दीपक द्विवेदी
इसरो के उत्साह को भी समझा जा सकता है। इसरो के अधिकारियों ने टीम को बधाई देते हुए स्पैडेक्स मिशन की सफल उपलब्धि को भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नाम पर एक के बाद एक, बड़ी-बड़ी कामयाबियां दर्ज होती जा रही हैं। इनमें सबसे नवीन है इसरो के स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स मिशन) की अभूतपूर्व सफलता। अंतरिक्ष विज्ञान में यह कामयाबी भारत के लिए भी खासी अहमियत रखती है जिसकी सभी जगह भरपूर सराहना हो रही है। इसरो ने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन 30 दिसंबर, 2024 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था और डॉकिंग या सैटेलाइट जोड़ने की मुख्य प्रक्रिया को 12 जनवरी को अंजाम दिया गया। भारतीय वैज्ञानिकों ने न केवल सैटेलाइट को जोड़कर एक बनाया बल्कि उन्हें वापस अलग भी किया। यह तकनीक बहुत काम की है क्योंकि भविष्य में भारत को अपना अंतरिक्ष केंद्र बनाना है। अंतरिक्ष केंद्र बनाते समय एक यंत्र को दूसरे से जोड़ने की कला में माहिर होना सबसे जरूरी है। स्पैडेक्स मिशन की सफलता ने भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बराबर कर दिया है और अब वह दुनिया का चौथा ऐसा देश बन गया है जो अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को जोड़ने में सक्षम है। इस सफलता ने भारत के अगले 15 साल के मिशनों की राह भी खोल दी है। इसरो की इस सफलता पर पीएम नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों को बधाई दी और इसे एक ऐतिहासिक क्षण बताया। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी इसरो की इस सफलता पर वैज्ञानिकों का बधाई दी। स्पैडेक्स मिशन उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में इसरो की बढ़ती विशेषज्ञता को रेखांकित करता है और भविष्य के अंतरग्रहीय मिशनों और अंतरिक्ष स्टेशन सहयोग के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। अंतरिक्ष में डॉकिंग और अन डॉकिंग मिशन को सबसे पहले अमेरिका ने 59 साल पहले किया था। उसके अगले साल 1967 को रूस ने इस कारनामे को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। चीन ने 2011 में यह सफलता पाई। चौथे देश के रूप में भारत ने भी इस समूह में अपनी जगह बना ली है। सवाल यह है कि भारत ने स्पैडेक्स मिशन अभी ही क्यों किया? दरअसल, इस मिशन की सफलता ने इसरो के लिए अगले 15 साल की राहें खोल दी हैं। इसरो ने 2040 तक के मिशनों पर काम करना शुरू कर दिया है। इसरो 2035 तक अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने और 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजने के अपने लक्ष्य को साकार करने के ध्येय को पाने में लगा हुआ है।
स्पैडेक्स मिशन की इस बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि के वैश्विक महत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि भारत ने अपनी इस क्षमता का स्वयं विकास किया है। अपने सीमित संसाधनों के बावजूद भारत की यह कामयाबी दूसरे देशों को चकित और प्रेरित करेगी। अमेरिका और रूस की वैज्ञानिक तरक्क ी किसी से छिपी नहीं है। इसके अलावा चीन को पहले अमेरिका से और अब रूस से किस तरह तकनीकी सहयोग मिल रहा है, यह तथ्य अब किसी से छिपा नहीं है। एक विकासशील राष्ट्र के रूप में देखा जाए तो भारत की यह उपलब्धि अलग से रेखांकित की जा सकती है। अगर इस खास उपलब्धि की प्रशंसा सभी पक्ष या दलों के नेताओं ने की है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पड़ोसी देश चीन ने भी खुल कर भारत की इस उपलब्धि को सराहा है। स्पैडेक्स मिशन में दो सैटेलाइट्स एसडीएक्स01 (चेज़र) और एसडीएक्स02 (टारगेट) को पीएसएलवी सी60 रॉकेट के माध्यम से लॉन्च कर 475 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में स्थापित किया गया था। इसरो ने पृथ्वी से 475 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रहे इन दोनों भारतीय उपग्रहों को डॉक करने में सफलता हासिल की।
इसरो के अधिकारियों के अनुसार यह मिशन चंद्रयान-4, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और गगनयान सहित भारत की भविष्य की अंतरिक्ष पहलों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी प्रदर्शक के रूप में कार्य करता है। चंद्रयान-4 एक चंद्र मिशन है जिसे उन्नत डॉकिंग तकनीकों का उपयोग करके पृथ्वी पर नमूने वापस लाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को 2028 तक लॉन्च करने के लिए निर्धारित एक मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन के रूप में देखा जाता है। स्पैडेक्स के साथ भारत ने अंतरिक्ष अन्वेषण क्षमताओं में एक बड़ी छलांग लगाई है। इस सफलता ने सैंपल रिटर्न, अंतरिक्ष स्टेशन असेंबली और अंतरग्रहीय अन्वेषण से जुड़े जटिल मिशनों के लिए आधार तैयार किया है। यह उपलब्धि एक अग्रणी वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसी के रूप में इसरो की स्थिति को और मजबूत कर रही है। इसरो के उत्साह को भी समझा जा सकता है। इसरो के अधिकारियों ने टीम को बधाई देते हुए स्पैडेक्स मिशन की सफल उपलब्धि को भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया है। इसरो ने एक्स पर किए गए अपने एक पोस्ट में कहा, ‘‘भारत ने अंतरिक्ष इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है।’’