संदीप सक्सेना
नई दिल्ली। सीमा पर रिश्तों में गरमाहट के बाद चीन के बाजार में भारतीय वस्तुओं के सुगम प्रवेश को लेकर नई आस जगी है। चार साल पहले गलवान विवाद के बाद चीन को होने वाले भारतीय निर्यात में नाममात्र की बढ़ोतरी हुई है जबकि चीन से आयात में इस अवधि में 40 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 2019-20 में भारत ने चीन को 16.61 अरब डालर का निर्यात किया था और वित्त वर्ष 2023-24 तक यह निर्यात सिर्फ 16.65 अरब डालर तक पहुंच सका। जबकि इस अवधि में चीन से होने वाला आयात 65.26 अरब डालर से बढ़कर 101.74 अरब डालर हो गया।
अब भारत की कोशिश इस अंतर को कम करने की होगी। भारत चीन पर अपनी उन वस्तुओं के लिए दरवाजे खोलने को लेकर दबाव बना सकता है, जिनकी
खरीदारी में चीन भारत की अनदेखी करता है। पालिश्ड डायमंड, छोटी कार, जेनेरिक दवाइयां, मांस जैसे कई उत्पादों का चीन बड़ी मात्रा में आयात करता है। भारत इन वस्तुओं का बड़ा निर्यातक है, लेकिन जानबूझ कर भारत के लिए रखे गए सख्त नियमों की वजह से वह इन वस्तुओं को चीन में नहीं बेच पा रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देश भारतीय दवा के बड़े खरीदार है, लेकिन चीन के बाजार में भारतीय दवा नहीं बिक सकती। भारत का विदेश मंत्रालय इस बात को कह चुका है कि चीन की वस्तुएं भारत में आसानी से आती हैं और बिकती हैं, लेकिन यही व्यवहार चीन के बाजार में भारतीय वस्तुओं को नहीं मिलता। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक राजनीतिक रिश्तों में सुधार के बाद भारत अपनी वस्तुओं को चीन में आसानी से प्रवेश दिलाने की निश्चित रूप से कोशिश करेगा।
चीन की ओर से खरीद
चीन मुख्य रूप से भारत से लौह अयस्क, समुद्री उत्पाद, काटन व कुछ केमिकल जैसे कच्चे माल की खरीदारी करता है जबकि भारत चीन से फिनिश्ड औद्योगिक वस्तुओं से लेकर आटोमोबाइल, टेलीकाम व इलेक्ट्रानिक्स उत्पाद व पार्ट्स, प्लास्टिक जैसी कई वस्तुओं की बड़ी मात्रा में खरीदारी करता है।
10 करोड़ से अधिक के टेंडर में हिस्सा नहीं ले सकतीं भारतीय आइटी कंपनियां
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक एवं भारतीय व्यापार सेवा के पूर्व अधिकारी अजय श्रीवास्तव के मुताबिक भारत को अपने हर उत्पाद के निर्यात से जुड़े मसले पर चीन से बातचीत करनी होगी और उसे सुलझाना होगा, तभी चीन में हमारा निर्यात बढ़ सकता है। दर्जनों वस्तुएं भारत 100 से अधिक देशों में निर्यात करता है, लेकिन चीन हमारे इन उत्पादों की गुणवत्ता पर सवाल उठाता है। जानबूझकर अपनाए गए सख्त नियम से भारतीय फल-सब्जी चीन में नहीं जा सकते हैं। भारत की आइटी कंपनियां वहां 10 करोड़ से अधिक के टेंडर में हिस्सा नहीं ले सकतीं। इन सभी मसलों पर बातचीत करनी होगी।
कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी
– इलेक्ट्रानिक्स, टेलिकाम और इलेक्टि्रकल 38.7%
टेक्सटाइल व क्लोथिंग 41.5%
आटोमोबाइल्स 23.2%
मशीनरी 38.5%
केमिकल एवं फार्मा 28.7%