आस्था भट्टाचार्य
पेरिस। भारत में बनने वाले तोप के गोलों ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है। अमेरिका से लेकर यूरोपीय देशों में भारत में बनने वाले तोप के गोलों की भारी डिमांड है। खासकर जब ग्लोबल सप्लाई चेन के अव्यवस्थित होने की वजह से पश्चिमी देशों में गोला-बारूद के उत्पादन में कमी आई है, उस वक्त भारत ने खुद को महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों, जिसमें तोपखाना गोला-बारूद भी शामिल है, उसकी जमकर सप्लाई की है और दुनिया में प्रमुख आपूर्तिकर्ता के तौर पर खुद को स्थापित किया है।
सिर्फ 300 से 400 डॉलर कीमत
भारत सरकार के सूत्रों का हवाला देते हुए एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि नई दिल्ली 155 मिमी के तोपखाना गोले को सिर्फ 300 से 400 डॉलर में बना रहा है, जो पश्चिमी देशों में बनने वाले तोपखाने के गोलों के मुकाबले दसवें हिस्से से भी कम है, लिहाजा भारतीय तोप के गोलों की डिमांड में जबरदस्त उछाल आया है।
शानदार मौका
भारत के लिए ये एक शानदार मौका है, क्योंकि सरकार ने 2029 तक हथियारों के निर्यात को दोगुना करते हुए उसे 6 अरब डॉलर के आगे ले जाने का लक्ष्य रखा है। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 3.5 अरब डॉलर के हथियार बेचे थे, लेकिन फिर भी अपने लक्ष्य से 30 प्रतिशत पीछे रह गया था। हालांकि पिछले दशक के मुकाबले हथियारों की बिक्री में जमकर उछाल आया है, लेकिन भारत सरकार अभी भी संतुष्ट नहीं है। पिछले दशक में भारत की हथियार बिक्री सिर्फ 230 मिलियन डॉलर था।
भारतीय तोप के गोले क्यों मचा रहे धूम
155 मिमी राउंड के लिए उत्पादन लाइन स्थापित करने वाली एक निजी भारतीय कंपनी एसएमपीपी के सीईओ आशीष कंसल ने कहा कि इस बदलती स्थिति के साथ निश्चित रूप से हम तोपखाना गोला-बारूद की भारी मांग देख आपको बता दें कि एसएमपीपी कई भारतीय कंपनियों में से एक है, जिसमें सरकारी कंपनी म्यूनिशन इंडिया और अडाणी डिफेंस एंड एयरोस्पेस शामिल हैं, जिनका लक्ष्य बढ़ती वैश्विक जरूरतों को पूरा करना है। बताया है कि कुछ भारतीय कंपनियों को पहले ही 100 करोड़ रुपये से ज्यादा के तोप के गोलों के ऑर्डर मिल चुके हैं। यूक्रेन युद्ध की वजह से पश्चिमी देशों के हथियार भंडार में तेजी से कमी आई है और उन देशों में तोप के गोलों को बनाने की क्षमता तो है, लेकिन बनने वाले तोप के गोले काफी महंगे होते हैं जबकि भारत काफी कम कीमत पर तोप के गोले मुहैया करवाता है। यूक्रेन युद्ध में पश्चिमी देशों ने भारी मात्रा में हथियारों की सप्लाई की है।
हमारी उत्पादन क्षमता में कोई कटौती नहीं
भारत के रिटायर्ड नौसेना कमांडर गौतम नंदा, जो अब केपीएमजी इंडिया के साथ रक्षा सलाहकार हैं, उन्होंने कहा है कि हमारी उत्पादन क्षमता में कोई कटौती नहीं हुई। उन्होंने चीन और पाकिस्तान के साथ देश के स्थायी रणनीतिक तनाव को घरेलू तैयारी बनाए रखने का एक कारण बताया है। दिल्ली का रक्षा उद्योग अब छोटे हथियारों और घटकों से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है, जिससे भारत भारी गोला-बारूद और प्लेटफॉर्म क्षेत्र में एक प्रतिस्पर्धी खिलाड़ी के रूप में स्थापित हो रहा है।
रक्षा निर्यात
आपको बता दें कि भारत का रक्षा निर्यात साल 2023-24 में करीब 21,083 करोड़ (लगभग 2.63 बिलियन डॉलर) का था। वहीं वित्तवर्ष 2022-23 में 15,920 करोड़ रुपये का था। पिछले 10 सालों की बात करें तो 2013-14 में 1,940 करोड़ से 2023-24 में 21,083 करोड़ तक, यानी हथियारों के निर्यात में करीब 31 गुना का इजाफा हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत, 155 एमएम तोप के गोले और हॉवित्जर, ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलें (उदाहरण: फिलीपींस से $375 मिलियन की डील), आकाश मिसाइल सिस्टम (फिलीपींस के साथ $200 मिलियन की संभावित डील), सर्विलांस और रडार सिस्टम, तेजस फाइटर जेट, हल्के हेलीकॉप्टर और नौसैनिक पोत या तो बेच रहा है या बेचने की कोशिश कर रहा है।