विनोद शील
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के तीसरे और आखिरी चरण के चुनाव की वोटिंग मंगलवार 1 अक्टूबर को पूरी हो गई। अंतिम चरण में सात जिलों की 40 सीटों पर बंपर मतदान हुआ। इन 40 सीटों पर 415 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कमोबेश यही हाल पहले और दूसरे चरण का भी रहा। जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद हो रहे विधानसभा चुनाव में इस बार मतदाताओं ने खासा उत्साह दिखाया है। इससे पहले विधानसभा चुनाव साल 2014 में हुआ था। आतंक और अलगाववाद का गढ़ रहे दक्षिणी कश्मीर की सीटों पर भी मतदाताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। दक्षिण कश्मीर और जम्मू संभाग के रामबन, डोडा और किश्तवाड़ में मतदान केंद्रों पर सुबह से ही लंबी कतारें लग गई थीं। पहले चरण में हुए मतदान से ही साफ संकेत मिल रहे थे कि इस बार विधानसभा चुनाव में मतदाता पिछले चुनावों का रिकॉर्ड तोड़ने वाले हैं। अंतत: वह दिन आ ही गया जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार था। अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में लोग मतदान के लिए उमड़ पड़े और इसतरह कश्मीर में लोकतंत्र का नया अध्याय लिखा जाना प्रारंभ हो गया। यह चुनाव जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र का एक नया सूर्योदय है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 सीटों पर चुनाव हुआ है। नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे। 5 अगस्त 2019 को जिस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संसद में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को पारित किया गया था,वह लक्ष्य पांच वर्ष बाद केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में विधानसभा के गठन के लिए तीन चरणों की मतदान प्रक्रिया के दौरान सिद्ध होता नजर आया। 1987 के बाद पहली बार जम्मू कश्मीर में किसी भी जगह पुनर्मतदान नहीं कराना पड़ा है, आतंकी हिंसा और अलगाववादियों का चुनाव बहिष्कार तो दूर, कानून व्यवस्था की स्थिति भी कहीं पैदा नहीं हुई ।
मतदाताओं ने सभी मुद्दों का समाधान मतदान में बताते हुए जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र के एक नए युग के सूत्रपात का संदेश सारी दुनिया को सुनाया। कश्मीर में आतंकी हिंसा, अलगाववाद, आजादी व जिहादी नारों के संरक्षक पाकिस्तान को भी यहां की जनता ने ठेंगा दिखा दिया। यह ऐतिहासिक चुनाव रहा जो जम्मू-कश्मीर के समग्र परिदृश्य को एक नई दिशा और ऊंचाई प्रदान करेगा।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहला चुनाव
केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है। इससे पूर्व जम्मू- कश्मीर में अंतिम बार विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे। उस समय जम्मू-कश्मीर में दो विधान दो निशान की व्यवस्था की संरक्षक, अलगाववाद और आतंकी हिंसा के तंत्र को मजबूती देने वाला अनुच्छेद 370 और 35ए प्रभावी हुआ करता था।
चुनाव में 370 के समर्थकों ने भी जोर-शोर से लिया भाग
मौजूदा विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी ने उन ताकतों को भी हमेशा के लिए खामोश करा दिया जो कहते थे कि अनुच्छेद 370 के साथ छेड़खानी करने पर कश्मीर में भारतीय संविधान का नाम लेने वाला तो दूर, तिरंगा थामने के लिए कोई कंधा भी नहीं बचेगा। यह वह चुनाव है जिसमें अनुच्छेद 370 के समर्थक भी भारतीय संविधान में ही अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं की पूर्ति की उम्मीद जताते हुए वोट मांगने निकले।
कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देने वाले भी चुनाव की मुख्यधारा में डुबकी लगाते नजर आए।
– लोगों ने अपने आतंकी बेटों की वापसी की आस में डाले वोट
– बोले वोटर- जो वोट से मिलेगा, वह बंदूक नहीं दे सकती
– लोकतंत्र की जीत और अलगाववाद की हार का प्रतीक है यह चुनाव
40 फीसदी से भी ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार
