नई दिल्ली। टाइफाइड को पूरी तरह खत्म करने के लिए भारत ने दुनिया का पहला मिश्रित टीका तैयार किया है। पश्चिम बंगाल स्थित राष्ट्रीय जीवाणु संक्रमण अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस टीके के जरिये साल्मोनेला टाइफी और सालमोनेला पैराटाइफी-ए दोनों ही तरह के संक्रमण से बचाव का दावा किया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भारतीय वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि की घोषणा की है।
प्राइवेट कंपनियों के लिए जारी आवेदन में आईसीएमआर ने टीके के उत्पादन और आगे के परीक्षण शुरू करने की सूचना दी है। आईसीएमआर के मुताबिक, टाइफाइड से बचाव के लिए अभी तक बाजार में कुछ टीके उपलब्ध हैं। इनमें वीआई पॉलीसेकेराइड वैक्सीन और टाइफाइड कंजुगेट वैक्सीन (टीसीवी) शामिल हैं, जो मुख्य रूप से साल्मोनेला टाइफी को ही लक्षित करते हैं जबकि सालमोनेला पैराटाइफी-ए संक्रमण के खिलाफ यह सुरक्षा प्रदान नहीं करते। अभी तक ऐसा कोई लाइसेंस प्राप्त मिश्रित टीका नहीं है जो दोनों रोगों एक साथ लोगों की सुरक्षा कर सके। देश में हर साल एक करोड़ से ज्यादा टाइफाइड के मामले सामने आ रहे हैं।
वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक टाइफाइड रोगियों के मामले में भारत शीर्ष पर है। भारत में साल्मोनेला टाइफी और सालमोनेला पैराटाइफी ए दोनों ही स्ट्रेन के मामले हर साल काफी संख्या में सामने आ रहे हैं। आईसीएमआर ने यह भी बताया कि आगामी दिनों में देश के अलग अलग हिस्सों में इस टीके पर परीक्षण शुरू होंगे।
कई साल से चल रहा प्रयास
साल्मोनेला टाइफी और सालमोनेला पैराटाइफी-ए दोनों के कारण होने वाला आंत्र ज्वर भारत में चिंता का विषय है। भारत में 10 लाख की आबादी पर औसतन 399.2 मामले हर साल मिल रहे हैं, जो टीबी संक्रमण की तुलना में काफी अधिक है।
भारत सहित पूरी दुनिया को मिलेगा इसका लाभ
आईसीएमआर ने दावा किया है कि इस टीके के व्यापक उपयोग से भारत सहित पूरी दुनिया में आंत्र ज्वर की घटनाओं में काफी कमी आ सकती है। साथ ही संक्रमण को रोकने से एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भरता कम होगी। इसके अलावा एमडीआर और एक्सडीआर साल्मोनेला उपभेदों का प्रसार धीमा हो जाएगा। इसका सबसे बड़ा आर्थिक लाभ यह होगा कि बीमारी की कम घटनाओं से उपचार, अस्पताल में भर्ती होने और उत्पादकता में कमी से जुड़ी स्वास्थ्य देखभाल लागत में कमी आएगी।
जहां फैली बीमारी, वहां टीके से जगेगी उम्मीद
आईसीएमआर ने बताया कि आगामी समय में इस टीके का सबसे बड़ा लाभ उन क्षेत्रों में दिखाई देगा, जहां बीमारी काफी फैली है। यहां की स्थानीय आबादी को बचाने के लिए इस टीके की मदद ली जा सकती है।
स्थानीय क्षेत्रों में इसे राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया जा सकता है। साथ ही इन क्षेत्रों का दौरा करने वाले बाहरी लोगों को भी इसकी खुराक दी जा सकती है जिससे दूसरे क्षेत्र की आबादी की सुरक्षा की जा सके।
चूहों पर किया गया शोध
वयस्क चूहों को जब इस द्विसंयोजक ओएमवी-आधारित इम्युनोजेन टीके की तीन खुराक मौखिक रूप से दी गई तो उनमें पर्याप्त एंटीबॉडी विकसित हुई। उसने प्रतिरक्षित चूहों की प्लीहा में विशिष्ट प्रतिरक्षा कोशिका आबादी जैसे सीडी 4, सीडी 8 और सीडी 19 को सक्रिय किया। इसके अलावा टीके ने टीएच 1 और टीएच17 कोशिका-मध्यस्थता प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को भी बूस्ट किया। इस टीकाकरण ने वयस्क चूहों के मॉडल में साल्मोनेला के अलग अलग स्ट्रेन के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की है। साथ ही बैक्टीरिया की गतिशीलता और म्यूसिन परतों में प्रवेश करने की क्षमता को काफी हद तक बाधित कर दिया।