दीपक द्विवेदी
हमास उग्रवादियों द्वारा इस्राइल में घुस कर किए गए हमले को पूरा एक वर्ष हो चुका है। एक साल पहले 7 अक्टूबर को ही इस बात की आशंका बलवती हो गई थी कि पश्चिम एशिया में शांति की वापसी का रास्ता आसान नहीं है। इस हमले में करीब 1200 लोगों की हत्या कर दी गई थी और 250 लोग बंधक बना लिए गए थे। मारे गए लोगों में सभी इस्राइल के नागरिक थे जिनमें अधिकतर यहूदी थे और कुछ मुस्लिम भी उनमें शामिल थे। इस वारदात के बाद से इस्राइल ने भी हमास के ठिकानों पर एक के बाद एक, ताबड़तोड़ हमले करना जारी रखा है। अभी तक पूरी दुनिया जहां रूस-यूक्रेन युद्ध के विस्तार के भय से आतंकित थी वहीं इस्राइल के साथ ईरान और अन्य देशों तथा संगठनों के युद्ध में कूद जाने से विश्व पर महायुद्ध के खतरे के बादल और ज्यादा गहरा सकते हैं।
इस युद्ध में कई देश जल रहे हैं। गत एक वर्ष के दौरान हजारों लोग मारे जा चुके हैं और आंकड़े बता रहे हैं कि मरने वालों में 75 फीसदी बच्चे और औरतें ही शामिल हैं। युद्ध में मरने वाले वृद्धों और बेसहारा होने वाले बच्चों की संख्या इससे अलग है। फिलिस्तीन के प्रधानमंत्री मोहम्मद शतयेह ने गाजा को ‘ब्लड वैली’ नाम दे दिया है। भारत की ओर से यद्यपि रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने के प्रयास किए जा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए कई यात्राएं भी कर चुके हैं पर इन संघर्षों को रोकने के लिए पूरी दुनिया को जो प्रयास करने चाहिए थे, वैसे प्रयास होते कहीं नजर नहीं आ रहे। यहां तक कि विश्व में शांति स्थापित करने के लिए बनीं तमाम बड़ी-बड़ी संस्थाएं भी कुछ करने की स्थिति में दिखाई नहीं दे रही हैं। आज इनकी व्यर्थता का ऐसा एहसास पहले से भी कहीं अधिक दिखाई दे रहा है।
हिजबुल्ला के मुखिया हसन नसरुल्ला की इस्राइली हमले में मौत के बाद पश्चिमी एशिया में तनाव की आग और भड़क गई है। नसरुल्ला की मौत के जवाब में ईरान ने इस्राइल पर मिसाइलों से हमला बोला। इस्राइल ने इन मिसाइल हमलों का बदला लेने की कसम खाई है। इससे पहले इस्राइल ने ईरान में हमास चीफ इस्माइल हानिया को भी ढेर किया था लेकिन तब ईरान ने इस्राइल पर कोई सीधी सैन्य कार्रवाई नहीं की थी। इस बार लेबनान में विभिन्न इलेक्ट्रानिक उपकरणों में विस्फोटों के जरिये हजारों हिजबुल्ला आतंकियों के घायल होने और कई के मारे जाने तथा फिर नसरुल्ला की मौत के बाद ईरान अत्यंत मजबूर दिखने लगा और उसके द्वारा समर्थित विभिन्न आतंकी गुटों के भीतर ही ईरान की इस्राइल नीति को लेकर आवाजें उठने लगी थीं।
ईरान में 1979 को इस्लामिक क्रांति के चलते कहा जाता है कि आयतुल्ला खोमैनी के नेतृत्व में बनी कट्टरपंथी इस्लामिक सरकार ने पूरे पश्चिमी एशिया में आतंकी संगठनों का जाल बिछाया था। इस्लामिक जगत का नेतृत्व शिया वर्ग के हाथ में लेने के लिए खोमैनी के नेतृत्व वाले ईरानी शासनतंत्र ने पूरे विश्व के मुस्लिम मानस को प्रभावित करने वाले फलस्तीन के मुद्दे को चुना और इस्राइल के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष छेड़ने के लिए हिजबुल्ला जैसे आतंकी संगठनों को समर्थन देना शुरू किया। शिया और सुन्नी इस्लाम के समीकरणों की एक खास बात यह है कि कोई सुन्नी मुसलमान शिया भी बन सकता है क्योंकि मुस्लिम जगत में शिया अल्पसंख्यक हैं। चूंकि अधिकांश सुन्नी अतिवादी शिया इस्लाम के कट्टर विरोधी हैं और आर्थिक रूप से सुन्नी अरब देशों पर निर्भर रहे हैं इसलिए ईरान के लिए यह चुनाव आसान नहीं था। ऐसे में सुन्नी मुस्लिम ब्रदरहुड की फलस्तीन इकाई यानी हमास; ईरान का औजार बनी। खोमैनी ने इस्लामिक शासन का जो कट्टरवादी माडल मुस्लिम जगत के सामने रखा; वह दुनिया भर के इस्लामिक कट्टरपंथियों को रास आया। इसका एक परिणाम यह हुआ कि अरब जगत की तमाम सेक्युलर सरकारें और तानाशाह धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता खोते गए और इस्लामिक कट्टरपंथी मजबूत होते गए।
पश्चिम एशिया में हालात अब ऐसे हो रहे हैं कि युद्ध का दायरा और अधिक फैलने की आशंका बढ़ती जा रही है। यह कहां तक जा सकती है और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। भारत ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए युद्ध में शामिल सभी पक्षों से संयम बरतने का आह्वान किया है और यह भी कहा है कि यदि युद्ध नहीं रुका तो पूरा क्षेत्र भी इसकी चपेट में आ सकता है। वस्तुत: हमास के हमले के बाद इस्राइल ने जो आक्रामक रुख अपनाया है वह अब लेबनान और ईरान तक को अपने दायरे में ले रहा है और इसमें शामिल हर पक्ष केवल खुद को ही सही और पीड़ित ठहरा रहा है।
दुखद यह है कि ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई ने कहा है कि हाल ही में इस्राइल के खिलाफ ईरान की सैन्य कार्रवाई पूरी तरह कानूनी और जायज है। खामेनेई ने जोर देकर कहा कि ईरानी सेना की कार्रवाई इस्राइल के अपराधों के जवाब में दी गई सबसे छोटी सजा है, जो इस्राइल और अमेरिका ने पश्चिम एशिया में किए हैं। इसके विपरीत इस्राइल और हमास की जंग में धीरे-धीरे मिडिल ईस्ट के देश भी शामिल होते गए तो इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी कसम खाई है कि ‘ हमास और उसके समर्थन में खड़े होने वाले हर संगठन को इस्राइल तबाह कर देगा।’ मौजूदा वक्त में अकेला इस्राइल सात मोर्चों पर युद्ध लड़ रहा है जबकि दुनिया भर की बात करें तो पूर्वी यूरोप से लेकर मिडिल ईस्ट और अफ्रीका तक हिंसा और अस्थिरता का दौर जारी है। देखा जाए तो युद्धों से किसी का भला नहीं होता। ये केवल विनाश ही करते हैं। इसलिए हर हाल में युद्ध रोके जाने के लिए सभी संभव कदम उठाए जाने चाहिए ताकि मानव और मानवता फल-फूल सके।