ब्लिट्ज ब्यूरो
एकतरफ जहां सरकार हर आदमी तक हवाई सफर की सुविधा पहुंचाना चाहती है, वहां उसे ऐसा निगरानी तंत्र भी विकसित करना होगा ताकि ऐसे हालात फिर उत्पन्न न हों और उड्डयन क्षेत्र में किसी एक की मोनोपोली भी न रहे। सभी कंपनियों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा दिखे, जिससे यात्रियों को सस्ता सफर एवं बेहतर सेवाएं मिलती रहें।
यात्री विमान की संख्या के हिसाब से देश की सबसे बड़ी और एशिया की दूसरी सबसे बड़ी इंडिगो एयरलाइंस पर अब सरकार ने सख्त एक्शन लिया है। इसकी कथित लापरवाही के कारण पिछले कुछ दिनों में लाखों यात्रियों को गंभीर और असह्य परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कहा जाता है कि इंडिगो कम से कम स्टाफ के साथ काम करने के मॉडल पर चलती है। सिविल एविएशन मंत्रालय की हाई लेवल मीटिंग के दौरान इंडिगो की 10% फ्लाइट्स में कटौती का निर्देश जारी किया गया। इंडिगो के लिए 10% उड़ानें रद होने का मतलब है 230 उड़ानें जो एक बहुत बड़ी संख्या है। वहीं, देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन एअर इंडिया, इंडिगो की तुलना में आधे से भी कम उड़ानें संचालित करती है, इसलिए उन पर प्रभाव कम दिखता है। संकट की गहराई को समझने के लिए इंडिगो के विशाल आकार के बारे में जानना जरूरी है। यह महज एक एयरलाइन नहीं बल्कि भारतीय एविएशन की रीढ़ है। एयरलाइन के पास 434 विमानों का बेड़ा है। इसने 920 से अधिक नए विमानों का ऑर्डर भी दे रखा है। इंडिगो हर दिन 2,200 से अधिक उड़ानें संचालित करती है और 3.2 लाख से अधिक यात्रियों को हवाई सफर करवाती है। यह 128 गंतव्यों के लिए अपनी सेवाएं देती है।
इस एयरलाइंस की स्थापना 2005 में की गई थी। नवंबर 2025 तक इंडिगो 137 स्थानों जिनमें 94 घरेलू और 43 अंतर्राष्ट्रीय अर्थात 2700 प्लस फ्लाइट्स को ऑपरेट कर रही थी। केंद्र ने मौजूदा हालात की जांच और स्थितियों को समझने के लिए 10 बड़े एयरपोर्ट पर सीनियर अफसरों को भी तैनात किया है। ये लोग पता लगाएंगे कि यात्रियों को कौन-कौन सी परेशानी आ रही है। ये अफसर डिप्टी सेक्रेटरी, डायरेक्टर और जॉइंट सेक्रेटरी लेवल के हैं। 10 बड़े एयरपोर्ट में मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद, पुणे, गुवाहाटी, गोवा और तिरुवनंतपुरम शामिल हैं। यह एक उचित कदम है किंतु बेहतर तो यह होना चाहिए था कि ऐसी स्थितियां बनने ही नहीं दी जानी चाहिए थीं। यह स्थिति कहीं न कहीं शायद इसीलिए बनी क्योंकि घरेलू आकाशीय सेवाओं पर एक ही कंपनी का एकाधिकार स्थापित हो गया था और उसने दो वर्ष पूर्व सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों के पालन में कथित रूप से लापरवाही बरती या यों कहा जाए कि ‘दादागीरी’ भरा रवैया अपनाया और इस रवैय के खिलाफ समय रहते उचित कार्रवाई भी नहीं की गई।
दरअसल डीजीसीए के नए फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) नियम सभी एयरलाइंस पर लागू होने थे और इसके लिए सभी को पर्याप्त समय भी दिया गया था लेकिन इंडिगो ने नए नियमों के हिसाब से स्टाफ की भर्ती नहीं की जिससे मौजूदा संकट इतना बड़ा हो गया। सरकार ने एक कमिटी बनाई है, जो इस बात की जांच करेगी कि कहीं इंडिगो ने जानबूझकर तैयारियों में देरी तो नहीं की ताकि अथॉरिटीज पर प्रेशर बनाया जा सके। इस संशय की इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि केबिन क्रू और पायलटों की कमी को एकाएक पूरा नहीं किया जा सकता। क्या एयरलाइंस इस बात का इंतजार कर रही थी कि क्राइसिस हो ताकि उसे नियमों में छूट मिल सके? भारतीय विमानन क्षेत्र में इस समय इंडिगो की बाजार हिस्सेदारी 65% है। उसके बेड़े में 417 विमान हैं और सामान्य दिनों में हर दिन 2200 उड़ानें इंडिगो द्वारा भरी जाती हैं। सरकार की तरफ से फिलहाल नए नियमों में थोड़ी रियायत दी गई है ताकि हालात सामान्य हो सकें क्योंकि हजारों यात्री फंस गए थे और अन्य एयरलांइस मनमाना किराया वसूलने लगी थीं। एयरलाइंस की इस मनमानी पर भी रोक लगाए जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा फौरी तौर पर जनता को राहत देने के लिए यह भले छूट दी गई है पर नए एफडीटीएल नियमों से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। ये नियम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप और पायलटों की सेहत व उड़ान सुरक्षा के लिए जरूरी हैं। इसके साथ ही एकतरफ जहां सरकार हर आदमी तक हवाई सफर की सुविधा पहुंचाना चाहती है, वहां उसे ऐसा निगरानी तंत्र भी विकसित करना होगा ताकि ऐसे हालात फिर उत्पन्न न हों और उड्डयन क्षेत्र में किसी एक की मोनोपोली भी न रहे। सभी कंपनियों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा दिखे, जिससे यात्रियों को सस्ता सफर एवं बेहतर सेवाएं मिलती रहें।




























