ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के आदेश 12 नियम 6 के अनुसार, अस्पष्ट और संदिग्ध स्वीकारोक्ति के आधार पर निर्णय नहीं दिया जा सकता।
न्यायालय के अनुसार, जब किसी स्वीकृति में दी गई गवाही में तथ्य और कानून के मिश्रित प्रश्न शामिल हों तो कानून के विरुद्ध ऐसी स्वीकृति कभी भी “स्वीकृत” नहीं हो सकती, जैसा कि आदेश XII नियम 6 के अंतर्गत कल्पना की गई है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने कहा, “आदेश 12 नियम 6 का उद्देश्य कुछ मामलों में मुकदमों का शीघ्र निपटारा करना है, लेकिन पुनरावृत्ति के जोखिम पर हम यह चेतावनी देना चाहेंगे कि जब तक कोई स्पष्ट, असंदिग्ध, असंदिग्ध और बिना शर्त स्वीकृति न हो, न्यायालयों को नियम के अंतर्गत अपने विवेक का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि स्वीकृति पर निर्णय बिना किसी सुनवाई के होता है, जो किसी पक्ष को अपील न्यायालय में मामले को गुण-दोष के आधार पर चुनौती देने से भी रोक सकता है।”
बेदखली का आधार क्या
इस मामले में मकान मालिक ने अपीलकर्ताओं/किरायेदार को इस आधार पर बेदखल करने की मांग की कि पश्चिम बंगाल किरायेदारी परिसर अधिनियम, 1997 (नया अधिनियम) के अनुसार वह अपनी मां (2009) की मृत्यु के बाद पांच साल से अधिक समय तक कब्जे में नहीं रह सकता, जो किरायेदार थी।
हालांकि, किराएदार ने इस आधार पर बेदखली का विरोध किया कि उन्हें अपने पिता की मृत्यु के बाद पश्चिम बंगाल परिसर किरायेदारी अधिनियम, 1956 (पुराना अधिनियम) के अनुसार 1970 में किरायेदारी के अधिकार विरासत में मिले थे। यह कहना गलत था कि वे अपनी मां की मृत्यु (2009) के बाद केवल पांच साल (2014 तक) के लिए ही किराएदार के रूप में परिसर में रह सकते थे।
अपने तर्क के समर्थन में मकान मालिक ने अपीलकर्ता की ‘दूसरे मामले’ में दी गई गवाही का हवाला दिया, जिससे यह साबित किया जा सके कि केवल अपीलकर्ता की मां ही किराएदार थी। अपीलकर्ता अपनी मां की मृत्यु की तारीख से पांच साल तक किराएदार के रूप में परिसर में रह सकते थे। साथ ही मकान मालिक ने तर्क दिया कि चूंकि पुराने अधिनियम को नए अधिनियम द्वारा निरस्त कर दिया गया था, इसलिए अपीलकर्ता किराएदारी अधिकारों में विरासत का दावा करने के लिए पुराने अधिनियम का लाभ नहीं उठा सकता।
‘अन्य मामले’ में अपीलकर्ता द्वारा की गई स्वीकृति के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ वर्तमान मामले में आदेश 12 नियम 6 सीपीसी के अनुसार निर्णय सुनाया, जिसे हाईकोर्ट ने मंजूरी दी।
जस्टिस सुधांशु धूलिया द्वारा लिखित निर्णय ने विवादित निर्णय को अलग रखते हुए कहा कि जिस स्वीकृति के आधार पर अपीलकर्ताओं के खिलाफ निर्णय सुनाया गया, उसे उचित स्वीकृति नहीं कहा जा सकता।
न्यायालय ने तर्क दिया कि कानून के खिलाफ किसी स्वीकृति के आधार पर कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता। न्यायालय के अनुसार, कानून के तहत गारंटीकृत अधिकार को समाप्त करने वाली स्वीकृति को स्वीकृति नहीं कहा जा सकता और इसे ‘कानून के खिलाफ़ स्वीकृति’ के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। चूंकि पुराने अधिनियम को नए अधिनियम द्वारा निरस्त कर दिया गया था, लेकिन किसी भी तरह से, नया अधिनियम पुराने अधिनियम के तहत अपीलकर्ताओं को दिए गए अधिकारों को नहीं छीन सकता, जब तक कि नए अधिनियम में ऐसे अधिकारों को छीनने का इरादा निर्दिष्ट न किया गया हो।