातुओं, सटीक इंजीनियरिंग और उन्नत परीक्षण सुविधाओं की जरूरत थी। शुरुआत में इसरो को कई असफलताओं का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए 1990 के दशक में प्रारंभिक परीक्षणों में इंजन के पुर्जे विफल हो गए और तकनीकी जानकारी की कमी ने प्रक्रिया को और जटिल बना दिया। फिर भी इसरो के वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी। उन्होंने तमिलनाडु के महेंद्र गिरि में एक अत्याधुनिक परीक्षण केंद्र स्थापित किया और धीरे-धीरे तकनीक को समझने और विकसित करने में जुट गए। लगभग दो दशकों की मेहनत के बाद 5 जनवरी 2014 को भारत ने अपने पहले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ जीएसएलवी-डी5 का सफल प्रक्षेपण किया। इस मिशन ने जीसैट-14 उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया और भारत को क्रायोजेनिक क्लब में शामिल कर दिया। इस इंजन को बाद में और उन्नत बनाया गया जैसे कि सीई-20, जो लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलवीएम3) के लिए तैयार किया गया। सीई-20 ने 200 किलोन्यूटन का थ्रस्ट प्रदान किया और गगनयान जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए भी योग्य साबित हुआ। इस उपलब्धि ने न केवल भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया कि दृढ़ संकल्प और स्वदेशी इनोवेशन से हम किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं।

एलएंडटी ने की तेजस का इंजन बनाने की पेशकश
नई दिल्ली। लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के एयरोस्पेस और रक्षा प्रमुख जयंत दामोदर पाटिल ने भारत के एयरोस्पेस उद्योग के लिए एक महत्वाकांक्षी प्रस्ताव रखा है। उन्होंने कहा कि लड़ाकू विमानों के लिए एक पूर्ण स्वदेशी 110के न्यूटन थ्रस्ट इंजन का विकास भारत में किया जा सकता है। इस कार्यक्रम में कावेरी इंजन के दौरान आई दिक्क तों से हमें काफी कुछ सीखने को मिलेगा।
पाटिल ने इस बात पर जोर दिया कि एलएंडटी, अन्य प्रमुख निजी क्षेत्र के भागीदारों के साथ, भारत के भीतर इस उपलब्धि को हासिल करने की क्षमता रखता है, बशर्ते सरकार प्रतिबंधात्मक ‘एल1 सिंड्रोम’ पर तकनीकी योग्यता को प्राथमिकता दे। एल1 सिंड्रोम का अर्थ यह होता है कि गुणवत्ता या नवाचार की परवाह किए बिना सरकार सबसे कम बोली लगाने वाले को अनुबंध दे देती है। सरकार को इस परंपरा से बाहर निकलना होगा ताकि हम निजी क्षेत्र की एक्पर्टीज, नवाचार और गुणवत्ता का उचित उपयोग राष्ट्र के हित में कर सकें। ज्ञात हो कि उच्च प्रदर्शन वाले इंजन के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के तहत गैस टर्बाइन अनुसंधान प्रतिष्ठान (जीटीआरई) द्वारा विकसित कावेरी इंजन, शुरू में 1980 के दशक में तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) को शक्ति प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। दशकों के प्रयास और निवेश के बावजूद, 72,000 करोड़ से अधिक की लागत के बाद भी कार्यक्रम लड़खड़ा गया। 90 के न्यूटन के लक्ष्य के विरुद्ध केवल 75-80 के न्यूटन का थ्रस्ट ही प्रदान किया जा सका जो युद्ध आवश्यकताओं के लिए अपर्याप्त था।
आफ्टरबर्निंग मुद्दों, वजन में वृद्धि और तकनीकी खामियों के कारण 2014 में इसे तेजस से अलग कर दिया गया, जिसमें भारतीय वायुसेना (आईएफ) ने अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्टि्रक के एफ404 इंजन का विकल्प चुना।
हालांकि, पाटिल कावेरी के अनुभव को विफलता के बजाय एक आधार के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा, कावेरी ने देश में पूरी तरह से एक नया इंजन विकसित करने के लिए एक आधार प्रदान किया है, पाटिल का प्रस्ताव 110 के न्यूटन-क्लास इंजन पर केंद्रित है, जो तेजस एमके-II और एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) जैसे अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के लिए उपयुक्त थ्रस्ट लेवल है। इस तरह के इंजन के लिए उन्नत तकनीकों-सिंगल-क्रिस्टल ब्लेड, थर्मल बैरियर कोटिंग्स और कुशल आफ्टरबर्नर की आवश्यकता होगी-ऐसे क्षेत्र जहां भारत ने कावेरी के ड्राई वैरिएंट के माध्यम से प्रगति की है, जो अब घातक स्टील्थ ड्रोन जैसे मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) को शक्ति प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा, अगर सरकार एल1 सिंड्रोम पर योग्यता काे प्राथमिकता देती है और कुछ क्षेत्रों में विशेषज्ञता वाली निजी क्षेत्र की कंपनियों को आकर्षित कर सकती है, तो देश में इस तरह के इंजन को विकसित करने के लिए प्रतिभाओं का एक समूह एक साथ लाया जा सकता है। इस काम में महिंद्रा एयरोस्पेस, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और गोदरेज एयरोस्पेस मदद कर सकते हैं जो प्रतिभा और संसाधनों को एकत्रित करके जीटीआरई के एकल प्रयास में बाधा डालने वाली पिछली कमियों को दूर करेंगे। पाटिल का तर्क है कि जेट इंजन को तैयार करने कुंजी सरकार से मिलने वाले समर्थन में निहित है जो एल1 सिंड्रोम से परे है।
तेजस एमके-1ए के लिए एफ-404 इंजन की आपूर्ति शुरू
नई दिल्ली। अमेरिकी रक्षा कंपनी जीई एयरोस्पेस ने विगत दिवस कहा कि उसने तेजस लाइट कॉम्बैट जेट कार्यक्रम के लिए हिदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को 99 एफ-404 विमान इंजनों में से पहला इंजन दे दिया है। सरकारी कंपनी एचएएल, तेजस लड़ाकू विमान एमके-1ए संस्करण को ताकत देने के लिए इंजन खरीद रही है। वर्ष 2021 के फरवरी में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायुसेना के लिए 83 तेजस एमके 1ए जेट की खरीद के लिए एचएएल के साथ 48,000 करोड़ रुपये का सौदा किया था। इन विमानों की आपूर्ति पिछले साल मार्च में शुरू होनी थी, लेकिन अभी तक एक भी विमान की आपूर्ति नहीं हुई है। अमेरिकी कंपनी की ओर से एफ404-आईएन 20 इंजन की आपूर्ति शुरू होने से एचएएल को भारतीय वायुसेना को विमानों की आपूर्ति शुरू करने में मदद मिलने की उम्मीद है।

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