जम्मू-कश्मीर से मिली जानकारी कहती है कि केंद्रशासित प्रदेश में चुनाव के दौरान अलगाववाद, आतंकवाद और पाकिस्तान जैसे मुद्दों से हटकर मूलभूत और विकास से जुड़े मुद्दों को अहमियत दी गई। चुनाव में न केवल कोई एक खास पार्टी या वर्ग बल्कि इस लोकतंत्र के पर्व में प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के सदस्य भी मैदान में नजर आए। इस चुनाव में जिन नेताओं को पार्टी ने मौका दिया या जिन्हें अवसर नहीं दिया गया; वे भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। जानकर आश्चर्य ही होगा कि यहां चुनावी रण में 40 फीसदी से भी ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं। पिछले 57 साल में दूसरी बार इस तरह का रिकॉर्ड कायम हुआ है। इस चुनाव में जम्मू-उधमपुर और दिल्ली के विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए भी स्पेशल पोलिंग बूथ बनाए गए। दिल्ली में चार, जम्मू में 19 तो उधमपुर में एक विशेष मतदान केंद्र बनाया गया।
कुल वोटिंग प्रतिशत 63.45 पर पहुंचा
10 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव की अगर लोकसभा के चुनाव से तुलना करें तो इस चुनाव में ज्यादा मतदान हुआ है। पहली बार पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी और वाल्मीकि समाज के सदस्यों ने वोट डाला। इस विधानसभा चुनाव में 90 सीटों में से सबसे अधिक मतदान इंदरवाल विधानसभा में 82.16 प्रतिशत दर्ज किया गया। तीनों चरणों के समापन के बाद मतदान प्रतिशत 63.45 रहा। पहले चरण के लिए 18 सितंबर को 24 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हुआ था, इसमें 61.38 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, दूसरे चरण के लिए 25 सितंबर को 26 क्षेत्रों के लिए यह 57.31 प्रतिशत था और अंतिम व तीसरे चरण के लिए 40 सीटों पर मतदान प्रतिशत 69.65 प्रतिशत रहा है। तीनों चरणों के समापन के बाद मतदान प्रतिशत 63.45 रहा, जो केंद्र शासित प्रदेश में हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में दर्ज मतदान से अधिक है पर अभी तक के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक यह प्रतिशत 2014 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम रहा। 2014 में जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनावों में 65.23 प्रतिशत वोट पड़े थे। वैसे अंतिम आंकड़े आने तक मतदान प्रतिशत में अभी बढ़ोतरी हो सकती है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली है।
सोपोर में 35 वर्षों के मतदान का रिकॉर्ड टूटा
जम्मू-कश्मीर में तीसरे चरण के चुनाव के दौरान सोपोर पूरी तरह से लोकतंत्र के रंग में सरोबार नजर आया। सोपोर ने अलगाववाद और बहिष्कार का मिथक तोड़ने के साथ-साथ बीते 35 वर्षों में अब तक हुए मतदान का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। उत्तरी कश्मीर में आतंकवाद, अलगावाद और चुनाव बहिष्कार की राजनीति का केंद्र सोपोर ही रहा है। यहां मतदान दिवस का मतलब पथराव, अश्रुगैस और सिविल कर्फ्यू ही हुआ करता था। युवा मतदाताओं में जहां रोजगार और विकास की चाह दिखी तो वहीं कई बुजुर्ग मतदाता बंदूक को हमेशा के लिए खामोश देखना चाहते थे। कुछ अपने आतंकी बेटों की वापसी की आस में वोट डालने आए थे तो कुछ लोग ऐसे भी थे जो लोकतांत्रिक तरीके से पांच अगस्त 2019 से पहले की स्थिति की बहाली की उम्मीद में मतदान केंद्र तक पहुंचे थे।
सोपोर में प्रतिबंधित जमात-ए- इस्लामी समर्थित मंजूर अहमद और आतंकी अफजल गुरु के भाई एजाज गुरु समेत 20 उम्मीदवार मैदान में हैं। कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद के इतिहास में सोपोर की भूमिका का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ का नारा देने वाले सैयद अली शाह गिलानी, संसद हमले में शामिल रहे आतंकी अफजल गुरु समेत कई बड़े अलगाववादी और कुख्यात आतंकियों का संबंध सोपोर से ही रहा है। सोपोर प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी का गढ़ रहा है। यहां वोट डालने का मतलब कौम और इस्लाम से गद्दारी से माना जाता था। वर्ष 2002 में सोपोर में मात्र 8 प्रतिशत मतदान हुआ था। वर्ष 2014 में सोपोर में करीब 30 प्रतिशत जबकि इस बार 41.44 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। एक बड़ी बात यह है कि पूरे विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में कहीं भी कोई हिंसक घटना नहीं हुई। चुनाव बहिष्कार का समर्थन करने वाले भी मतदान केंद्र में लाइन में दिखाई दिए।
‘अमन और तरक्की के लिए डाला वोट’
