आस्था भट्टाचार्य
नई दिल्ली। भारत की हवाई ताकत को बरकरार रखने के लिए डीआरडीओ ने एक बड़ा और बेहद अहम फैसला लिया है जिसके तहत, एक बड़े और महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को फिर से शुरू कर रहा है। यह प्रोजेक्ट है ‘स्ट्रैटोस्फेयर एयरशिप प्लेटफॉर्म जो सौर ऊर्जा से चलेगा। यह विशाल एयरशिप जोकि गुब्बारे जैसा विमान है जो करीब 17 से 22 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरेगा। वहीं, इसका मुख्य मकसद इंडियन एयर फ़ोर्स की खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही क्षमताओं में मौजूद कमियों को दूर करना है। यह टेक्नोलॉजी भारत को सैटेलाइट जैसी लगातार निगरानी करने की ताकत देगी, लेकिन यह सैटेलाइट से कहीं ज्यादा सस्ता और आसान होगा।
यह एयरशिप एक तरह से ‘हाई-ऑल्टीट्यूड स्यूडो-सैटेलाइट ‘ का काम करेगा, यानी यह सैटेलाइट की तरह ही ऊंचाई पर रहेगा, पर जमीन के करीब होने के कारण बेहतर तस्वीरें और जानकारी भेज सकेगा।
इतना ही नहीं, यह प्लेटफॉर्म, मौसम की किसी भी खराबी से ऊपर, यानी स्ट्रैटोस्फेयर में काम करेगा, जहां यह बिना रुके कई दिनों या हफ्तों तक एक ही जगह पर मंडरा सकता है। इसके बड़े से गुब्बारे पर सोलर पैनल लगे होंगे, जिससे इसे लगातार बिजली मिलती रहेगी और रात के लिए बैटरी भी चार्ज होती रहेगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह एयरशिप, भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे संवेदनशील सीमाओं पर लगातार और रियल-टाइम निगरानी की ताकत देगा।
क्या है ‘स्ट्रैटोस्फेयर एयरशिप’?
यह एयरशिप एक ऐसा विशाल, बिना-पंखों वाला, मानव रहित विमान है, जो अपनी कम वजन की वजह से हीलियम गैस की मदद से ऊंचाई पर उड़ता है। यह आमतौर पर 17 से 22 किलोमीटर की ऊंचाई पर काम करता है। यह ऊंचाई कमर्शियल विमानों से बहुत ऊपर है, जिससे इसकी निगरानी में कोई रुकावट नहीं आती। यह पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर निर्भर करता है। दिन में सूरज की रोशनी से चार्ज होता है और रात के लिए अपनी बैटरियों में ऊर्जा जमा करके रखता है।
सबसे बड़ी खासियत
सैटेलाइट से अलग, यह किसी एक खास इलाके के ऊपर लंबे समय तक स्थिर रह सकता है। इसे दोबारा जमीन पर उतारकर, इसके सेंसर और डिवाइस को बदला या अपग्रेड किया जा सकता है जिससे इसकी लाइफ साइकिल बढ़ जाती है।
जरूरी कमी होगी दूर इंडियन एयर फोर्स
को हमेशा से लंबी दूरी की और लगातार निगरानी रखने वाले सिस्टम की जरूरत रही है। यह एयरशिप इस कमी को दूर करेगा। यह सीमाओं और सामरिक ठिकानों पर घंटों नहीं, बल्कि हफ्तों तक बिना रुके नजर रख सकता है, जो पारंपरिक ड्रोन या विमान नहीं कर सकते।
वहीं, यह एक तरफ ड्रोन से ज्यादा ऊंचाई पर रहता है और दूसरी तरफ सैटेलाइट से सस्ता और तेज है। यह दोनों के बीच की जरूरत को पूरा करता है। आपको बता दें, वायुसेना को अक्सर लंबी दूरी से खुफिया जानकारी जुटाने में दिक्क त होती है। इस एयरशिप में एडवांस सेंसर, कैमरे और रडार लगे होंगे, जो दुश्मनों की गतिविधियों की सटीक और लाइव जानकारी देंगे।































