ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। आवारा कुत्तों की समस्या दिन-ब-दिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। एक ओर पशुप्रेमी, विशेष रूप से श्वानप्रेमी, आवारा कुत्तों के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन करते हुए उन्हें खिलाते-पिलाते रहते हैं। मगर परेशानी यह है कि ये उन्हें अपने घर न ले जाकर गली की ही शोभा बनाए रखना चाहते हैं।
11 अगस्त के आदेश के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से पूछा था कि पशुप्रेमी क्या रेबीज से मरे बच्चों को वापस ला सकते हैं? यह एक महत्वपूर्ण टिप्पणी है, लिहाजा जमीनी वास्तविकता पर गौर करना आवश्यक है।
सरी ओर, इन लावारिस कुत्तों से बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को खासतौर पर खतरा बना रहता है। कहीं-कहीं तो मौका मिलने पर ये नवजात शिशुओं को नोच-खसोटकर उनकी जान ही ले लेते हैं।
साल 2022-23 में किए गए एक गैर-सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली में लगभग 10 लाख लावारिस कुत्ते हैं। इनमें से आधे से भी कम का बधियाकरण किया गया है। ध्यान रहे कि इसी साल जनवरी से जून तक सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी में जानवरों (कुत्ते, बंदरों आदि) के काटने की 35, 198 घटनाएं दर्ज की गई हैं।
एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम के अनुसार, दिल्ली में लावारिस कुत्तों के काटने के मामले वर्ष 2022 में लगभग 6,700 थे, जो वर्ष 2024 में बढ़कर 25,000 से अधिक हो गए। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में रेबीज के टीके के लिए रोजाना 700-800 पीड़ित पहुंचते हैं। पहले यह संख्या 500-550 के बीच थी। सफदरजंग में जनवरी-जुलाई, 2025 के दौरान 91,009 पीड़ित आए, जबकि इसी अवधि में हिंदूराव अस्पताल में पहुंचने वाले पीड़ितों की संख्या 4,861 थी। नोएडा में, जनवरी से मई, 2025 के दौरान कुत्ता काटने के 52,700 से अधिक मामले सामने आए।
40 प्रतिशत मौतें 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों की
केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल ने विगत 22 जुलाई को संसद में बताया था कि पिछले वर्ष देश में कुत्तों के काटने के मामलों की संख्या 37,17,336 थी। एक अनुमान के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष लगभग 5,700 लोग रेबीज की वजह से मरते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार, रेबीज के कारण हरेक साल विश्व भर में लगभग 59,000 लोगों की मौत हो जाती है, जिनमें से 95 प्रतिशत से अधिक मौतें एशिया और अफ्रीका में होती हैं। यह दुखद है कि इन मौतों में से 40 प्रतिशत मौतें 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों की होती हैं।
कुत्तों के काटने से होने वाली रेबीज बड़ी ही खतनाक बीमारी है। इसका समय पर इलाज न मिल पाने से पीड़ित व्यक्ति तड़पकर दम तोड़ देता है। मरने से पहले ऐसे व्यक्ति को पानी का डर सताने लगता है, जिसको ‘हाइड्रोफोबिया’ का नाम दिया जाता है। रेबीज जैसे खतरनाक रोग से लड़ाई में एक अच्छी खबर भी है।
कुत्तों को संभालना और रेबीज
का इलाज खोजना जरूरी
हाल ही में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने मानव प्रतिपिंड यानी एंटीबॉडी से रेबीज की एक नई वैक्सीन का विकास किया है। गोरखपुर एम्स ने देश के अलग-अलग 15 केंद्रों पर लगभग 3,000 मरीजों पर इस वैक्सीन का परीक्षण किया, जो सफल रहा। यह वैक्सीन न केवल पारंपरिक रेबीज वैक्सीन जितनी ही सुरक्षित और प्रभावी है, बल्कि सस्ती भी है। रेबीज का इलाज खोजना जरूरी है।
बेजुबानों के लिए हों साफ-सुथरे शेल्टर होम
बहरहाल, संतुलन की दृष्टि से, लावारिस कुत्तों को शेल्टर होम भेजते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि इन बेजुबानों के साथ अमानवीय व्यवहार न हो। उनके आश्रयस्थल साफ-सुथरे और आरामदेह हों, साथ ही उन्हें भरपेट भोजन भी मिले। श्वानों से प्रेम करने वालों को भी आगे आकर उन्हें गोद लेने पर विचार करना चाहिए। अच्छा तो यही होगा कि उनका बाकायदा ध्यान रखने के लिए कोई न कोई मालिक उन्हें मिल जाए।