ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। एक हैरानी वाला कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खुद अपना फैसला पलट दिया है। सर्वोच्च अदालत ने एक 12 साल के बच्चे की दिल छूने वाली कहानी सुनी और उसकी कस्टडी फिर से मां को सौंप दी। ये बच्चा अपने माता-पिता के आपसी झगड़े में पिसकर मानसिक और भावनात्मक रूप से बुरी तरह टूट गया था और अंदर तक डर हुआ था।
बच्चे की हालत देखते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत में बैठे जजों का भी दिल पसीज गया। अदालत ने अपने ही दस महीने पुराने आदेश को बदलते हुए बच्चे की कस्टडी फिर से मां को देने का फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में माना कि बच्चे की कस्टडी पिता को देकर उसने गलती की थी।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने अपने फैसले में माना कि सुप्रीम कोर्ट और केरल हाईकोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपने का आदेश दिया था। इसके चलते उसकी मानसिक और भावनात्मक हालत बिगड़ गई जबकि अदालतों ने बच्चे का मन पढ़ने के बजाय बुरी तरह लड़ रहे दंपति के वकीलों की दलीलों पर ही फैसला कर दिया।
मानसिक तौर पर बीमार हुआ बच्चा
ये बच्चा अदालत के आदेश की वजह से अब वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग में इलाज करा रहा है। अपनी गलती का अहसास करते हुए अदालत ने कहा कि वह अब अपनी मां के साथ रहेगा। हालांकि उसकी मां ने अब दोबारा शादी कर ली है लेकिन पिता को उससे मिलने का अधिकार होगा। यह मामला ऐसे पेचीदा और भावनात्मक मामलों में न्यायिक कार्यवाही की कमियों को उजागर करता है, जिसका फैसला अदालतों में झगड़ते माता-पिता की दलीलें सुनकर किया जाता है। बच्चे से बातचीत किए बिना यह समझे कि उसके बायोलॉजिकल माता-पिता के साथ उसकी सहजता कैसी है, यह फैसला सुनाया गया था।
फैसले में नहीं जानी गई बच्चे की राय
यह उदाहरण है कि अदालतों को अलग-अलग रह रहे माता-पिता के बीच बच्चे की कस्टडी के विवादों का फैसला सिर्फ कोर्ट रूम में ही नहीं करना चाहिए, बल्कि नाबालिगों से बातचीत करके, माता-पिता के साथ उनकी पसंद और सहजता के स्तर के बारे में जानना चाहिए। अब सुप्रीम कोर्ट ने गलती मानी कि उसके और केरल हाई कोर्ट के फैसले में बच्चे की कस्टडी पिता को देने की गलती हुई, जो 12 साल में सिर्फ कुछ ही बार बच्चे से मिलने आया था। बेंच ने कहा कि न्यायिक आदेश का बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा है। कोर्ट को इस फैक्ट का पता था कि बच्चे की मां ने दूसरी शादी कर ली है। इस मामले में साल 2011 में शादी के दो साल के भीतर ही दंपति का तलाक हो गया। तलाक के चार साल बाद बच्चे की मां ने दोबारा शादी कर ली। साल 2022 में पिता ने बच्चे की कस्टडी के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, इस आधार पर कि वह अपने दूसरे पति के साथ मलेशिया जा रही है। केरल हाई कोर्ट और पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी याचिका स्वीकार कर ली।
मां ने दाखिल की थी पुनर्विचार याचिका
अदालत के आदेश के कारण बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ गया और उसकी मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया कि नाबालिग चिंता और डर से ग्रस्त है, जिससे बीमारी का खतरा बढ़ गया है। इसके बाद मां ने आदेश को वापस लेने के लिए पुनर्विचार याचिका दायर की और अदालत के समक्ष मेडिकल रिपोर्ट पेश की।
उसकी याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि कानूनी अदालतों के लिए यह बेहद कठोर और असंवेदनशील होगा कि वे बच्चे से यह अपेक्षा करें कि वह एक एलियन हाउस स्वीकार करे। वहां फले-फूले, जहां उसका अपना पिता उसके लिए अजनबी जैसा है। हम उस आघात को नजरअंदाज नहीं कर सकते जो अदालतों की ओर से बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपे जाने के आदेशों की वजह से बच्चे को पहुंचा है। कोर्ट पर नाबालिग की कोमल भावनात्मक स्थिति के प्रति उदासीनता दिखाने का आरोप है।































