ब्लिट्ज ब्यूरो
नोएडा। गौतमबुद्धनगर जिले का सबसे अहम हिस्सा माने जाने वाले नोएडा शहर को लेकर एक बड़ी सुगबुगाहट तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि वह नोएडा अथॉरिटी को एक महानगर निगम बनाने पर विचार करे। इससे शहर के लोगों को ज्यादा फायदा होगा। अभी नोएडा भारत का एकमात्र ऐसा बड़ा शहर है, जहां चुनी हुई स्थानीय सरकार नहीं है। अगर शहरी निकाय चुनाव होता है तो फिर यहां नगर निगम स्थापित होगा। मेयर और सभासद चुने जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अथॉरिटी की जांच करने के लिए भी कहा है। मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार यह जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई एक एसआईटी ने की थी। एसआईटी ने अथॉरिटी में कई कमियां पाई हैं। कोर्ट दो नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। इन अधिकारियों पर आरोप है कि इन्होंने गलत तरीके से ज्यादा मुआवजा दिया।
नोएडा की स्थिति क्या है?
नोएडा शहर अभी न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) द्वारा चलाया जा रहा है। एनसीआर के अहम हिस्से नोएडा की स्थापना 1976 में उत्तर प्रदेश इंडस्टि्रयल एरिया डेवलपमेंट एक्ट, 1976 के तहत एक औद्योगिक टाउनशिप के रूप में हुई थी। इसे इमरजेंसी के दौरान बनाया गया था। उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी दिल्ली से उद्योगों को बाहर ले जाना चाहते थे।
नोएडा अथॉरिटी, यूपी इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट के अंतर्गत आती है। एक आईएएस अधिकारी को इसका सीईओ बनाया जाता है, जो इसके रोजमर्रा के काम देखता है। इसमें 81 गाँव और लगभग 20,316 हेक्टेयर जमीन शामिल है।
यह दूसरे शहरों से कैसे अलग है?
नोएडा में कोई अलग नगर निकाय नहीं है जो रोजमर्रा के नागरिक काम करता हो। जैसे कि कचरा उठाना, स्ट्रीट लाइट लगाना, सीवरेज और लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना। यह एक अजीब बात है कि विकास प्राधिकरण, जिसे जमीन का अधिग्रहण करना, योजना बनाना और इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना चाहिए, वह यहां नागरिक काम भी कर रहा है।
उदाहरण के लिए, दिल्ली में ये सेवाएं एमसीडी द्वारा दी जाती हैं और मुंबई में बीएमसी द्वारा जबकि दिल्ली में डीडीए और मुंबई में एमएमआरडीए योजना बनाने का काम करते हैं। अगर दूसरे शहरों की तरह नोएडा में भी नगर निगम बन जाएगा तो कई बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। यहां नोएडा अथॉरिटी के आधे से ज्यादा काम इसके पास चले जाएंगे। मेयर और पार्षद का चुनाव भी होगा। डीएम की शक्तियां भी बढ़ेगी।
महानगर परिषद क्या होती है?
1992 के संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम ने 3 अलग-अलग प्रकार के शहरी स्थानीय निकायों या नगर पालिकाओं को मान्यता दी है-
नगर पंचायत : ये गांव से शहर में बदल रहे इलाकों के लिए होती हैं।
नगर पालिका परिषद : ये छोटे शहरों के लिए होती हैं।
नगर निगम : ये बड़े शहरों के लिए होती हैं।
अधिनियम में महानगर क्षेत्र को 10 लाख से अधिक आबादी वाले क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया था। नोएडा ने 2010 में ही 10 लाख की आबादी को पार कर लिया था।
नगर पालिकाएं सीधे लोगों द्वारा चुनी जाती हैं और केंद्र और राज्य सरकारों के बाद शहरी क्षेत्रों में सरकार का तीसरा स्तर हैं। वे पंचायतों के बराबर हैं, लेकिन शहरी क्षेत्रों में। वे लोगों के स्वास्थ्य, कचरा प्रबंधन, सफाई का ध्यान रखते हैं। साथ ही पार्क और खेल के मैदान जैसी शहरी सुविधाएं, और स्ट्रीट लाइट, पार्किंग स्थल, बस स्टॉप और सार्वजनिक सुविधाएं भी प्रदान करते हैं।
नगर पालिका होने के क्या फायदे हैं?
समर्थकों का कहना है कि एक स्व-शासित स्थानीय निकाय होने से ज्यादा प्रभावी, जवाबदेह, नागरिक-अनुकूल, पारदर्शी और जवाबदेह शासन होता है जबकि एक नियुक्त नौकरशाह स्थानीय शासन का प्रभारी होता है।
जनाग्रह के सीईओ श्रीकांत विश्वनाथन के अनुसार, नगरपालिका न होने का क्षेत्र पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जनाग्रह एक ऐसा संगठन है जो शहरी शासन पर काम करता है। विश्वनाथन कहते हैं, एक निर्वाचित नगरपालिका लोगों की आकांक्षाओं और सरकार की प्राथमिकताओं और नीतियों के बीच एक पुल है, खासकर शहरी गरीबों के लिए।
क्या नोएडा में नगरपालिका की पहले भी मांग हुई है?
2017 में, गौतम बुद्ध नगर (जिसके अंतर्गत नोएडा आता है) के तत्कालीन जिलाधिकारी बीएन सिंह ने अथॉरिटी से नगरपालिका के कार्यों को वापस लेने और एक अलग नगर निगम बनाने की सिफारिश की थी। हालांकि नोएडा और ग्रेटर नोएडा निकायों ने बाद में उसी वर्ष निष्कर्ष निकाला कि उन्हें नगरपालिका निकायों की आवश्यकता नहीं है।