मतदान के लिए आए गुलाम हसन मीर ने कहा कि मेरा पुत्र उमर कुछ वर्ष पहले आतंकी बन गया था। वह पता नहीं किस आजादी की चाह में गया है। काश, वह यहां होता तो समझ जाता कि बंदूक और ग्रेनेड से जो नहीं मिल सकता, वह सब यहां वोट से मिल सकता है। यहां बीते 30-35 साल से बंदूक है, लेकिन इससे क्या मिला, सिर्फ बर्बादी। मैं जानता हूं कि जरूर मेरी यह बात मेरे बेटे तक पहुंचेगी। मैने यहां अमन और तरक्क ी के लिए वोट डाला है। अगर यहां तरक्की होगी, अमन होगा तो किसी का बेटा बंदूक नहीं उठाएगा। मोहम्मद हमजा ने भी कहा, मेरा बेटा बिलाल भी आतंकी है। अगर मेरा वोट मेरे बेटे को वापस लाता है मैं बार-बार वोट दूंगा।
नारी शक्ति में भी दिखा उत्साह
उधमपुर जिले की चारों विधानसभाओं में भी मतदाताओं में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। तीसरे चरण की वोटिंग को लेकर महिलाओं में भी जबरदस्त क्रेज दिखा। 11 बजे तक जिले में कुल 143064 मतदाताओं ने वोट डाले थे जिसमें से महिला मतदाताओं की संख्या 49.83 प्रतिशत थी। किसी ने विकास और किसी ने बदलाव तो किसी ने शहर के मुद्दों पर अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को वोट डाले।
तीसरा और अंतिम चरण रहा खास
कहा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के तीसरे और अंतिम चरण के लिए हुआ मतदान ही तय करेगा कि किसकी सरकार बनेगी। इस चरण में 40 विधानसभा सीटें हैं जिन पर भाजपा और कांग्रेस का भविष्य टिका है।
जम्मू संभाग की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्क र है। भाजपा कांग्रेस सहित सभी दलों ने ये सीटें जीतने के लिए ताकत लगाई है।
114 में से 90 सीटों पर हुआ चुनाव
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 114 सीटें हैं, जिनमें से 90 सीटों पर चुनाव हुआ है। 24 सीटें गुलाम कश्मीर के लिए खाली रखी गई हैं। पहले के दो चरणों में 50 सीटों पर मतदान हुआ। मंगलवार को जिन 40 सीटों पर वोट डाले गए उनमें 24 सीटें जम्मू संभाग के चार जिलों जम्मू, सांबा, ऊधमपुर और कठुआ में हैं। ये चारों जिले हिंदू बहुल हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में इन जिलों में 20 सीटें थीं जिनमें से भाजपा 18 पर जीती थी। दो सीटें नेकां को मिली थीं। कांग्रेस का इन जिलों में खाता भी नहीं खुला था। परिसीमन में इन जिलों में चार नई सीटें बन गईं। वर्ष 2014 में जम्मू जिले की दस में से आठ सीटें जीत कर भाजपा ने रिकॉर्ड बना दिया था। परिसीमन के बाद अब इस जिले की 11 सीटें हो गई हैं।
‘भारतीय लोकतंत्र और संविधान में आस्था की पुष्टि है जम्मू-कश्मीर में चुनाव’
जम्मू । जम्मू-कश्मीर मामलों के जानकार सैयद अमजद शाह ने कहा कि अगर वर्ष 1987 के चुनाव को यहां कई लोग जम्मू-कश्मीर में आतंकी हिंसा और अलगाववाद के लिए जिम्मेदार मानते हैं तो मौजूदा चुनाव जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर स्थानीय लोगों की भारतीय लोकतंत्र ,भारतीय संविधान में आस्था की पुष्टि करता है।
उन्होंने कहा कि आपको मतदान के प्रतिशत की गहराइयों में जाने के बजाय पूरी चुनाव प्रक्रिया को लेकर आम लोगों के रवैये को समझना चाहिए। इस चुनाव में कहीं भी अलगाववाद का भाव नहीं था। अगर कश्मीर मसले की बात किसी ने उठाई या किसी ने अनुच्छेद 370 की पुनर्बहाली की बात की है तो उसने यही कहा कि यह सब भारतीय संविधान और लोकतंत्र की देन है। अगर हमसे छीना गया है तो हमें मिलेगा भी भारतीय लोकतंत्र से और वह भी चुनावी प्रक्रिया से।
आपको शायद ध्यान होगा कि 16 अगस्त को जब मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का एलान किया था तो उन्होंने कहा था कि दुनिया जल्द ही जम्मू-कश्मीर में नापाक और शत्रुतापूर्ण षडयंत्रों की विफलता और लोकतंत्र की जीत का गवाह बनेगी। उन्होंने गलत नहीं कहा था,यह चुनाव जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र का एक नया सूर्योदय है।
भाषण देते खरगे बेहोश, मंच पर गिरे; मोदी पर कसा तंज लेकिन पीएम ने स्वास्थ्य के लिए पूछा
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे रविवार को जम्मू में भाषण देते हुए बेहोश होकर गिर पड़े। जसरोटा विधानसभा क्षेत्र के बरनोटी में संबोधन के दौरान वे बेहोश हुए। थोड़ी देर बाद उन्होंने बैठकर कुछ मिनट भाषण दिया लेकिन बीच में फिर रुक गए। बाद में उन्होंने खड़े होकर भी 2 मिनट भाषण दिया। जाते-जाते सबको यह कहकर संबोधन किया कि वह 83 साल के हैं अभी मरने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि तब तक नहीं मरूंगा जब तक मोदी को सत्ता से हटा नहीं लूंगा। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से फोन पर बात की। उन्होंने उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली।