ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। देश के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना बतौर सीजेआई अपने कार्यकाल के दूसरे दिन ही एक्शन में नजर आए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में मामलों की तत्काल सुनवाई पर नई व्यवस्था करने का आदेश दिया है। सीजेआई खन्ना ने कहा कि मामलों को तत्काल सूचीबद्ध करने और उन पर सुनवाई के लिए मौखिक उल्लेख करने की अनुमति अब नहीं दी जाएगी।
सीजेआई खन्ना ने इस पुरानी परंपरा को बदलते हुए वकीलों से इसके लिए ई-मेल या लिखित पत्र भेजने का आग्रह किया है। आमतौर पर वकील दिन की कार्यवाही की शुरुआत में सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष अपने मामलों पर तत्काल सुनवाई के लिए उनका मौखिक उल्लेख करते रहे हैं। इस पत्राचार में वकीलों को तत्काल सुनवाई की आवश्यकता के कारण भी बताने होंगे।
बता दें कि पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल के दौरान मौखिक उल्लेख की परंपरा ने वकीलों को मौखिक रूप से तत्काल केस की लिस्टिंग का अनुरोध करने की अनुमति दी थी। हालांकि, इस व्यवस्था का इस्तेमाल आमतौर पर आसन्न गिरफ्तारी के मामलों या पुलिसिया कार्रवाई में अक्सर विध्वंस के मामलों में राहत पाने के लिए किया जाता था। उल्लेखनीय है कि जस्टिस संजीव खन्ना ने देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में सोमवार, 11 नवंबर को पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में जस्टिस खन्ना को शपथ दिलाई थी।
न्यायमूर्ति खन्ना ने राष्ट्रपति भवन में ईश्वर के नाम पर, अंग्रेजी में शपथ ली। 10 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश के रूप में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल खत्म हो गया था।
नए चीफ जस्टिस खन्ना ने न्यायिक सुधारों के लिए नागरिक-केंद्रित एजेंडे की रूपरेखा तैयार की है और कहा है कि न्याय तक आसान पहुंच सुनिश्चित करना और नागरिकों के साथ उनकी स्थिति की परवाह किए बिना समान व्यवहार करना न्यायपालिका का संवैधानिक कर्तव्य है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हमें सौंपी गई जिम्मेदारी नागरिकों के अधिकारों के रक्षक और विवाद समाधानकर्ता के रूप में हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। जस्टिस खन्ना ने न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख किया जिनमें लंबित मामलों की संख्या कम करना, मुकदमेबाजी को किफायती बनाना और जटिल कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाने की आवश्यकता शामिल है।
– अब कोई मौखिक उल्लेख नहीं होगा, वजह भी बतानी होगी
उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली को सभी नागरिकों की जरूरतों को पूरा करना चाहिए। उन्होंने अदालतों को अधिक सुलभ और उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाने के लिए एक दृष्टिकोण की रूपरेखा भी प्रस्तुत की।
उच्चतम न्यायालय ने एक बयान में कहा कि प्रधान न्यायाधीश का उद्देश्य एक आत्म-मूल्यांकन दृष्टिकोण अपनाना है जो अपने कामकाज में फीडबैक के प्रति ग्रहणशील और उत्तरदायी हो। इसमें कहा गया है, नागरिकों के लिए फैसलों को समझने योग्य बनाना और मध्यस्थता को बढ़ावा देना भी प्राथमिकता में होगा।
आपका लेक्चर सुनने नहीं आए हैं, बोले सीजेआई
शपथ ग्रहण के बाद बतौर सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना ने अपने कार्यकाल के पहले दिन जस्टिस पीवी संजय कुमार के साथ न्यायिक कार्यवाही शुरू की। इस दौरान उनकी अगुवाई वाली पीठ ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) से संबंधित एक मामले की सुनवाई की। मामले की पैरवी वरिष्ठ वकील मैथ्यूज नेदुम्पारा कर रहे थे। सुनवाई के दौरान वकील नेदुम्पारा ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट आम वकीलों के लिए भी होना चाहिए न कि यहां सिर्फ अंबानी और अडानी के मामलों का फैसला एक निश्चित और विशेष तरीके से किया जाना चाहिए। इस पर नए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, लेकिन आपका मामला तो जस्टिस बेला त्रिवेदी के फैसले से संबंधित है… इसी बीच नेदुम्पारा ने सीजेआई को टोकते हुए कहा, लेकिन गरीब एमएसएमई को किस तरह से अलग किया जा सकता है.. देश में करोड़ों एमएसएमई हैं और यहां केवल अंबानी-अडानी के मामलों की ही सुनवाई हो पा रही है।
इस दलील पर सीजेआई खन्ना ने वरिष्ठ वकील नेदुम्पारा को फटकार लगाते हुए कहा, हम यहां आपका लेक्चर सुनने के लिए नहीं आए हैं। दिक्कत है तो कृपया डीआरटी में जाएं। मैथ्यूज नेदुम्पारा वही वकील हैं, जो नीट-यूजी मामले की सुनवाई के दौरान जुलाई में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ से भिड़ गए थे। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने उन्हें अदालती कामकाज में बाधा डालने पर कोर्ट रूम से हटाने के लिए मार्शल को बुलाने का आदेश दिया था।
तब नेदुम्पारा ने जस्टिस चंद्रचूड़ को चुनौती देते हुए कहा था कि वह इस अदालत में सबसे सीनियर हैं। अगस्त में जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस आर हादेवन की पीठ ने बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के ऋण खातों को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के रूप में वर्गीकृत करने पर फैसला सुनाया था और बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला पलट दिया था। इस पर नेदुम्पारा का आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट में बड़े औद्योगिक घरानों के मामलों की सुनवाई त्वरित और विशेष रूप से हो जाती है जबकि उसी तरह के मामलों में फंसे छोटे एमएसएमई की सुनवाई लटकी रहती है। कोर्ट रूम नंबर एक में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति खन्ना ने वहां एकत्रित वकीलों को धन्यवाद दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दिन की कार्यवाही शुरू होने पर कहा, मैं प्रधान न्यायाधीश के रूप में आपके सफल कार्यकाल की कामना करता हूं। जब एक बार सदस्य ने सुनवाई के लिए एक दिन में सूचीबद्ध मामलों के अनुक्रम से संबंधित मुद्दा उठाया, तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह उनके ध्यान में है और वह इस पर विचार करेंगे।
बदल गया सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का चयन करने वाले पांच सदस्यीय कॉलेजियम में प्रधान न्यायाधीश खन्ना के अलावा न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति ए एस ओका शामिल हैं। जस्टिस खन्ना अब पांच सदस्यीय उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के अध्यक्ष हैं और न्यायमूर्ति ए एस ओका इसके नए सदस्य हैं। पांच और तीन सदस्यीय कॉलेजियम का पुनर्गठन 10 नवंबर को न्यायूमर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के प्रधान न्यायाधीश पद से रिटायर होने के बाद किया गया है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का चयन करने वाले तीन सदस्यीय कॉलेजियम में प्रधान न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत सदस्य होंगे।