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अमेरिका-चीन की एआई रेस से दुनिया खतरे में

Artificial intelligence
ब्लिट्ज ब्यूरो

न्यूयॉर्क। अमेरिका में कई प्राइवेट कंपनियां रक्षा विभाग पेंटागन के साथ मिलकर नए एआई हथियार बना रही हैं।
तारीख- 15 नवंबर, 2023
जगह- सैन फ्रांसिस्को
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के दौरान एक अजीब घटना हुई। लंच के बाद जब दोनों नेता उठकर जाने लगे, तो जिनपिंग के एक करीबी अधिकारी ने उनके बॉडीगार्ड को इशारा किया। बॉडीगार्ड ने अपनी जेब से एक छोटी बोतल निकाली और तेजी से उन सभी चीजों पर स्प्रे कर दिया जिन्हें जिनपिंग ने छुआ था। यहां तक कि उनकी प्लेट में बचे केक पर भी।
तभी बैठक में मौजूद एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा-चीनी गार्ड अपने राष्ट्रपति का कोई डीएनए नहीं छोड़ना चाहते, ताकि कोई उसे बायोलॉजिकल हथियारों के लिए इस्तेमाल न कर सके। उन्हें लगता है कि भविष्य में कोई ऐसी बीमारी बनाई जा सकती है सिर्फ एक ही व्यक्ति को टारगेट करेगी। बाइडेन और जिनपिंग ने नवंबर 2023 में एपेक समिट के दौरान मुलाकात की थी।
तकनीक की रफ्तार से शक और डर बढ़ा
इस घटना से एक बात साफ हो गई कि नई तकनीक की रफ्तार ने दोनों देशों के बीच शक और डर को और बढ़ा दिया है। आज हम हथियारों के शायद सबसे तेज विकास वाले दौर में जी रहे हैं। डिफेंस एक्सपर्ट के मुताबिक अब ऐसी ड्रोन मशीनों पर काम हो रहा है जो बिना किसी ह्यूमन कंट्रोल के काम करे और भीड़ में भी दुश्मन को ढूंढ़कर खत्म कर दे।
ऐसे ताकतवर साइबर हथियार पर काम हो रहा है जो किसी देश की सेना, बिजली व्यवस्था और पूरे ग्रिड को ठप कर सकता है।
इसी कड़ी में एआई से डिजाइन किए गए ऐसे जैविक हथियार (बायो वेपन) भी बन रहे हैं जो सिर्फ खास जेनेटिक पहचान वाले लोगों को ही मार सकें। चीनी टेक्नोलॉजी कंपनियों ने समुद्र में इस्तेमाल होने वाले कई तरह के ड्रोन तैनात किए हैं, जिनमें सतह पर चलने वाले जहाज, खुद से चलने वाली पनडुब्बियां और रिसर्च वाले ड्रोन शामिल हैं।
भविष्य की जंग कुछ ऐसी दिखेगी
कुछ हथियार अभी कल्पना जैसे लगते हैं, लेकिन कई ऐसे हैं जिन पर अमेरिका, चीन, रूस और दूसरे देश पहले से काम कर रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सिंथेटिक बायोलॉजी और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी तकनीक युद्ध का तरीका बदल देंगी।
अमेरिका अभी भी कुछ क्षेत्रों में खासतौर पर एआई में आगे है। इसकी वजह ये है कि बड़ी टेक कंपनियां इसमें बहुत ज्यादा पैसा लगा रही हैं लेकिन चीन और रूस भी इसमें पीछे नहीं हैं। वे भी इसमें सरकारी स्तर पर बहुत ज्यादा निवेश कर रहे हैं। उनकी सेनाओं में नई तकनीक शामिल हो रही हैं।
इसका मतलब यह है कि 21वीं सदी की हथियार होड़ बहुत तेज चल रही है। अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती यह है कि वह इस रेस में कैसे बना रहे। इसके लिए सरकार, सेना, यूनिवर्सिटीज और प्राइवेट कंपनियों को मिलकर काम करना होगा। जैसे दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने से पहले अमेरिका, विज्ञान में जर्मनी से पीछे था लेकिन साइंस और इंडस्ट्री के एकजुट प्रयास से कुछ साल में ही अमेरिका ने एटम बम बनाने की रेस जीत ली। इस बार फर्क यह है कि एआई जैसी तकनीक सरकार ने नहीं, बल्कि प्राइवेट कंपनियों ने बनाई हैं, इसलिए पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी और भी जरूरी है।
इसके साथ ही यह भी चिंता बढ़ी है कि नई तकनीकों की वजह से हथियारों की एक खतरनाक होड़ पैदा हो रही है। पिछली सदी ने सिखाया कि कई हथियारों को रोकने के लिए संधियां जरूरी होती हैं। इसलिए अमेरिका को दूसरे देशों के साथ मिलकर ऐसे हथियारों को नियंत्रित करने के लिए समझौते करने होंगे।
अमेरिकी खुफिया एजेंसियां और रक्षा विभाग पहले से एआई को युद्ध में इस्तेमाल करना शुरू कर चुके हैं। सबसे बड़ी मिसाल है ‘प्रोजेक्ट मावेन’। यह एक एआई सिस्टम है जो सैटेलाइट, ड्रोन और जासूसी विमानों से आने वाली तस्वीरों को देखकर तुरंत खतरे पहचान लेता है। जैसे रॉकेट लॉन्चर, टैंक, जहाज या किसी जगह पर सैनिकों की मूवमेंट।

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