ब्लिट्ज ब्यूरो
ऑकलैंड। आप खुश हैं या दुखी या फिर गुस्से में हैं। एआई अब इसका भी पता लगा लेगा। न्यूजीलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ ऑकलैंड के एक शोध में दावा किया गया है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) किसी के सोशल मीडिया पोस्ट से उसके भाव को समझ लेगा। इस शोध में सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर की गई पोस्ट का एआई के जरिए परीक्षण किया गया। इससे इंसानी भावनाओं को समझने की कोशिश की गई।
शोध के नतीजे आने के बाद शोधकर्ताओं ने दावा किया कि मार्केटिंग, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में इसका बेहतर प्रयोग संभव है। सोशल मीडिया पर लोगों के पोस्ट से किसी विशेष क्षेत्र में उनकी रूचि के अलावा उस विशेष क्षेत्र के लिए उनके रुझान का भी पता चल सकेगा।
शोधकर्ताओं ने लेखनी से इंसान के भावों का पता लगाने के लिए ट्रांसफॉर्मर ट्रांसफर लर्निंग मॉडल का इस्तेमाल किया। गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों के विशाल आंकड़ों के साथ इसे पहले से प्रशिक्षित किया गया था। मॉडल का एल्गोरिद्म कोडिंग या कंप्यूटर की भाषा को समझने की बजाए स्वभाविक भाषाओं को समझने के लिए विकसित किया गया था। इस मॉडल ने 60 हजार से अधिक वाक्यों की पड़ताल की।
सटीक साबित हुआ मॉडल
टेक्सट से भावनाओं का पता लगाने में एआई मॉडल 84 फीसदी सटीक साबित हुआ, जो इस तकनीक के लिए उल्लेखनीय है। शोधकर्ताओं का दावा है कि जो एआई मॉडल अभी इंसानों के भावों को पहचान रहा है, भविष्य में आवाज सुनकर और चेहरा देख कर इंसान के मन की बातें बता देगा।
तकनीक के जनक को चिंता
एआई को तेजी से विकसित होता देख इस तकनीक के जनक योशुआ बेगिओ चिंतित हैं। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो यह खतरनाक साबित हो सकता है।
नौकरी जाने का खौफ
बिजनेस लीडर्स के बीच एआई तकनीक ने भय पैदा कर दिया है। ये सभी नई तकनीक से होने वाले नौकरियों के खतरों को भांप कर सहम गए हैं। ब्रिटिश स्टैंडर्ड इंस्टीट्यूट के नए शोध में दावा किया गया है कि एआई से कुछ नौकरियों पर तलवार लटक रही है। शोध के अनुसार, ऐसी 83 प्रतिशत नौकरियां हैं जहां एआई तकनीक इंसानों की जगह ले सकती है। इस शोध में नौ देशों के 932 बिजनेस लीडर्स को शामिल किया गया, जिनमें प्रत्येक 10 में से नौ का मानना है कि दुनियाभर में एआई से उनके पद खत्म होंगे।































