ब्लिट्ज ब्यूरो
आने वाले समय में भारत की प्रगति और विकास यात्रा उसके संस्थानों एवं जन-सहयोग की शक्ति पर निर्भर करेगी। यह बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए।
पिछले दिनों हमने अपना 79 वां स्वतंत्रता दिवस बड़े धूमधाम से मनाया। प्रत्येक भारतवासी के लिए यह अत्यंत गौरव का विषय है कि हमारा महान देश विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा है। निश्चित रूप से इतने दशकों के दौरान हमारे राष्ट्र ने चौतरफा प्रगति की है और हर क्षेत्र में हमने विकास के ऊंचे प्रतिमानों को हासिल करके पूरे विश्व को यह दिखा दिया है कि ‘आज का भारत’ एक ‘नया भारत’ है जो रुकना नहीं जानता। ब्रिटिश शासकों ने दो शताब्दी से भी अधिक समय तक देश को दासता की जंजीरों में जकड़ कर रखा और दमन तथा शोषण की पराकाष्ठा के बीच भी वे हमारी आत्मा एवं हमारे गौरव को कुचल नहीं पाए। शहीद ए आजम भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद और खुदीराम बोस जैसे शहीदों के बलिदान ने देश की आजादी की नींव रखी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की इंफाल तक आ पहुंची आजाद हिंद फौज तथा मुंबई में नौसेना की बगावत ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया था। महात्मा गांधी ने लोकमान्य तिलक के उसे विचार प्रवाह को ‘करो या मरो’ तथा ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारे के साथ आगे बढ़ाया जिसका उद्घोष था ‘स्वाधीनता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार’ है। बापू के सत्याग्रह आंदोलन से ब्रिटिश शासन की नींव हिल गई थी। वैसे स्वतंत्रता के आंदोलन का आधार तो 1857 में तभी बन चुका था जब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के दांत उनकी गुलामी को अस्वीकार करके खट्टे कर दिए थे। इन सारी बातों का स्मरण करना इसलिए भी आवश्यक है ताकि नई पीढ़ी स्वतंत्रता की कीमत को पहचान सके। यह भी बहुत आवश्यक है कि हर भारतवासी के मन में यह अहसास होना चाहिए कि स्वतंत्रता एक बहुत बड़ा वरदान है जो अनेक कठोर संघर्षों के बाद हासिल हुआ है और इसे कायम रखने के लिए भी आज हर भारतवासी को पहले से कहीं अधिक कठोर परिश्रम करना पड़ेगा क्योंकि आज की तारीख में चुनौतियों का स्वरूप बदल चुका है और हमें उनसे निपटने के लिए सदैव तत्पर रहना होगा। दरअसल आजादी से पहले हमारे समक्ष केवल एक चुनौती; ब्रिटिश शासक हुआ करते थे किंतु आज भारत को भीतर और बाहर दोनों तरफ से मिल रही चुनौतियों से निपटना है।
इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लाल किले से दिया गया भाषण अगर याद रखे जाने लायक कहा जाएगा तो सिर्फ इसलिए नहीं कि यह उनका अब तक का सबसे लंबा भाषण (लगभग 104 मिनट) रहा या लाल किले के प्राचीर से उन्होंने लगातार 12वीं बार राष्ट्र को संबोधित किया। यह मौका पंडित जवाहरलाल नेहरू के अलावा किसी और प्रधानमंत्री को नहीं मिला किंतु जिन हालात में और जिन चुनौतियों के बीच आज पीएम मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया, वे भी इस भाषण को अहम बना रही हैं।
अमेरिका टैरिफ वॉर के माध्यम से अपनी प्रभुता दिखाने के प्रयास कर रहा है तो चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स को अपना हथियार बनाया हुआ है। हालांकि टैरिफ वॉर के दौरान चीन का समर्थन भारत को मिल रहा है पर इन सबके बीच भारत को विकास यात्रा जारी रखने के लिए रास्ता स्वयं ही खोजना होगा। इसीलिए स्वाभाविक तौर पर पीएम मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर खासा जोर दिया। आज दुनिया जिस तरह से बदल रही है, उसमें यह जरूरी भी है कि दूसरों पर निर्भरता कम करने पर विशेष ध्यान दिया जाए। ऑटो उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं खासतौर पर आईफोन का उदाहरण बताता है कि भारत में वैश्विक जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है। एपल करीब 20 प्रतिशत आईफोन अब भारत में ही बना रही है जबकि कभी इसका केंद्र चीन हुआ करता था। अपने लक्ष्यों को स्पष्ट करते हुए पीएम मोदी देश की जनता को चुनौतियों की ओर संकेत करना भी नहीं भूले। उन्होंने न केवल किसानों, और मछुआरों की बात की बल्कि सिंधु जल समझौते को उसके वर्तमान स्वरूप में स्वीकार न करने की दो टूक घोषणा भी लालकिले से कर दी। साफ है कि भारत किसी भी सूरत में किसी के भी अवांछित दबाव को स्वीकार नहीं करेगा और यह घोषणा इसको सिद्ध कर रही है।
अब विकसित भारत 2047 का लक्ष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि देश के राजनीतिक दल, सरकार तथा नागरिक कैसा वातावरण मिल कर बनाते हैं। आने वाले वर्षों और दशकों में भारत जो कुछ भी हासिल करेगा, वह बहुत कुछ भारत की राजनीति और शासन व्यवस्था की दिशा एवं दशा पर निर्भर होगा। लोकतंत्र में देश के भीतर किसी भी मुद्दे पर मतभेद और विरोध करना एक सीमा तक जायज है पर देश के विकास को प्रभावित करने वाली राजनीति का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अभी तो भारत को आर्थिक तथा अन्य मोर्चों पर बाहरी चुनौतियों से निपटना है किंतु आने वाले समय में भारत की प्रगति और विकास यात्रा उसके संस्थानों एवं जन-सहयोग की शक्ति पर निर्भर करेगी। यह बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए।