विनोद शील
नई दिल्ली। अब शायद वह समय दूर नहीं जब भारत ही नहीं; दुनिया भर में विमान व ड्रोन हेलिकॉप्टर की तरह सीधे हवा में उड़ और जमीन पर उतारे जा सकेंगे। इस तकनीक को वर्टिकल टेक-ऑफ एंड लैंडिंग (वीटीओएल) कहा जाता है।
आज पूरी दुनिया यह मानने लगी है कि ये भारत की सदी है। भारत की उपलब्धियों ने, भारत की सफलताओं ने पूरे विश्व में एक नई उम्मीद जगाई है। कोविड के दौरान भी भारत ने अपनी विकसित की गई वैक्सीन से 150 से अधिक देशों के पीड़ितों के जीवन की रक्षा की थी। तमाम देशों की बड़ी-बड़ी परियोजनाओं और कंपनियों को भारतीय संचालित कर रहे हैं। इसी क्रम में अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास के शोधकर्ताओं ने स्वदेशी तकनीक से विमानों और ड्रोन को हेलिकॉप्टर की तरह सीधे हवा में उड़ाने और जमीन पर उतारने की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
आईआईटी की ये उपलब्धि ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एरोनॉटिकल एंड स्पेस साइंसेज’ में प्रकाशित हुई है। इस उपलब्धि से दुर्गम और सीमांत इलाकों में विमान सेवाएं आगे बढ़ाई जा सकेंगी जहां लंबे रनवे या बड़े हवाई अड्डे बनाना कठिन होता है।
विमान हेलिकॉप्टर से तेज और सस्ती सेवाएं दे सकेंगे। इसके अलावा चंद्रयान और मंगल मिशन जैसे अंतरिक्ष अभियानों में भी ये मददगार साबित होंगे जहां लैंडिंग प्रक्रिया बेहद नाजुक होती है। इससे आपदा राहत और दुर्गम इलाकों में आपूर्ति तंत्र विकसित करने में भी मदद मिलेगी। माना जा रहा है कि इससे भारत नेक्स्ट जेनरेशन एरियल सिस्टम की दिशा में आत्मनिर्भर भी बन सकेगा।
ऐसे किया गया प्रयोग
इस अत्याधुनिक प्रयोग में हाइब्रिड राकेट थ्रस्टर को वर्चुअल सिमुलेशन से जोड़ा गया और इससे साफ्ट लैंडिंग के लिए जरूरी वेलासिटी प्राप्त की गई। इसके चलते एक मीटर प्रति सेंकेंड से भी कम स्पीड से विमान ने लैंडिंग की।
विशेष हाइब्रिड राकेट ईंन्धन
किया गया विकसित
अमेरिका के एफ-35बी और वी-22 ओस्प्रे विमानों में इस वीटीओएल तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस शोध का एक अहम पहलू यह है कि टीम ने एक विशेष हाइब्रिड राकेट ईंन्धन विकसित किया है जिसे आक्सीडाइजर के रूप में केवल कंप्रेस्ड हवा की जरूरत होती है। इससे ऐसी प्रणालियों को हवाई वाहनों में जोड़ना आसान हो जाता है, विशेष रूप से उन स्थितियों में जहां कंप्रेस्ड एयर आसानी से उपलब्ध है।
टीम ने इस प्रयोग से दिखाया कि हाइब्रिड राकेट मोटर, लिक्विड इंजनों की तुलना में न केवल अधिक सुरक्षित होते हैं बल्कि इनका ढांचा भी अपेक्षाकृत सरल होता है। हाइब्रिड राकेट प्रणालियां हाल के वर्षों में लोकप्रिय हुई हैं क्योंकि ये ठोस और तरल राकेट इंजनों के गुणों को मिलाकर काम करती हैं और इन्हें थ्राटल किया जा सकता है यानी इनको जरूरत के मुताबिक चालू या बंद किया जा सकता है।
गेमचेंजर बन सकती है तकनीक
फिलहाल उपयोग में आने वाले वीटीओएल सिस्टम जटिल और उच्च रखरखाव वाले होते हैं। इसलिए आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने हाइब्रिड राकेट थ्रस्टर से संचालित एक प्लेटफार्म की अवधारणा प्रस्तुत की है जो विमानों और यूएवी के लिए एक प्रभावी प्रोपल्शन यूनिट के रूप में काम कर सके।
आईआईटी मद्रास के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर पी.ए. रामकृष्ण के अनुसार वीटीओएल तकनीक विमान को बिना रनवे के सीधा ऊपर उठने और नीचे उतरने की क्षमता प्रदान करती है। इससे दुर्गम और सीमांत इलाकों में भी हवाई सेवा की पहुंच संभव हो सकेगी जहां लंबे रनवे या बड़े हवाई अड्डे बनाना मुश्किल है।
उन्होंने बताया कि जब यह तकनीक व्यावसायिक उपयोग के टेक्नोलाॅजी रेडिनेस लेवल (टीआरएल) तक पहुंच जाएगी, तो नागरिक और सैन्य दोनों क्षेत्रों में गेम-चेंजर साबित होगी। इससे बड़े-बड़े हवाई अड्डे बनाने की जरूरत नहीं रहेगी और खर्च बचेगा।
घटेगी लागत
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डाक्टर जोएल जार्ज मनथारा के मुताबिक टीम ने एक अभिनव हार्डवेयर-इन-द-लूप सिमुलेशन (एचआइएलएस) ढांचा तैयार किया है। यह ढांचा वास्तविक हार्डवेयर और वर्चुअल सिमुलेशन को जोड़ता है। इससे जटिल प्रणालियों का विकास कम लागत और अधिक सटीकता से किया जा सकता है।
आम तौर पर एचआइएलएस में सॉफ्टवेयर सिमुलेशन के साथ माइक्रोकंट्रोलर या सर्वो मोटर जैसे उपकरण जोड़े जाते हैं पर आईआईटी मद्रास की टीम ने पहली बार वास्तविक लाइव-फायरिंग हाइब्रिड राकेट मोटर को सीधे इस सिमुलेशन लूप में शामिल किया। इस सेटअप ने एक सफल सॉफ्ट लैंडिंग प्रदर्शित की जिसमें टचडाउन वेलोसिटी एक मीटर प्रति सेकेंड से भी कम रही।































