ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। देश की न्यायपालिका के मुखिया सीजेआई बी आर गवई और दूसरे नंबर के वरिष्ठ जज जस्टिस सूर्य कांत दो अलग-अलग देशों के दौरे पर हैं। दोनों ने वहीं से ही संदेश दिए हैं। सीजेआई गवई इस समय यूके के दौरे पर हैं जबकि जस्टिस सूर्य कांत अमेरिका में हैं। जस्टिस सूर्य कांत देश के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं । सीजेआई बी आर गवई के अनुसार न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी और भारत में अपनी भूमिका निभाएगी, लेकिन इसे ‘न्यायिक आतंकवाद’ में नहीं बदलना चाहिए। जब यह पाया जाता है कि विधायिका या कार्यपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के अपने कर्तव्यों में विफल रही है, तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना चाहिए। साथ ही, न्यायिक सक्रियता को न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए।
एक आयोजन में उन्होंने कहा कि कभी-कभी आप सीमाओं को पार करने की कोशिश करते हैं और ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं, जहां आमतौर पर न्यायपालिका को प्रवेश नहीं करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल दुर्लभ मामलों में ही किया जाना चाहिए। उस शक्ति का प्रयोग बहुत सीमित क्षेत्र में बहुत अपवाद स्वरूप मामलों में किया जाना चाहिए। जैसे कि कोई कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता हो, या संविधान के किसी मौलिक अधिकार के साथ सीधे टकराव में हो, या कानून बहुत ही मनमाना या भेदभावपूर्ण हो तो अदालतें इसका प्रयोग कर सकती हैं, और अदालतों ने ऐसा किया भी है।
जजों के महाभियोग के लिए तय किए गए उच्च मानदंडों का बचाव
उन्होंने आगे कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए यह प्रक्रिया आवश्यक है। अगर हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखना चाहते हैं। एक तरफ, हम जजों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप का विरोध कर रहे हैं और दूसरी तरफ, अगर हम किसी जज को हटाने का आसान तरीका प्रदान करते हैं। यह एक सुरक्षा उपाय है जो जजों को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति देता है। अगर इसे हटा दिया जाता है, तो कानून के शासन की नींव, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, खतरे में पड़ सकती है। दरअसल, एक छात्र ने जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर कथित रूप से कैश मिलने की घटना का उल्लेख किया और पूछा था कि क्या वह जांच के संचालन में अपने पूर्ववर्ती सीजेआई संजीव खन्ना से अलग तरीके से काम करते छात्र ने उनसे यह भी पूछा कि क्या वह मानते हैं कि जजों को हटाने के लिए उच्च मानदंड उचित हैं।
विधायिका की भूमिका को दबाना नहीं चाहिए कोर्टों को
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने अदालतों द्वारा विधायिका की भूमिका को दबाने या संसद और विधानसभाओं के कार्यों के माध्यम से परिलक्षित लोगों की इच्छा को दरकिनार करने के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि अदालतों को विधायिका की भूमिका को दबाना नहीं चाहिए या लोगों की इच्छा को दरकिनार नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें लोकतांत्रिक संवाद के सूत्रधार के रूप में कार्य करना चाहिए। सहभागी शासन को मजबूत करना, कमजोर लोगों की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना कि राजनीतिक अनिश्चितता के क्षणों में भी कानून का शासन कायम रहे।
सैन फ्रांसिस्को में ‘एनविजन इंडिया कॉन्क्लेव’ में अपने मुख्य भाषण में, जस्टिस कांत ने कहा, न्यायिक अतिक्रमण, चाहे कितने भी अच्छे इरादे से किया गया हो, शक्तियों के नाजुक संतुलन को अस्थिर करने का जोखिम उठाता है। सच्ची संवैधानिक संरक्षकता प्रभुत्व में नहीं बल्कि संयम में निहित है। एक ऐसा लोकाचार जो एक जीवंत लोकतंत्र में न्यायपालिका की वैधता की पुष्टि करता है।
सोशल मीडिया के विस्फोट के युग में न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों को रेखांकित करते हुए, जहां हर व्यक्ति के पास हर बात पर कहने के लिए कुछ न कुछ होता है, उन्होंने कहा, आज की हाइपर-कनेक्टेड दुनिया में हम एक विशाल डिजिटल समुदाय का उदय देख रहे हैं ।
एससी कोटे के उप-वर्गीकरण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट की 7-जे बेंच के बहुमत के विचार को लिखने के लगभग एक साल बाद सीजेआई गवई ने कहा कि इस फैसले ने सुनिश्चित किया है कि दलितों में सबसे पिछड़े लोगों को सार्वजनिक रोजगार और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में उचित हिस्सा मिले। दरअसल गवई द्वारा लिखे गए सात जजों के संविधान पीठ के फैसले ने पिछले साल 1 अगस्त को राज्यों को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व की डिग्री के आधार पर एससी समुदायों के भीतर जातियों को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति दी थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 15% कोटे का बड़ा हिस्सा सबसे पिछड़े लोगों को मिले। यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि संविधान के प्रमुख निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर ने समावेशिता और समानता को संवैधानिक मूल्यों और गारंटियों का आधार बनाया।