ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि हर साल लगभग 50 लाख लोग स्ट्रोक से मरते हैं और इतनी ही संख्या में लोग स्थायी रूप से विकलांग हो जाते हैं। स्ट्रोक एक ऐसी बीमारी है जो मस्तिष्क तक जाने वाली और उसके अंदर की धमनियों पर असर डालती है। स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क तक पोषक तत्व और ऑक्सीजन ले जाने वाली खून की नसें या तो फट जाती हैं या थक्के के कारण अवरुद्ध हो जाती हैं।
जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता
स्ट्रोक या आघात लगने के कारणों और रोकथाम, उपचार और पुनर्वास के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। वैसे स्ट्रोक की रोकथाम, आपातकालीन चिकित्सा देखभाल तक पहुंच बढ़ाने और जीवित बचे लोगों और देखभाल करने वालों को सहायता करने का अवसर प्रदान करने के लिए हर साल विश्व स्ट्रोक दिवस भी मनाया जाता है।
1990 के दशक में यूरोपीय स्ट्रोक पहल ने जागरूकता दिवस मनाने का विचार सामने रखा। हालांकि वित्तीय सीमाओं के कारण यह परियोजना केवल यूरोप में ही चलाई जा सकी। यूरोपीय स्ट्रोक संगठन ने 10 मई को अपना जागरूकता दिवस मनाया। हर साल विश्व स्ट्रोक दिवस भी मनाया जाता है। यह एक ऐसा आयोजन है जिसकी शुरुआत 2004 में कनाडा के वैंकूवर में विश्व स्ट्रोक कांग्रेस के दौरान हुई थी। इसके बाद, जन जागरूकता पैदा करने के लिए, 2006 में, विश्व स्ट्रोक फेडरेशन और अंतर्राष्ट्रीय स्ट्रोक सोसायटी के विलय के साथ विश्व स्ट्रोक संगठन बनाया गया। तब से, विश्व स्ट्रोक संगठन विभिन्न मंचों पर विश्व स्ट्रोक दिवस का प्रबंधन करता रहा है।
आखिर है क्या स्ट्रोक?
स्ट्रोक एक ऐसी बीमारी है जो मस्तिष्क तक जाने वाली और उसके अंदर की धमनियों पर असर डालती है। जॉन्स हॉपकिन्स मेडिसिन के मुताबिक, मस्तिष्क को अच्छी तरह से काम करने के लिए ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की निरंतर आपूर्ति की जरूरत पड़ती है। यदि खून की आपूर्ति थोड़े समय के लिए भी बंद हो जाती है, तो इससे समस्याएं हो सकती हैं। खून या ऑक्सीजन के बिना कुछ ही मिनटों के बाद मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं। जब मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती हैं, तो मस्तिष्क के कार्य में खलल पैदा होती है। मनुष्य उन चीजों को करने में सक्षम नहीं होता हैं जो मस्तिष्क के उस हिस्से द्वारा नियंत्रित होती हैं।
विकलांगता का अहम कारण
स्ट्रोक दुनिया भर में विकलांगता का अहम कारण और मौत का दूसरा मुख्य कारण भी है। 2022 में जारी वैश्विक स्ट्रोक फैक्टशीट से पता चलता है कि पिछले 17 सालों में स्ट्रोक के मामलों के बढ़ने से खतरा 50 प्रतिशत बढ़ गया है और अब चार में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में स्ट्रोक होने की आशंका जताई गई है।
स्ट्रोक की घटनाओं में 70 प्रतिशत की वृद्धि
1990 से 2019 तक स्ट्रोक की घटनाओं में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतों में 43 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, स्ट्रोक की व्यापकता में 102 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष में 143 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनिया भर में स्ट्रोक के सबसे अधिक मामले कम और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में आते हैं, यहां स्ट्रोक के कारण होने वाली 86 प्रतिशत मौतें और 89 प्रतिशत विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष हैं। कम और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में होने वाली इस समस्या ने कम संसाधनों वाले परिवारों के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
स्ट्रोक के मुख्य लक्षण
स्ट्रोक के मुख्य लक्षणों में चेहरे का लटकना, एक तरफ हाथ की कमजोरी और बोलने में कठिनाई, बोलना या समझ में न आना हैं। लोगों को देखने में बदलाव और संतुलन की कमी या चक्कर आने का भी अनुभव हो सकता है। स्ट्रोक के लक्षणों को जानना और तुरंत आपातकालीन चिकित्सा देखभाल हासिल करना जीवन बचा सकता है और बचे हुए लोगों के लिए परिणाम बेहतर बना सकता है। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) के मुताबिक, हर साल स्ट्रोक की कुल घटनाएं 105 से 152 (प्रति लाख व्यक्ति) तक देखी गई और पिछले दशक के दौरान भारत भर के विभिन्न हिस्सों में स्ट्रोक की व्यापकता 44.29 से 559 (प्रति लाख व्यक्ति) लोगों तक थी। आईजेएमआर ने कहा है कि भारत में ये आंकड़े उच्च आय वाले देशों की तुलना में अधिक हैं। स्ट्रोक की रोकथाम के लिए सबसे पहला और अहम कदम खानपान की आदतों में सुधार करना है। सोडियम युक्त खाद्य पदार्थ, मसालेदार और मीठे खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए, क्योंकि ये खून की नसों को नुकसान पहुंचाते हैं।
आहार फाइबर से भरपूर बहुत सारी सब्जियां और फल खाने चाहिए। धूम्रपान छोड़ने के अलावा नियमित व्यायाम के जरिए सही वजन बनाए रखना भी जरूरी है। यह भी सलाह दी जाती है कि 40 या उससे अधिक उम्र के लोगों को नियमित अंतराल पर शरीर की जांच करानी चाहिए। जिन लोगों के परिवार में स्ट्रोक का इतिहास रहा है, उन्हें हर एक से दो साल में जांच करवानी चाहिए।